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yakshitajain9039
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Yakshita Jain

research scholar of history & a poem writer since 15 years

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Yakshita Jain

करें सभी का आदर 
ना करे किसी का निरादर 
आदर करना हमारा धर्म 
मानवता का यही मर्म 
निरादर करना है पाप  
 जिससे मिलेगा सिर्फ संताप 
करें सभी का आदर 
यही है मानवता की चादर 
आदर से ही बढ़ेगा प्यार 
मिलेगा सभी का दुलार 
बच्चे बूढ़े या हो जवान 
परस्पर आदर से बने महान #RESPECT
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Yakshita Jain

अगर हम हैं शिष्ट 
तो हम हैं विशिष्ट
सुंदर चेहरा थोड़ी देर करता है मोहित
शिष्ट व्यक्ति से हर कोई रहता आकर्षित
 सुंदरता तो है वो बुलबुला
जो हो जाएगा गुलगुला
शिष्ट की शिष्टता ही काम आएगी
नाम कमा कर जाएगी
यही है सच्चे संस्कार
जिसमें ना हो कोई विकार
तभी होगा हर सपना साकार
रखो शिष्ट और शिष्टता से सरोकार
फिर से कह लाएगा भारत सोने की चिड़िया
होगी शिष्ट और शिष्टता की लड़ियां #elegant
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Yakshita Jain

"घर"
जहां मिलता है सुकून
 जहां होता है जुनून 
जहां बीतता है बचपन
जहां महसूस होता अपनापन 
वह कहलाता है घर 
जहां नहीं लगता डर
 जहां मिलती बड़ों की छाया
 जहां स्वस्थ रहती हमारी काया 
जहां छोटों को मिलता प्यार 
जहां होता अपनों का दुलार 
वह कहलाता है घर 
घर लौट कर ही आता आराम
 थकान का यही होता विश्राम
 घर में ही होती सुबह और शाम 
मेरे लिए तो घर ही है चारो धाम
Yakshita Jain
Research scholar,history #ghar
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Yakshita Jain

कागज़"
मेरा नाम है बहुत छोटा 
परंतु नहीं हूं मैं खोटा 
 कापिया  मुझ से है बनती
खबरें मुझ पर ही छपती 
मुझ पर किया जाता प्यार का इजहार 
मेरे चिट्ठी रूप का होता इंतजार 
मुझ पर ही लिखे जाते कविता व गीत 
शोक व शहनाई संदेश सुनाना मेरी रीत 
मैं हूं कलम का साथी 
रहते संग, जैसे सूँढ और हाथी 
मैं भी तरु से  ही आता हूं 
इतिहास बनकर चला जाता हूं 
यही है मेरा कर्म kaagaz
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Yakshita Jain

#WorldDanceDay World dance day special ( 29 April)
नृत्य एक कला है
नृत्य एक पूजा है
इसके है विभिन्न स्वरुप
ये कला का है प्रतिरूप
हर देश में इसके है उपासक
इसका ताण्डव रूप है विनाशक
नृत्य हर उत्सव की शोभा
लोक, शास्त्रीय रूप देख हुआ अचम्भा
इनका साथ देते वाद्य यन्त्र
सबको मोहित कर देता नृत्य का मंत्र
ये तनाव को दूर भगाता है
काया में स्फूर्ति लाता है
हमें भी इसे सीखना चाहिए
इससे मिली खुशी में रमना चाहिए #World_Dance_Day
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Yakshita Jain

आओ सुनाती हूं मेरी कहानी 
जो है बड़ी सुहानी 
मैं हूं एक घंटी 
नहीं हूं किसी की बंदी
 विभिन्न है मेरा रूप 
नहीं रहती हूं चुप
मैं मंदिर में हूं
 मैं दरवाजे पर हूं 
मैं घर में हूं 
मैं विद्यालय में भी हूं 
कहीं स्वर है ऊंचा
 तो कही है नीचा
कान के नीचे भी बजाई जाती हूं 
चल चित्रों में भी दिखाई जाती हूं 
यही थी मेरी कहानी 
मैं हूं घंटी
 सभी है मेरे मित्र 
चाहे हो सोना, मोना या बंटी #bell
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Yakshita Jain

हवा"
कहां से आती हूं 
कहां चली जाती हूं
 एक स्थल पर ना रह पाती हूं 
चंचल प्रगति से सब को लुभाती हूं 
कभी शीत तरंगे लाती हूं 
कभी उष्ण तरंगे लाती हूं 
कभी तरु पर झूलती हूं 
कभी सागर में मचलती हूं
 कभी वस्त्रों से खेलती हूं 
कभी मंदिरों की घंटी बजाती हूं
 कभी जुल्फें उड़ाती  हूं 
तो कभी लाज से छिप जाती हूं 
ऐसे ही बनकर बहती हूं
 तभी तो कवि की कविता
 या किसी गीतकार की गीत बन जाती हूं # wind
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Yakshita Jain

आज संध्याकाल में छत पर टहलते टहलते पेड़ ने मुझे बुलाया 
कोयल रानी को मुझे दिखाया 
कुकू कर मुझे सुनाया 
उसका मधुर गीत मुझे बहुत भाया
मैंने भी उसके संग गाया
मन की बगिया में आनंद महकाया
रोज उसके संग गाने का मन बनाया
ऐसे ही तुम आती रहना
करुँगी तुम्हारा इंतज़ार
तुम्हारी वाणी ही हमारी मित्रता का आधार..
27 April 2020 koyal
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Yakshita Jain

#PoetryOnline shayari of truth
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Yakshita Jain

#PoetryOnline Nirbhaya ka message

#PoetryOnline Nirbhaya ka message #कविता

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