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drnirmalmeena4253
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Dr Nirmal Meena

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Dr Nirmal Meena

पैसा, पैसा ही गुण है, 
हर दोष का मरहम है, 
पैसा इंसान को अलग दिखाता है, 
जो मिटनी है वो पहचान दिलाता है, 
पैसों से अपने मिलते है,
बिकाऊ है मानवता, 
पर हथेली पर सिर्फ लकीरें है टेढ़ी मेढ़ी , 
केवल दो एक संघर्ष दूजी लानत, 
शायद कभी नोट भी होंगे, 
कुछ समय बाद फिर खींचेगा इनका गुरुत्व,अपनों को,परिवार को, रिश्तों को, रिश्तेदारों को, समाज को,

ओहो.............

कोई रोको हमे, 
मैं फिर से सपनों की किश्ती में सवार हो गया, 
संघर्ष,गति,पीड़ा, और गधा बनने को तैयार हो गया,
ये दौड़ भाग, झपटा झपटी ,मच मच, मारा मारी, 
ये नाम, मुकाम,सब जुखाम,तांगा तुलसी सब बेवकूफी, 
और मैं बेवकूफो का सरदार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

बेरोजगार प्रेमी, 
एक रोग है, संक्रमण है स्वतंत्र फैल रही है, 
सब भाग रहे है दूर, मिल रही भीख, 
कुछ शब्दों की, कुछ लम्हों की, 
थोड़ी खुशी की पर आदत है गंभीरता की, 
गंभीरता बिलकुल शव की तरह, मुस्कान रहित, जबाव रहित, हंसी रहित, 
शिकायत शव नहीं करता, 
वो पड़ा रहता है निस्तेज, निष्क्रिय, 
अप्रभावित, गंभीर,निश्चल, अडिग, 
एक वस्तु की तरह, वस्तु परित्यक्त है, 
बिकाऊ है,अनाभास है, 
अंतिम मुकाम कबाड़ी है, 
कबाड़ी में हीरे नहीं जाते, 
वस्तु ही जाती है वो भी मन भरने के बाद, 
टूटने के बाद, हीरे तो प्राण है, 
दृष्टिप्रिय हैं,प्राथमिक है, 
और वस्तु गौण, ये गौणत्व विष है, 
जो विषाक्त कर रहा है समाज को, 
संसार को, दृष्टि को, शब्दों को, 
परिवार को, संबंधो को, दोस्ती को, 
इच्छा को, अमृत सी शिक्षा को, 
बदल रहा है कीचड़ से, 
डिग्री की ढाल भेद, 
गौणत्व का प्रहार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया
(समाज की दृष्टि में बेरोजगार प्रेमी = वस्तु = भिखारि =शव =संक्रमण =कीचड़)

©Dr Nirmal Meena #DARKNESSANDFIRE
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Dr Nirmal Meena


सत्ताइश साल का परपोषि,
घृणित लोक में प्रवासी, 
जहर भरी मझधार में, 
एक क्षीर बूंद का अभिलाषी, 
वो अभिलाषा, चाहत, बंधन,खुशियाँ, संघर्ष, 
फिर मृगतृष्णा का आहार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया।

सोलह साल पढ़ाई की, 
मिले कुछ काग़ज़,
जो रद्दी है, 
सीख जो शून्य है, 
ये शून्यता तो पावन है,
इसे कीचड़ कहते है, 
जुझ रहा है हर युवा इससे, 
फेंक रहे है पत्थर, 
रस्सी की जगह, 
सब लोग जाने पहचाने चेहरे, 
फिर टूटा, गिरा मुंह के बल,
जब अति का अपार हो गया, 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

हर पाप,सज़ा,गाली,घृणा, 
फटकार का हकदार हो गया
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

ये सपने, ये मेहनत,एक घर,परिवार, 
मंज़िल, राहें,कांटे,तृष्णा,अतृप्ति,अधिकार, 
लड़ाई,संघर्ष,मात,आघात,उपहास, बेइज्जती, 
फिर अपनों का शिकार हो गया 
जब से एक युवा बेरोजगार प्रेमी हो गया

