यह जो तासीर है,लबों पे,वो कमाल की है,
बात भी सवाल तो कभो बे-सवाल की है।
नज़र मिलाने की औकाद तो नहीं फिर भी,
दीदार हो जाये,हुस्न का इतनी मजाल की है।
गुस्ताखियां
गुस्ताखियां
आज हवाएं, तूफांन से रूबरू हो जाएंगी,
कश्तियों की सभी बलाएँ दूर हो जाएंगी।
गुस्ताखियां
गुस्ताखियां
गुस्ताखियां
गुस्ताखियां
गुस्ताखियां
ठोंकरें बुरी तो लगीं ज़माने की मगर,
हक़ीक़त यह है कि जीना सिखा दिया।
गुस्ताखियां
सुना है कि झूठ के पर नहीं होते,
लेकिन उड़ता नहीं,अगर नहीं होते।
वही आंकते हैं कम दूसरों को,
जिनके मुकम्मल हुनर नहीं होते।
वही बसाते हैं, घर दूसरों के,
जिनके अपने घर नहीं होते।