"शहर जहाँ रहने को तरसते हैं ll गाँव उस हरियाली में बसते हैं ll शहर में जिये मरे का पता नहीं, गाँव खुल कर रोते हैं, हसते हैं ll शहर में मिट्टी का कोई महत्व नहीं, गाँव मिट्टी को सब कुछ समझते हैं ll शहर मशीनों के भरोसे चलत हैं, गाँव के अपने पांव अपने रस्ते हैं ll शहर के लिए गाँव पैतृक हैं, शहर में गाँव के ही बच्चे हैं ll" ©Shivangi Priyaraj hamare hisse zindagi ke satrangi atrangi kissey #diary