ये ताने बंद करो ,
झूठी मुस्काने बंद करो, 
मत करो तमाशा, 
मैं नश्वर हूं, 
सपने दिखाने बंद करो, 
बंद करो इस जज्बे के खेल को,
अहम को तृप्ति देती रेल को, 
ये जेब का वजन बहुत कमीना,
औरों से तोलता अपने मेल को, 
मेल, ये मेल मक्कार है, 
भेड़िये सा सवार है, 
जुझ रही है एक गौ, 
रोते रोते हंस रही है, 
सीख रही है जैसे तैसे वक़्त कस रहा है ताने ,
फिसल रहा है रेत की तरह, 
रिश्तों की तरह, अपनों की तरह, 
सपनों की तरह,पैसों की तरह,

©Dr Nirmal Meena
  #DARKNESSANDFIRE
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Dr Nirmal Meena

 #Sands
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Dr Nirmal Meena

जो कह दू तो गजल हो तुम 
चलू तो राह हो तुम 
पा लूं तो मंजर हो तुम 
सच कहूं तो प्रीत  हो तुम


जो पी लूं तो चाय हो तुम 
जो गा लू तो गीत हो तुम 
जो लिख दूं तो कविता हो तुम 
सच कहूं तो मुहब्बत हो तुम

जो देखूं तो एक हसीन ख्वाब हो तुम
जो महसूस करूं तो एक अपनेपन का एहसास हो तुम
जो दीदार करूं तो ईद का चांद हो तुम
जो इबादत करूं तो आखिरी दुआ हो तुम

 
किताब में संजोया वो फूल हो तुम 
पढ़ लू तो पन्ना हो तुम 
भाप लू तो सांस हो तुम
सच कहूं चाह हो तुम 

जो बहा दू तो लफ्ज़ हो तुम 
जो पी लूं तो अश्क हो तुम 
जो लिख दू तो अलफाज हो तुम 
सच कहूं तो प्रीत हो तुम 
मेरी कायनात हो तुम 
गहरे नशे की शराब हो तुम 
और जो न चाहते हुए भी लग गई वो आदत हो तुम 
चाह , प्रीत , प्यार ,मुहब्बत सब छोड़ दो तो इश्क हो तुम ।

©Dr Nirmal Meena #Apocalypse
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Dr Nirmal Meena

Person's Hands Sun Love प्रायः सुनने को मिलता है की प्रेम करना गलत है , क्योंकि प्रेम विच्छेद हो जाता है , प्रेम विवाह हेतु परिवारजन सहमति प्रदान नहीं करते , और प्रेम में कुछ लोग आत्मदाह कर लेते हैं , किंतु यह कैसे संभव है ?? अगर प्रेम पवित्र है तो अलग अलग नतीजे कैसे प्राप्त होते हैं ??

आत्म मंथन एवम साहित्यिक अध्यायों के आधार पर पता लगा है प्रेम के सात मुकाम होते हैं 

१. दिलकशी - यह प्रेम का प्रथम आधार है जहां हमें कोई इंसान मनमोहक लगता है अर्थात पसंद आता है और दिलकशी हर मनुष्य को होती ही है, किंतु कुछ मनुष्य सिर्फ इसी मुकाम पर खुद को रोक लेते हैं

२. उंस- अर्थात लगाव , जिसको पसंद किया है उस इंसान से लगाव होने लगता है और इस मुकाम को ही आकर्षण कहा जाता है

३. मुहब्बत- जिसे लोग प्रेम का आखिरी भाग समझते हैं और ऐसे लोगों को प्रेम का शाब्दिक अर्थ महज शारीरिक संबंध स्थापित करना लगता है  
यहां तक के लोगों का प्रेम विच्छेद अर्थात ब्रेकअप होता ही है और यही लोग शारीरिक संबंध के उपरांत अन्य साथी की तलाश करते हैं आधुनिक युग में इसी को प्रेम माना जाता है

४. अकीदत - अर्थात भरोसा जिसको हम प्रेम करते हैं उस पर  खुद से ज्यादा होने लगता है , कभी किसी प्रकार की शंका होती है तो तुरंत दूर कर लेते हैं क्योंकि शंका ही बाद में अकीदत के लिए घातक होती हैं 

