फिर से उड़ने लगी हूँ उसी शिखर को छूने को गिरकर जहाँ से कई बार उड़ना ही भूला दिया, फिर से वही जूनून सा सवार हो गया है, मुझे खुद से ही फिर से प्यार हो गया है; डर नहीं किसी के तीर का जिससे जख्म गहरे हुये डर नहीं भटकने या ऊँचाई से फिर गिर जाने का! #poem #freedom