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shashibhushanmis9249
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Shashi Bhushan Mishra

I am a science graduate from UP. currently working in an Indian multinational pharma company as Sr RBM. I love poetry. I write poems and Gazals.

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Shashi Bhushan Mishra

हंसती आंखें दिल रोता है,
अपना चाहा कब होता है,

गाने  वाला  रो दे अक़्सर,
पाने  वाला  ही   खोता है,

राम नाम  रटने  वाला भी,
फंसा जाल में ज्युं तोता है,

रोज़ नहाये  गंगा  जल से,
मन का मैल नहीं धोता है,

पछताने से क्या होगा जब,
बीज दुखों का ख़ुद बोता है,

रात में  करता है  रखवाली,
श्वान दिवस में ही  सोता है,

ज्ञान बिना दुनिया में गुंजन,
भंवर  बीच  खाता गोता है,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #अपना चाहा कब होता है#

#अपना चाहा कब होता है# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

बनकर तमाशबीन हम  घूमे  तमाम उम्र,
क्या ढूंढना था और क्या ढूंढे तमाम उम्र,

गुमनामियों में कट रही है ज़िंदगी की शाम,
दुनिया  के  पीछे  भागते  बीती तमाम उम्र,

अपने सभी  चले गए  उड़ने की  आस में,
लुटती  कटे पतंग की  इज्ज़त तमाम उम्र,

मक़बूल मसाइल को  कल पे  टालते रहे,
ख़्वाबों की  रोशनी में  नहाये  तमाम उम्र,

ठहरो ज़रा कुछ देर अपने मन में विचारो,
खाते रहोगे कब-तलक धक्के तमाम उम्र,

रहबर जिसे मिला मिली तक़दीर की चाभी,
मुर्शिद  बिना  मझधार  में  डूबे तमाम उम्र,

आई न अक्ल समय के रहते हुए 'गुंजन',
यारों  कपास  ओटते  रहते  तमाम  उम्र,
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
             प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #तमाम उम्र#
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Shashi Bhushan Mishra

आस्तीन के साँप बहुत थे फुर्सत में जब छाँट के देखा,
झूठ के पैरोकार बहुत थे आसपास जब झाँक के देखा,

बाँट रही खैरात सियासत मेहनतकश की झोली खाली, 
नफ़रत की दीवार खड़ी थी अल्फ़ाज़ों को हाँक के देखा,

जादू-टोना,  ओझा मंतर,  पूजा-पाठ   सभी   कर   डाले,
मिलती नहीं सफलता यूँही धूल सड़क की फाँक के देखा,

धरती से आकाश तलक की यात्रा सरल कहाँ होती है,
बड़ी-बड़ी  मीनारों  से  भी करके सीना चाक के देखा,

कदम-कदम चलता है राही दिल में रख हौसला मिलन का, 
मंज़िल धुँधला दिखा हमेशा सीध में जब भी नाक के देखा,

चलना बहुत ज़रूरी 'गुंजन' इतनी बात समझ में आई, 
हार-जीत के पैमाने पर ख़ुद को जब भी आँक के देखा, 
    ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'

©Shashi Bhushan Mishra #झांक के देखा#

#झांक के देखा# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

चिंताओं का बोझ अकारण सर पे ढोते,
हल्के हो जाते  गर अपने  मन को धोते,

त्याग कपट आडंबर और शंकाएं मन से,
सरल  सहज  हो जाते और चैन से सोते,

हुई जहां तक़रार बात ना दिल पर लेते,
कष्टों से बच जाते अगर न आपा खोते,

सागर से मोती निकाल पाना था सम्भव,
गहराई  में  जाकर  अगर  लगाते  गोते,

सागर तट पर है  लहरों का शोर-शराबा,
मिलता उन्हें सुकून हृदय में करुणा बोते,

लहराती  फ़सलें  मस्ती से  झूमे 'गुंजन',
करे किसानी और खेत में हल भी जोते,
   ---शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
           प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #अगर न आपा खोते#