५. इबादत - भरोसा होने के बाद प्रभु की भांति हम हर पल उसका स्मरण करते हैं और स्मरण को ही इबादत का नाम दिया गया है , ये वो मुकाम है जहां व्यक्ति को बिना अपने प्रिय के कुछ भी अच्छा नहीं लगता प्रत्क्षय या अप्रतक्ष्य रूप से उसे अपने प्रिय की उपस्थिति आवश्यक होती है

६. जुनून - इसमें अपने प्रिय को पाने के लिए हर संभव कोशिश की जाती है चाहे वो संसार से लड़ने की हो या फिर किसी संवैधानिक नियम को चुनौती देने की
ये वो मुकाम है जहां अक्सर प्रेमी या तो सफल होते हैं या विफल किंतु इतना समझ चुके होते हैं की प्रेम का अर्थ पाना मात्र नही होता वरन अपने प्रिय की खुशी के लिऐ ताउम्र प्रयत्न करना होता है और इसे ही अमर प्रेम अर्थात इटार्नल लव कहा जाता है

७. मौत - यह अंतिम मुकाम है जहां स्वयं इन्सान तो आत्मदाह नही करता किंतु जिससे प्रेम किया उसके बिना रह लेता है तो परिवार जन सोचते हैं की प्रेम समाप्त हो गया है और फिर किसी अन्य के साथ रहने को अगर विवश किया जाता है तो सभी धर्मों के अनुसार यह मुकाम सबसे अच्छा है और उस व्यक्ति को लगता है की किसी और को स्पर्श करने या किसी और के साथ जीवन व्यतीत करने से अच्छा तो मौत को गले लगाया जाय अतः कुछ लोग यह अंतिम मुकाम पुर्ण करते हैं जिन्हे वही समाज कायर के नाम से संबोधित करता है किंतु समाज के वही लोग ये नहीं समझ पाते की इन 6 मुकाम तक आने के लिए कितना साहस दिखाया खैर यही अंतिम मुकाम परम सत्य है अतः प्रेम को स्वयं ईश्वर ने जीवन का आधार कहा है

©Dr Nirmal Meena
  #sunlove
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Dr Nirmal Meena

Sea water कुछ ज्ञानी अब कह रहें है की ब्रह्म विवाह नाम की कोई चीज ही नहीं होती तो महोदय आपका ये भ्रम भी दूर किए देता हूं , हिंदू धर्म की मान्यता अनुसार ब्रह्म विवाह की 7 मर्यादा होती हैं जिनमे से अधिकांश मर्यादा आप मानते भी हैं किंतु वो मर्यादा जिसमे स्वयं का लाभ ना हो उन्हें नकारते हैं।
प्रथम मर्यादा - वर पक्ष के वरिष्ठ सदस्य को विवाह प्रस्ताव लेकर कन्या के माता पिता के समक्ष जाना चाहिए क्योंकि कन्यादान तो महादान एवम महापरित्याग है अतः कन्या पक्ष को ही हिंदू धर्म में उच्च स्थान प्राप्त है । इस मर्यादा के अनुसार ही वर पक्ष वधु पक्ष के घर जाकर फेरे लेता है किंतु इस मर्यादा को सम्मानित अग्रज महज अधूरा ही मानते है क्यूंकि वो वर पक्ष से हैं अतः अहंकार की वजह से वो चाहते है की कन्या पक्ष की तरफ़ से ही विवाह प्रयोजन आना सार्थक है क्या यह उचित है या तो मान्यता पूर्ण सही है या पूर्ण गलत??

द्वितीय मर्यादा - बड़ो का आदर सम्मान क्योंकि दोनों पक्षों के वरिष्ठ सदस्य विशेष रूप से पितामह ( दादा जी क्योंकि आप अंग्रेज है अतः इसका अर्थ) एवम पीतामही ( दादी जी) अगर जीवित हैं तो अन्यथा माता पिता के आशीर्वाद से ही ब्रह्म विवाह पूर्ण होता है उनकी अनुमति एवम सहमति के बिना विवाह संपन्न हो सकता है पूर्ण नहीं 

