हाँ! ये कमज़ोर बेहद कमज़ोर हो चुके हैं... अपने दूर कर रहे हैं दूर रहने पर मज़बूर कर रहे हैं। हाँ! देखा होगा आपने हालातों के मारों को.... तड़पते हुए लाचार-बेसहारों को। पर क्या आपने किसी को घूँटते हुए देखा है...... अंदर ही अंदर किसी को टूटते हुए देखा है? ख़ुद को समेटे हुए खड़ा है कोई.... वीरान सड़कों पर पड़ा है कोई। सर्द हवाएं भी उसे भेद रही है.... हालात-ए-मुफ़्लिसी को क़ुरेद रही है। देर रात शहरों में.... सन्नाटा पसरने के बाद सिसकता-रोता अकेला कोई कुहासा गिरने के बाद। ये दुनिया क्यूँ इतनी ख़ामोश है.... या इनकी आँखों में ही कोई दोष है? क्या प्रकृति ने इसे कुछ भी नहीं दिया... फिर बाँटने में किसने कमी किया? क्या कोई भला इंसां जवाब दे पाएगा.... आओ ले जाओ हक़ अपना कोई आवाज दे पाएगा? नहीं! कभी नहीं शायद सब मिट जाने तक भी नहीं... आसमान के झुक जाने तक भी नहीं। क्यूँकि! मानो संवेदना दब गई है तृष्ण से... ये अंधकार तो मिटेगा किसी कृष्ण से। Raja Alam✍️ ©MD RAJA ALAM #nazm #नज़्म #RajaAlam✍️ #Nojoto #WallPot