चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै। न बातों ख़बर मुझमें, न जज़्बातों का क़दर मुझमें। न देखी मै अभी दुनियां, कैसे दुनियां बनालूँ मै। अभी नदियों की पानी हूँ, दुबकी हुई कहानी हूँ। अभी ख़ुद से ही रूठी हूँ , कैसे तुझको मनालूँ मै। मुलाकातों का न मंज़र हैं, ख़्यालातों का न कोई डर हैं। अभी सहमी सी साँसे हैं, कैसे धड़कन बनालूँ मै।। चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै।। #स्वरचित....#शिल्पी सिंह❤ #विधा....#कविता चपल,चंचल सी नैनों में, कहाँ तुझको छुपालूं मै। न बातों ख़बर मुझमें, न जज़्बातों का क़दर मुझमें। न देखी मै अभी दुनियां, कैसे दुनियां बनालूँ मै।