तृतीय मर्यादा - विवाह का संबंध व्यापार के संबंध से नहीं जोड़ा जा सकता इसलिए शुभकामनाओं के अतिरिक्त किसी भी तरह का लेनदेन सर्वथा अनुचित है और जब वर पक्ष को वधु के रूप में गृहलक्षमी और वधु पक्ष को कन्यादान जैसा महापुन्य प्राप्त हो तो अन्य किसी भी प्रकार का लेनदेन कदापि उचित नहिं है किंतु आधुनिक युग में यह मान्यता विलुप्त है क्योंकि लेन देन तो होती है भले ही उसको बेटी की खुशी नाम दो या उपहार नाम दो या समाज में लोग क्या कहेंगे वो डर का नाम दो 

चतुर्थ मर्यादा - यदि विवाह किसी भी गुप्त प्रयोजन हेतु हो रहा हो तो संपूर्णता प्राप्त नहीं करता क्युकी विवाह संबंध स्थापित करने में किसी भी स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होता इसमें वो महाज्ञानी आते हैं जो दहेज की मांग तो नहीं करते किंतु रिश्ता वहीं करते हैं जहां पैसे दिखते हैं

पंचम एवम षष्ठम मर्यादा - विवाह का निमंत्रण वरिष्ठतम सदस्य की ओर से सर्वप्रथम श्री गणेश जी को भेजा जाना चाहिए ताकि इस शुभ कार्य में किसी भी प्रकार का विघ्न न डले

सप्तम मर्यादा - कन्यादान जो की विवाह में सर्वाधिक महत्वपूर्ण विधि है , कन्यादान के बिना कोई विवाह पूर्ण नहीं होता अतः कन्यादान किसी भी प्रकार के भय, संशय अथवा दबाव में नहीं करना चाहिए अन्यथा वो अपूर्ण ही रहता है ।

क्या बच्चों को मर्यादा का , संस्कार का ज्ञान देने से पहले अग्रज अपनी मर्यादाओं का पूर्ण निर्वहन करते हैं ?? क्योंकि एक पिता का दायित्व अगर अपने पुत्र - पुत्री के लिए योग्य साथी चुनना है तो एक पिता का कर्तव्य अपने पुत्र - पुत्री की सहमति जानना भी है ।

©Dr Nirmal Meena #Seawater
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Dr Nirmal Meena

lovefingers कोर्ट मैरिज के औचित्य पर समाज के ज्ञानी और सम्मानीय अग्रजो से पुछा तो सिर्फ एक ही उत्तर मिला की "समाज के लोग जीने नहीं देगे एवम् माता पिता को आजीवन बदनामी का सामना करना पड़ेगा" 
किंतु इसका सार्थक उत्तर तो इन ज्ञानियों को तब पता होगा न जब सत्य का आभास मात्र होगा । ये पढ़ने के बाद शायद ज्ञानी अपने नकारात्मक उत्तर को सकारात्मक जवाब की भांति बता सकेंगे क्योंकि अबोध बच्चों को सार्थक शिक्षा परिवार से ही मिल सकती है और उसके लिए आवश्यक है की परिवार के अग्रजो को भी सार्थक ज्ञान हो अन्यथा समाज के नियमों के नाम पर हो रहे अत्याचार को आगामी पीढ़ी अग्रिम स्तर पर ही लेके जायेगी उसके जिम्मेदार आप सभी होंगे।

