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Kumar Divyanshu Shekhar
अब दरमियाँ कोई भी शिकायत नहीं बची
यानी करीब आने की सूरत नहीं बची।
अब और कोई सदमा नहीं झेल सकता मैं
अब और मेरी आँखों में हैरत नहीं बची।
―अक्स समस्तीपुरी भैया
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Kumar Divyanshu Shekhar
(१)
कुछ कविताएँ नींद में बुनी जाती हैं।
उनका अस्तित्व आँखों के सोए रहने में है।
उनकी पूर्णता
हमारी सतही दुनिया से निरपेक्ष
सपनों की दुनिया में बने रहने में है
तभी तो आँखों के खुलते ही
भाप हो जाती हैं वो #Poetry#Art#Life#Hindi#writing#writer#literature#nojotohindi