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बोलना जिंदगी तू और कितना सताने वाली है।

बोलना जिंदगी तू और कितना सताने वाली है।                         अकेला बैठा हूं जाने क्या मैं सोच रहा हूं क्यों तनहा सा    दिल मेरा इतना भटक रहा है,
      कैसे संभालू मैं खुद को यह हर पल मुझे जाने क्या हो रहा है, क्या चाहता हूं मैं खुद से क्या उम्मीद लगाए बैठा हूं,
        करना क्या चाहता हूं यह सोच लगाए बैठा हूं 
एक हारा हुआ इंसान हूं मैं जो हार चुका हूं अपनी ही      सोच से,
       रोज-रोज की टेंशन परेशानियां इनसे तो जैसे मेरा रोज का नाता है,
       अब तो हंसता भी हू तो लगता है जाने कौन सी आफत आने वाली है,
       दिन तो कट जाता है सोच में डूबे हुए पर यह डिप्रेशन भरी रात भला कैसे कटने वाली है
       बोलना जिंदगी तू और कितना सताने वाली है!!

©shubham yadav 
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