कोर्ट मैरिज अनुचित इसलिए है क्योंकि हिंदू धर्म में शादी को विवाह नहीं ब्रह्म विवाह कहा जाता है अर्थात कोई भी विवाह तभी ब्रह्म विवाह माना जायेगा जब एक पिता अपनी पूर्ण स्वेच्छा से अपनी पुत्री का कन्यादान कर उसे शुभ आशीष प्रदान करें एवम वर के पिता किसी भी प्रकार के लोभ ( आध्यात्मिक वस्तु , आभूषण , व्यवसाय , या भौतिक मुद्रा आदि) वधु को अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार करे एवम वर बिना तन की सुंदरता के आजीवन अपनी पत्नी को गृहलक्ष्मी के रूप में स्वीकार करे तब ही हिंदू धर्म के अनुसार उसे ब्रह्म विवाह कहा जायेगा ।
इसके संदर्भ में साक्ष्य स्वयं भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ है जिसकी प्रतिमा सामाजिक विवाह के दौरान दिखाई जाती है , जहां ब्रह्म विवाह हेतु भगवान शिव ने सुनट नर्तक का अवतार लिया एवम विश्वविख्यात नटराज की मूर्ति उसी का प्रमाण है। 
अतः यदि बच्चे कोर्ट मैरिज को विवाह मानते है तो अनुचित है किंतु माता पिता भी सामाजिक विवाह में हिंदू धर्म का पालन नहीं करते वो भी सर्वथा अनुचित ही होना चाहिए।
अतः या तो स्वयं को हिंदू ना कहें या स्वयं द्वारा दहेज के प्रलोभन में करवाई गई शादी को जन्म जन्म का बंधन बताने का कष्ट न करें क्योंकि ये साक्ष्य अगर गलत है तो शादी में शिव -पार्वती की प्रतिमा दिखाना भी उचित नहीं है और न ही कोई धार्मिक ग्रंथ सही है।
और यदि आप सभी ज्ञानी यह कहते हैं की पिता पूर्ण स्वेच्छा से कन्यादान करते हैं तो समाज में वही पिता रिश्ता देखने से पहले अपनी जमा पूंजी किसलिए देखता है इसका जवाब देने का कष्ट करें 
धन्यवाद

©Dr Nirmal Meena
  #lovefingers
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Dr Nirmal Meena

हां सच है आपने अच्छे परिवार में रिश्ता करना चाहा , लेकिन सच यह भी तो है की आपकी लालसा की छलनी में अच्छा परिवार वही है जो कम से कम 20 लाख खर्च कर सके ;
हां सच है कोर्ट मैरिज करना सामाजिक दृष्टि से गलत कदम है , लेकिन सच यह भी तो है की सामाजिक शादी को मान्यता भी उसी मैरिज सर्टिफिकेट से मिलती है ;
हां सच है आपने बच्चों के उन्नत भविष्य के लिए नौकरी वाली वधु की चाह की, लेकिन सच यह भी तो है उन्नत भविष्य के नाम पर हर महीने वधु की सैलरी नामक किस्त निहित है;
हां सच है महज लड़की के चरित्र को महत्वता नही दी जाती, लेकिन सच यह भी तो है की वैवाहिक जीवन का आधार ही लड़की का चरित्र है ;
हां सच है बच्चों को सही और गलत की परख नही होती , लेकिन सच यह भी तो है की आपका सही केवल आपके फायदे की स्तिथि में ही सही है वरना सर्वथा गलत है ;
हां सच है प्रेम को समाज स्वीकार नहीं करता , लेकिन सच यह भी तो है वही समाज सम्बोधन के लिए राधे राधे और सीताराम शब्द उपयोग में लेता है ;
क्या सही है और क्या गलत है ये बहस हो सकती है लेकिन आप अगर मेडिकल स्टोर पर जाकर पेट्रोल मांगोगे तो वो ना ही करेगा , 
समाज के प्रतिष्ठित लोग पूरी शान से कहते हैं दहेज मांगने गलत है लेकिन हकीकत तो यह है जनाब की दहेज लेना गलत है आप मांग नहीं रहे लेकिन आपने आधार ही वही बनाया है जहा उपहार स्वरूप दिया जाएगा , अगर आप मयखाने में जाके दूध की मांग करोगे तो वो मना ही करेगा ना,
समाज के पढ़े लिखे अधिकारी बड़ी शान से कहते हैं मेरे ससुराल वालों ने फॉर्च्यूनर दी है , 1₹ नगद दिया है और फिर वही जनाब अपने कोर्ट में दहेज हिंसा के मामले में कानूनी धाराओं के आधार पर सजा का प्रावधान करते हैं,
समाज के हर घर में टीवी सीरियल्स में दहेज प्रताड़ना को हिंसक बताया जाता है लेकिन उसी घर में सामने बैठे लड़के की शादी में क्या क्या लेना है वो तय होता है ,
समाज में निमंत्रण पत्र बांटे जाते है की आइए आपकी उपस्थिति इस वर वधु के आगामी जीवन को कुशल मंगल करेगी किंतु वही अतिथि ये कहते हैं दहेज के सामान में एसी कम है , गाड़ी स्विफ्ट डिजायर की जगह ब्रेजा होनी चाहिए थी साहेब आपको आशीर्वाद प्रदान करने के लिए कहा गया है अपनी तुच्छ मानसिकता का परिचय देने के लिए नहीं ,
समाज में लड़के की जानकारी से उसके व्यवहार को उत्तम बताया जाता है लेकिन वही जानकारी अगर लड़की रखे तो उसे चरित्रहीन,
नियम तो अच्छे है शायद एक मैं ही हूं जिसने गलत किताब और गलत संगति में अपना जीवन व्यतीत किया है 🙂

