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अर्श

जी, मैं आकाशवाणी और दूरदर्शन की ऑडिशन ड्रामा आर्टिस्ट हूँ,साथ ही उदघोषिका, कार्यक्रम संचालिका, समाचार वाचिका के साथ अन्य रचनात्मक, कलात्मक और साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न रही हूँ।😊🙏 इलेक्ट्रोनिक एवं प्रिंट मीडिया से भी जुड़ी हूँ।समाचार सम्पादन के साथ सामयिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक लेखन विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के लिये किया है।फिलवक्त स्वतंत पत्रकारिता और साहित्यिक लेखन कर रही हूँ।आकाशवाणी, दुरदर्शन और रंगमच के लिये अपना कलात्मक योगदान दे रही हूँ।सामाजिक संस्थाओं से भी जुड़ी हूँ।राँची मेरी कर्मभूमि है... पटना में भी आकाशवाणी और दूरदर्शन में कार्यक्रम किया है मैंने..... फ़िलवक्त वाराणसी मेरी साधनास्थली और कर्मभूमि है। मैं अनामिका अर्श , fb पर Anamika Annu... और ये है मेरा संक्षिप्त परिचय,, विवरण...👏😊❤।

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अर्श

White " वन्दगी "

कभी फूलों की सेज...
कभी काँटों  का सफ़र...
अनुभूतियों की पाठशाला है जिंदगी।

बोलने से पहले तौल लिया करो....
कर्म करने से पहले सोंच लिया करो....
अंजाम देख कर कहीं हो ना शर्मिंदगी।

नहीं करती मैं....
पूजा/इबादत/प्रार्थना/गुरुवाणी।
सृष्टि के हर शै से करती हूँ प्यार....
मन/कर्म/वचनों से किसी को वेदना न देना ही है परमात्मा की वन्दगी।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
  #life_quotes
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अर्श

White स्रष्टा हूँ मैं....
बिखर कर हो सकती नहीं निढ़ाल....
बदल दूँगी सारा मंजर....
पहले जरा स्वंय को लूँ सम्भाल....।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
  #alone_quotes
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अर्श

White कभी बरखा की रिमझिम
कभी रेगिस्तान की झुलसती धूप
कभी अमावस की स्याह घनेरी रात
कभी चटक चाँदनी की बरसात
कभी 
कभी मुहब्बत की तपिश में पिघलता जिस्म से रूह तक का सफ़र
कभी सर्द अजनबीपन से ठिठुरते जज्बात
कभी हँसी कहकहों से खनकती बातें
कभी आँसुओं की बाढ़ से भीगी रातें
कभी मौत के भय से सिमटती जिंदगी
कभी मृत्यु के शाश्वत सत्य निखरती जिंदगी
जिंदगी को कब कौन समझ पाया है दोस्त
जी लेती हूँ अब मैं हँसी ख़ुशी के पल जी भर के
कभी महबूबा सी कभी क़ातिल सी 
जिंदगी को समझने की  कोशिश में अब तक तो मैंने जिंदगी को सिर्फ गंवाया ही था दोस्त।

स्वरचित: "अनामिक अर्श "

©अर्श
  #short_shyari
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अर्श

White कैसे करे कोई ऐसे लोगों पर यकीन....
जो जुबान पर शहद और दिल में ज़हर लिये फिरते हैं...
वक़्त के साथ बदल जाती है जिनकी फितरत।

मनुष्य की कलुषित दृष्टि ने ...
ऊंच/नीच ,अमीर/गरीब/खूबसूरत/बदसूरत का पैमाना बनाया....
किसी प्राणी में भेदभाव नहीं करती कुदरत।

इंसान को हैवान बना देती है..
हरियाली को बंजर....
पालने वाले का सर्वस्व जला देती है....
अजीब बला है ये नफ़रत।

न खरीदने से मिलती है....
न छीनने/हड़पने से या भीख में....
निष्काम कर्म व निस्वार्थ प्रेम से मिलती है इज्ज़त।

मंदिर/मस्जिद/गुरुद्वारा व चर्च में कैद नहीं है परमात्मा....
कर्मकांड का पाखंड/आडम्बर नहीं है धर्म...
रोते हुए को हंसाना है सबसे बड़ी इबादत।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
  #sad_shayari
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अर्श