#अगर न आपा खोते# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

रह  गया  दिल  बेसहारा,
रात साहिल का किनारा,

टिमटिमाती लौ  दिये की,
कह रही अब  सायोनारा,

गिले-शिकवे सब भुलाकर,
मिल न पाये  अब दोबारा,

रह-ए-उल्फ़त में मुसाफ़िर,
कर लिया ख़ुद का ख़सारा,

राह    तकतीं   हैं   उम्मीदें,
जब तलक नभ में सितारा,

बुरा अच्छा  जैसा  भी  था,
वक़्त   सबने  ही    गुजारा,

मुक़द्दर   वालों  ने   'गुंजन',
प्यार  में  ख़ुद  को  संवारा,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन' 
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #कह रही अब सायोनारा#

#कह रही अब सायोनारा# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

चालाकी  से  भरे हुए,
मिलते  सहमे डरे हुए,

पैमाने  भर  ख़ुदग़र्ज़ी,
रहते ज़िद पे अड़े हुए,

देर न लगती मिटने में,
पहले ही  अधमरे हुए,

पलकें नीची पांडव सी,
फक़त शर्म से गड़े हुए,

फूलों की डाली खाली,
पत्तों  तक  हैं  झरे हुए,

हम भी ये बदलाव यहां,
देख-देखकर  बड़े  हुए,

भीड़  तमाशाई  'गुंजन',
लोग-बाग  हैं  खड़े हुए,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
     प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #चालाकी से भरे हुए#

#चालाकी से भरे हुए# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

ख़्वाहिश कब लेती मंज़ूरी,
रहती मन की बात अधूरी,

भाग्य साथ देता तो होती,
मनोकामनाएं  सब   पूरी,

दीदावर मिल जाए सच्चा,
नर्गिस कभी न हो  बेनूरी,

लोग  मुकर जाते वादे से,
रहती होगी कुछ मज़बूरी,

मनचाहा मिल जाए कैसे,
क़िस्मत के हाथों में छूरी,

हरपा हुआ नहीं फल देता,
छल प्रपंच से  रखना दूरी,

जीवन सफ़ल बना देता है,
'गुंजन' श्रद्धा  और  सबूरी,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी#

#ख़्वाहिश कब लेती मंजूरी# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

देख लिया भरपाई करके,
रिश्तों की  तुरपाई करके,

लेन-देन की  परिपाटी में,
शक्कर,दूध,मलाई करके,

कोई नहीं  याद रखता है,
देखा  खूब भलाई करके,

फटे-पुराने   कपड़े   यारों,
टिकते नहीं सिलाई करके,

अनुशासन तोड़कर भागा,
देखा तनिक ढिलाई करके,

फसलों को लहराते देखा,
अहले सुबह गुड़ाई करके,

प्रकृति कोप के आगे कोई,
टिकता नहीं ढिठाई करके,

बूढ़ा बैल बोझ अब गुंजन,
देखा  ख़ूब  ढुलाई  करके,
--शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #देख लिया भरपाई करके#

#देख लिया भरपाई करके# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

एक-एक  कर  चले गए,
बारी  बारी    छले   गए,

दो पाटन के बीचों-बीच,
जितने थे  सब दले गये,

गर्म तेल से भरी कराही,
गिरे तो समझो तले गये,

शोक और दुःख से यारों,
फ़ुरसत  लेकर भले गये,

वक्त रेत सा फिसल गया,
हाथ  अंत  में  मले   गये,

अपनी  आंखों  के  आगे,
टूटा  भ्रम  दिलजले  गये,

संभल नहीं पाया 'गुंजन',
दल-दल में  मनचले गये,
-शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'
      प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #एक-एक कर चले गए#

#एक-एक कर चले गए# #कविता

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Shashi Bhushan Mishra

उल्फ़त के गलियारों में,
घूम  रहे  थे   तारों  में,

आसमान  छू  लेने  को,
भटके खूब  पहाड़ों  में,

रेज़ा-रेज़ा  बिखर  गये,
नाम है अब  बंजारों में,

छपते  रहते  हैं  किस्से,
आए दिन अख़बारों में,

प्रेम  गीत  के  पन्नों पर,
लिक्खे नाम सितारों में,

रात-रात भर  बातें  की,
गुपचुप सिर्फ़ इशारों में,

गुंजन के मन की पीड़ा,
शायद  एक  हज़ारों में,
         -शशि भूषण मिश्र 'गुंजन'           
  प्रयागराज उ०प्र०

©Shashi Bhushan Mishra #आसमान छू लेने को#

#आसमान छू लेने को# #कविता

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