©Dr Nirmal Meena worst reality of society

worst reality of society #समाज

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Dr Nirmal Meena

Nature Quotes शायद किताबो में लिखी हर बात गलत है क्युकी एक वक़्त था जब 10 नंबर के निबंध में सवाल होता था दहेज़ प्रथा समाज के नाम पर कलंक है इस पर अपने विचार व्यक्त करो ?? और उसी सवाल का जवाब जितना सच होता था उतना ही अच्छा निबंध होता था किन्तु वो शिक्षा जो उन किताबो ने दी वो तो कही सार्थक ही नहीं है , क्युकी समाज के नजरिये वाले चश्मे ने उस समय उस सोच को सराहा फिर सिखाया गया की उस सोच को भूल जाओ क्युकी वो सोच भीख मांगने का प्रारम्भिक आधार था 
 सिखाया गया की कन्या भ्रूण हत्या गलत है लेकिन क्यों गलत है ?? क्या मतलब जब उस कन्या को बड़ा होकर अपने चरित्र के लिए , अपनी भावनाओ के लिए , अपनी खुशियों के लिए दहेज़ नामक चालान चुकाना ही पड़ेगा हाँ शायद सोच गलत है किन्तु किसकी मेरी या इन भिखारियों की जिनके हाथ में कटोरा तो नहीं किन्तु आँखों में पैसे की इतनी लालसा है की अपने इरादों को सही साबित करने के लिए परिवार , समाज , संस्कारो का हवाला दिया जाता है ??
सिखाया जाता है लड़का लड़की में कोई फर्क नहीं है किन्तु फर्क तो है जनाब क्यों शादी में सिर्फ लड़की वाले गिफ्ट देते हैं क्यों नहीं लड़के वाले दहेज़ देते , समान है तो समानता कहाँ है ??
सिखाया जाता है की अहिंसा परोधर्म लेकिन ये भी सार्थक नहीं लगती क्यों एक पति अपने गुस्से में अपनी पत्नी और बच्चो पर हाथ उठा सकता है और क्यों एक पत्नी अपनी सही बात को रखने से पहले भी हजार बार डरती है ??
सिखाया जाता है की शादी दो दिलों का मेल होता है लेकिन जब शादी की बात आती है तो परिवार की आय ही रिश्ता करने का  एक मात्रा आधार होता है  ??
सिखाया जाता है की बलात्कार विकृत मानसिकता का परिणाम है लेकिन क्यों वैवाहिक जबरदस्ती को सही माना जाता है क्या सच में विवाह का सार्थक अर्थ महज लड़के की कामवासना , गुस्सा निकालने , गालियां देने का आधिकारिक तरीका है और लड़की को सिर्फ बच्चे पैदा करने या काम करने का महज एक साधन माना जाता है ??
सिखाया जाता है की लड़का या लड़की होने के लिए जरुरी क्रोमोजोम पुरुष के वीर्य में होता है किन्तु क्यों लड़की को ही इसके लिए प्रताड़ना दी जाती है ??
सिखाया जाता है की सिद्धांत और कानून के हिसाब से चलना ही अच्छा व्यक्तित्व होता है किन्तु क्यों हर बात पर उन्ही सिद्धांत और कानूनों को नजरअंदाज किया जाता है ??
सिखाया जाता है की पिता से अच्छा मित्र और कोई नहीं होता फिर क्यों नहीं वो पिता अपने मित्र की उचित भावनाओ को सुनता ??
सिखाया जाता है माता पिता अपने बच्चे के दर्द को सह नहीं पते फिर क्यों वही माता पिता अपने बच्चो को एक ऐसा दर्द देते है जो इस जन्म में कभी दूर नहीं हो सकता है ??

