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ज़िंदादिल संदीप

मैं फ़कीर बड़ा बेकाम सा..लिखता रहता बदनाम सा.. मेरी कलम का हैं बस साथ मुझे ..रंग चुना है इंकलाब का ...

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ज़िंदादिल संदीप

राहतों के इंतज़ार में ख़ुद को यूं ही जलाता हूं अब।
कहीं लम्हों में तो कहीं सदियों तक ठहर जाता हूं अब।
मुखातिब हूं जबसे महबूब की यादों भरे जहां से।
कुछ लिखता हूं कभी कुछ लिखना भी भूल जाता हूं अब।।
दीदार को उसके रातें सड़कों पर ही बिताता हूं अब।
चांद है वो मेरा। चांदनी से ही इश्क़ निभाता हूं अब।
पूरे आसमां के सितारें है खफा खफा से मुझसे।
बस इक उसकी सूरत से ही तो दिल लगाता हूं अब।।
वो ना भी है तो है तस्वीरें उसकी। इनके संग ज़िन्दगी बिताता हूं अब।
बोलती नहीं वो हमसे अब कभी। तस्वीरों को शायरी सुनाता हूं अब।
ये फ़िराक़, ये वाबस्तगी उनके ख्यालों की है कुबूल।
कुबूल है हर इक ज़ुल्म उनका, आशिक़ हूं उनका यही बताता हूं अब।।

©ज़िंदादिल संदीप #intezaar
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ज़िंदादिल संदीप

परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता

बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

हजारों शेर मेरे सो गये कागज की कब्रों में
अजब मां हूं कोई बच्चा मेरा ज़िन्दा नहीं रहता

तुम्हारा शहर तो बिल्कुल नये अन्दाज वाला है
हमारे शहर में भी अब कोई हमसा नहीं रहता

मोहब्बत एक खुशबू है, हमेशा साथ रहती है
कोई इन्सान तन्हाई में भी कभी तन्हा नहीं रहता

कोई बादल हरे मौसम का फ़िर ऐलान करता है
ख़िज़ा के बाग में जब एक भी पत्ता नहीं रहता

- बशीर बद्र

©ज़िंदादिल संदीप #allalone
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ज़िंदादिल संदीप

ज़माने भर के रंजिशो से रिश्ता तोड़ आया मैं।
दिल - मोहल्ले में था जो घर आज उसको छोड़ आया मैं।
अब तो चल रहे ऐसे सफ़र में की नहीं है अपनी ही चाह।
ख़ुद से ही अब तो ख़ुद का रिश्ता तोड़ आया मैं।।

©ज़िंदादिल संदीप #Love
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ज़िंदादिल संदीप

गमों के तूफान में ख़ुद को आजमाता हूं मैं।
ना जरूरत कंधों की, ख़ुद का जनाजा उठाता हूं मैं।
काम क्या है जो हूं मशरूफ - ए - ख़ुदा बना?
काम की तो कोई बात कभी नहीं करता जाता हूं मैं।

बिजलियों की बारिश में भी ख़ुद पर ही ज़ुल्म उठाता हूं मैं।
रहा कहां किसी के घर में, दिल में ही वक़्त अपना बिताता हूं मैं।
आने को आती है, जाने को जाती है ज़िन्दगी में लम्हें।
किसी भी लम्हें में कहीं एक पल को कहीं कहां ठहर जाता हूं मैं।

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ज़िंदादिल संदीप

वतन पर फिदा हूं अपना तो है नाम तिरंगा। हर शाम तिरंगा।
लहू में बहता है जो वो खून का हर सलाम तिरंगा।।
कहीं नहीं झुके जो हम दिल का है आन तिरंगा।
एक नहीं सौ बार मरूं तेरे लिए। मेरी तो पहचान तिरंगा।।
भूल गए हो तुम जो आज अपना वो पैगाम तिरंगा।
सबका हूं मैं मजहब से दूर। अपना तो बस इक नाम तिरंगा।।
बना हूं पहचान इस मुल्क की पर लबों पर सुबहों - शाम तिरंगा।
बोलो क्या समझा तुमने? भगत है तो है बस अरमान तिरंगा।। #bhagatsingh
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ज़िंदादिल संदीप

चलते है किस सफ़र में? जाने कौन सी मंजिलें हमें बुलाती है?
 अपनी हर बेफ़िक्री की ख़ामोशी क्यों शोर ये मचाती है?
दफ़न पड़ा था जाने कितने अरसे से रूह होकर तन्हा।
तेरी इश्क़ में देख खुदाई ख़ुद ख़ुदा को यहां बुलाती है।
नाम का क्या करूं? इक दिन वो भी साथ छोड़ जाती है।
रहेंगे मीठे से बोल तेरे, तुझको कोई नया नाम जो दे जाती है।
छोड़ देते है तुझे वो भी जिनसे सीखा तूने ये हुनर।
चल देखते है उनके दुआओं से किस्मत तुझे कहां लेे जाती है? ज़िंदादिल 
#alonesoul

ज़िंदादिल #alonesoul

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ज़िंदादिल संदीप

नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः ।
न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः ।। #meltingdown
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ज़िंदादिल संदीप

चाह की कमी में तू है
आँख की नमी में तू है
आंसूं में तू प्यास में तू
सांस में तू
बेवजह हंसी में तू है
जो दिखे उसी में तू है
अश्क में तू, रश्क में तू
जान में तू
इश्क भी किया…

ज़ीस्त की सच्चाईयों से
रूह की गहराईयों से
रात की तन्हाइयों से
तू गुज़र ज़रा… #darkness
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ज़िंदादिल संदीप

कोई नई ख़्वाब क्यों ना इन आंखों में लाएं हम? 
है दर्द जो बहुत भरा क्यों ना उसे भूल जाएं हम? 
होती रहती है ज़िन्दगी में कोई ना कोई कशमकश।
कशमकश में क्यों जिए? क्यों ख़ुद को मिटाएं हम? 

बाजुएं खोली है तो क्यों ना ज़िन्दगी को गले लगाएं हम?
है गिरफ्त में अभी ज़िन्दगी। बेबसी ही क्यों बढ़ाएं हम? 
रिश्तों की नाजुक दौर में जब इंसान है ख़ुद से उलझा।
ऐसी उलझनों में क्यों ना फ़िर से गीत खुशी के गाएं हम? 

हो रहा जो कुबूल था हमें। अपनी गलतियों से क्यों ना सीख जाएं हम? 
शाम सवेरे है जो खौफ हर कहीं। इस खौफ से क्यों ना नज़रें मिलाएं हम? 
शायद ना हो ज़िन्दगी लंबी पर हो दरिया सी बलखाती सी।
इस बहती दरिया के जैसे क्यों ना सागर में इक दिन मि8ल जाएं हम?

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ज़िंदादिल संदीप

a conversation with life

There I was looking for the stars.
All around me now is the fear of scars.
Closed by the walls silently we live.
Spontaneous pain is what we always give.
Millions stranded on stations waiting for a train.
where to live? where to die? asks the human brain.
I was there when greed was not a essentiality.
I was there when nature was full of flair.
Noone assumed these days are so near.
Myself life, standing by you have no fear. 
Don't be slaves bounded by chains.
Love thy all share the grains.
This too shall with a lesson learnt along.
BE MORE HUMANE NOT RIGHT OR WRONG. #Corona_Lockdown_Rush
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