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अनकहे अल्फ़ाज़

लेखक हूं साहब..; दिल के जज्बातों को पन्नो पे उताड़ना काम है मेरा

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अनकहे अल्फ़ाज़

दर्द से अब वास्ता है के नहीं
इस जहाँ में रास्ता है के नहीं
तुम न पहले हो न हम हैं आख़िरी
ज़िंदगी ख़ुद मामला है के नहीं

- नदीम हसन चमन

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अनकहे अल्फ़ाज़

दिल के ख़ातिर ये बदन है क़ैद-ख़ाने की तरह,
 सो लगा है फड़फड़ाने ये परिंदे  की तरह..

हो परी कोई या कोई फूल ही हो,क्या हुआ,
कोई भी प्यारा नहीं है उसके चेहरे की तरह..

- अंकित मौर्या

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अनकहे अल्फ़ाज़

बेसन की सोंधी रोटी पर,खट्टी चटनी जैसी मां.
याद आती है चौका-बासन,चिमटा फुकनी जैसी मां.

बांस की खुर्री खाट के ऊपर,हर आहट पर कान धरे.
आधी सोई आधी जागी,थकी दोपहरी जैसी मां.

चिड़ियों के चहकार में गूंजे,राधा-मोहन अली-अली.
मुर्गे की आवाज से खुलती,घर की कुंडी जैसी मां.

बिवी, बेटी, बहन, पड़ोसन,थोड़ी थोड़ी सी सब में.
दिन भर इक रस्सी के ऊपर,चलती नटनी जैसी मां.

बांट के अपना चेहरा, माथा,आंखें जाने कहां गई.
फटे पुराने इक अलबम में,चंचल लड़की जैसी मां.

- निदा फ़ाज़ली #mothers_day
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अनकहे अल्फ़ाज़

माँ, तुम पूछना सुकून क्या है
मैं तुम्हारे गोद में सर रख दूंगा
-Wasim #MothersDay माँ, तुम पूछना सुकून क्या है
मैं तुम्हारे गोद में सर रख दूंगा

#MothersDay माँ, तुम पूछना सुकून क्या है मैं तुम्हारे गोद में सर रख दूंगा

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अनकहे अल्फ़ाज़

दोस्त बनना चाहती हूँ
-पलक शिशिर कर्ण दोस्त बनना चाहती हूँ

वो आम के बगीचे से तोड़े जाने वाले खट्टे-मीठे कैरी के उस वाकये को जानना चाहती हूँ, 
तुम्हारी इस गोल-सी पतली रोटी बनाने की कला काे सीखना चाहती हूँ, 
हर वक्त फर्ज़ और स्वाभिमान से लबरेज तुम्हारे चेहरे की नूर को माँगना चाहती हूँ,
पल में नारजगी और दूसरे ही पल ममता से भींग जानेवाली तुम्हारी आँखें पढ़ना चाहती हूँ, 
कुछ देर बैठो न तुम मैं तुम्हें बातें अपनी बताना चाहती हूँ.....

दोस्त बनना चाहती हूँ वो आम के बगीचे से तोड़े जाने वाले खट्टे-मीठे कैरी के उस वाकये को जानना चाहती हूँ, तुम्हारी इस गोल-सी पतली रोटी बनाने की कला काे सीखना चाहती हूँ, हर वक्त फर्ज़ और स्वाभिमान से लबरेज तुम्हारे चेहरे की नूर को माँगना चाहती हूँ, पल में नारजगी और दूसरे ही पल ममता से भींग जानेवाली तुम्हारी आँखें पढ़ना चाहती हूँ, कुछ देर बैठो न तुम मैं तुम्हें बातें अपनी बताना चाहती हूँ.....

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अनकहे अल्फ़ाज़

माँ की ममता
- Santosh Singh #MothersDay --------- मां: ममता -------संतोष सिंह

जान कर भी जो अंजान होती है,
एक रोटी के बदले दो- चार देती है।
अरे रूठ जाऊं मैं भी अगर तो कोई बात नहीं,
ममता की मूरत मां तो मां  होती है।

पूरी करती है सारी मन्नते जो भी होती है,

#MothersDay --------- मां: ममता -------संतोष सिंह जान कर भी जो अंजान होती है, एक रोटी के बदले दो- चार देती है। अरे रूठ जाऊं मैं भी अगर तो कोई बात नहीं, ममता की मूरत मां तो मां होती है। पूरी करती है सारी मन्नते जो भी होती है,

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अनकहे अल्फ़ाज़

सुबह  को  निकला  हूं  शाम  होने  तक
हर शख्स की उम्मीद हूं बस काम होने तक

- संगम सोलू वर्मा #Winter
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अनकहे अल्फ़ाज़

माँ   ममता   का   है   तू   सागर 
सारे   जग   में    है   तू    आगर

 -मुकेश ओझा #MothersDay
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अनकहे अल्फ़ाज़

इतनी तो आसानी से तुम मिली नहीं थी ए हयात,
फिर तुने चंद पलों में हमसे नाता क्यूँ तोड़ लिया।

चलो माना हम भटक रहे थे चंद टुकड़ों के खातिर,
 तुने तो हमें ही टुकड़ों में बिखेरना मुनासिब समझा।।

- किशन कर्ण

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अनकहे अल्फ़ाज़

चाह है एक छोटी सी कि,
एक रात ऐसी आये जब तुम सो जाओ मुझे पढ़ते पढ़ते,
मगर मैं उस रात लिखता रहूं तुझे जगते जगते।

- viवेक

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