©Dr Nirmal Meena #NatureQuotes
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Dr Nirmal Meena

heart समाज के नियम शराब की उस बोतल की तरह है जो भोमिया जी के जाकर प्रसाद होती है और सीधा लेने पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक , क्युकी समाज के बड़े ठेकेदार उर्फ़ 5 लोग जब खुद की लड़की के लिए बिना दहेज़ वाला रिश्ता ढूंढ लेते हैं तो कहते हैं की धन्य हैं वो माँ बाप जिन्होंने ऐसे संस्कार वाले लड़के को पैदा किया और जब उन्ही ठेकेदार के बेटे बिना दहेज़ शादी की बात करते हैं तो कहते हैं की समाज में लोग क्या कहेगे हमारा नाम डूबा रहा हैं , साहिब इसका मतलब तो आपका वो बिना दहेज़ वाला दामाद तो पुरे खानदान को डूबा गया और आप वाहवाह करते रहे , खेर बड़े ठेकेदार हैं एक बार गलती हो सकती हैं चलो मान लिए समाज के नियम 
किन्तु जब दुसरो के बच्चो की शादी होती हैं तब ठेकेदार जी क्यों ज्ञान देते हो की बच्चो की खुशी जहाँ हैं वही करो ताकि बाद में दिक्कत न हो नौकरी और पैसे से घर थोड़ी चलता हैं लेकिन ठेकेदार जी जब आपके बच्चे की शादी की बात आती हैं तो आपका यह नियम भी गलत सिद्ध होता हैं ऐसा क्यों ?? चलो बहुत बड़े समाज के ठेकेदार से ये गलती तो हो ही सकती हैं मान लिया ये नियम भी 
किन्तु जब बात दुसरो को ज्ञान देने की आती हैं या स्टेज पे खड़े होक भाषण देने की बारी आती हैं तब ठेकेदार जी कहते हैं नौजवान इतने काबिल बनो की आपकी शादी में वधु पक्ष को कर्जा लेने की नौबत न आये और ठेकेदार जी चार दीवारी के कमरे में अपने इस नियम की बुरी तरह धज्जिया उड़ाते हैं वाह ठेकेदार जी आप और आपका समाज। 
रुकिए जनाब बहुत बार सुना हैं मैंने की बाजार में पैसे के लिए देह व्यापार गलत हैं किन्तु आपके सम्मानीय समाज के नियमो के अनुसार तो आप लोग पुरे जीवन काल के पैसे लेके अपने सुपुत्र को किसी और के साथ सोने को शादी नमक मान्यता देते हैं ,
महोदय यदि आपके नियमो की हकीकत इतनी ही मात्र हैं तो खुद को समाज का ठेकेदार या सम्मानीय , जागरूक नागरिक कहने से पहले जागरूकता और सम्मान की परिभाषा का पुनः अवलोकन करिये। 
और यदि आपके समाज के ये नियम सही हैं तो इनको उपयोग में लेने के लिए आपको एक सामाजिक स्थल तय करना चाहिए जहाँ आप अपने लड़के लेके जाये और खरीददार पैसे लेके आएंगे आपके हर नियम को सैद्धांतिक मान्यता तो नहीं किन्तु आपकी तुच्छ मानसिकता को सन्तुस्टि मिल जाएगी।  
और समझाया उनको जाता हैं जिनका ईमान बिकाऊ हो यहाँ तो न ईमान और न ही इज्जत बिकाऊ हैं अतः अपना दोगला ज्ञान अपने पास रखिये और उसे अपग्रेड कर लीजिये क्युकी आगे और भी शादी अरे नहीं नहीं और भी सौदे करवाने हैं ताकि झूटी शान और इज्जत बरक़रार रहे। 
अरे ठेकेदार साहेब एक बात और आपके नियम तो महज मध्यम वर्गीय परिवार तक ही सिमित हैं न क्युकी उच्च वर्गीय परिवार के लोगो या उच्च पद पर आसीन व्यक्ति के सामने तो आप यह कहते हो न की साहेब आप तो समझदार हो गलत थोड़ी सोच सकते हो जरा एक शाखा उस तरफ भी खोलो ताकि आपके नियमो को सामाजिक मान्यता मिल सके
धन्यवाद

©Dr Nirmal Meena
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