नकारात्मक यथार्त लिखता हूं। खुशी से थोड़ी चिढ़ है इश्क से नफरत भी सी है।यायावर दिल मेरा नाम नही फितरत है।एक बार पढ़िए पसंद आये तो एक बार फिर थोड़े मन से पढ़िए । आप पढ़िए और फिर आपको पढ़ने की आदत मैं लगा दूंगा। प्रकटोत्सव दिवस लोग 'Kiss Day" के रूप में मनाती है और जिंदगी हमसे पूछती है तुम किस लिए इस दिन पैदा हुए। आजीविका पालन हेतु व्यापारी बना हूँ पर समझ एहसासों को शब्दो का सही मोल भाव देना ही आता है। पिता श्री नही रहे उनपर भी मन का गुब्बार जब जब भड़ता है अनायास ही शब्दों में निकाल देता हूँ। माता है पत्नी है वो भी मेरे शब्दों के बने निवास में समय असमय जगह पा ही लेती है। बाकी एक आशिकी सी है मेरी सोच में ऐसी आशिकी जो सिर्फ दीदार को तरसना दर्द को झेलना दगा की कल्पना जैसी फ़ितरतों के आस पास सोचती है। और कितना पढोगे मेरे बारे में मेरे लिखे अल्फ़ाज़ पढ़ो मुझे समझने के लिए।
SANJAY KUMAR JAIN
SANJAY KUMAR JAIN