ना समझी याँ समझदारी ? में कभी कभी सोचता हूँ क्या तुम्हें जाने देना चाहिए था ? इतनीआसानी से साथ छोड़ना चाहिए था ? तूमने कहाँ था तुम अपने माता पिता के खिलाफ़ जा नहीं सकती, पर तूमने कभी यह भी तो कहाँ था, तुम मुझे छोड़ कर रह भी नहीं सकती! अब तुम कैसे रह रही हों ? इतनी आसानी से सब कुछ भूल चुकी हों ? खेर छोड़ो इसका जवाब शायद मुझे कभी ना मिले पर इंतज़ार तो रहेंगा ! मन में ख्याल ज़रूर आता हैं शायद में थोड़ी ज़िद करता तेरा हाथ पकड़ता तुझे तेरे नाम से आवाज़ देता तो तुम रुक जाती पर दूसरी तरफ यह भी सोचता हूँ अगर में ऐसा करता तो क्या वो स्वार्थ नहीं होता ? क्या वो प्यार होता ? प्यार का नाम तो प्यार देना होता हैं ना ? तूमने ही सिखाया है शायद इसलिए तूमने मुझे यूँ बिच राह छोड़ दिया पर आज भी लगता की तुझे इस तरह जाने देना मेरा ना समझी थी याँ समझदारी ? ©Vipin Sevak नासमझी याँ समझदारी ✍🏻 #Vo_mere_pass_aaye