White ' न तुमसे मिलने की खुशी...
ना है बिछड़ने का कोई गम...
तुम्हारे ही जैसे हो गये हैं....
अब मेरे भी जज्बात सनम।

जिंदगी बाहें फैलाये मुंतजिर थी मेरी....
मैं गाफिल थी तुम्हारी फ़रेबी मुहब्बत में....
ख़ुद के इश्क़ में गिरफ्तार हुई मैं...
तोड़ दिये मैंने परनिर्भरता के सारे भरम।

स्वतंत्र हूँ मैं....
मुक्त हूँ तमाम जानलेवा बंदिशों से....
आत्मनिर्भर हूँ मैं आश्रित नहीं....
शुक्रिया तुम्हारी बेवफाई का
उस सम्बन्ध का टूटना लाजिमी है....
जिसके आधार में हो जुल्मोसितम।

प्रेम वासना नहीं उपासना है...
इश्क़ इबादत है आराधना है....
तिजारत करने वाला क्या समझेंगे...
प्रेम है अनमोल रतन।

दो पल का किस्सा नहीं...
जन्मोजन्म का रिश्ता है....
जिस्म बेशक ख़ाक हो जाये...
रूह का साथ निभाती है मुहब्बत जानम।

(स्वरचित: अनामिका अर्श)

©अर्श
  #love_shayari
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अर्श

"समर्पण " 

हो अंतस में प्रेमभाव तो....
 उपहार बन जाता है जीवन।

गर वर्तमान में रहना आ जाये तो....
उत्सव बन जाता है हर पल/हर क्षण।

मुसाफिर हैं हम , है दुनिया रैन बसेरा....
 सत्य की इस तपिश से शांत हो जाता है मन।
 
सफेदपोश मुखौटों में बेशक छुपा लो....
अपने अंतर्मन की कलुषता...
स्वयं से नज़र मिलाओगे कैसे
जब तुम्हारे सत्य का अक्स दिखायेगा दर्पण।

शुभ विचारों का प्रस्फुटन तभी सम्भव है....
जब चेतना को मिले मुक्त आध्यात्मिक गगन।

तानाशाही की मूढ़ता ही....
 बांधती है तेरा/मेरा की संकीर्णता में....
आत्मीय सम्बन्ध निर्बन्ध हैं....
आत्मा मुक्त है शाश्वत है...
आत्मा को बांध सकता है सिर्फ प्रेमिल बंधन। 

साँस साँस है प्रभु की सौगात
तू किस अहंकार में अकड़ता है...
शिवशक्ति के चरणों में बैठ जा....
कर दे अपने " मैं " का समर्पण।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
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अर्श

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अर्श

न ज्ञान के अभिमान से...
न ध्यानी के मान से...
तुम तो रास रचईया हो कान्हा...रिझाना होगा तुम्हें...
  नृत्य/संगीत /प्रेमगान से....
पुकारती हूँ मैं तुम्हें दिलो जान से....

तुम हो चितचोर मेरे...
मेरी आत्मा को भी आलोकित कर दो....
अपनी स्नेहिल मधुर मुस्कान से।

तुम प्रियतम मेरे.... गुरु तुम्हीं हो
अर्जुन की तरह मेरे प्राणों को भी....
अभिसिंचित कर दो गीता के महा ज्ञान से।

न राधा सा प्रेम है मुझमें ना मीरा सी तपस्या है....
मैं अकिंचन तेरे द्वार पड़ी कृष्णा
एक नज़र डाल दो मुझ पर.... जी उठूँ मैं शान से।

न कर्मकांड के भंवरजाल से... न दिखावे के आडम्बरों से...
बहुत सरल हैं द्वारकाधीश.... मिल जाते हैं भक्तिमय गुणगान से....।

तुम्हें पाना नहीं मुझे... तुममें खो जाना है....
चाहे राधारानी का चरणरज ले दिव्य प्रेम से या फिर मौन ध्यान से।

कोयला से कंचन होने लगी मैं....
आत्मिक सौंदर्य से खिलने लगा मेरा तन/मन सांवरे...
अनाहद के अमृतस्वर पे....
हो रहा मेरे प्राणों का स्वशासन...
तुम्हारे प्रेमगीतों के उन्मान से।

बस जाओ मेरे मनमंदिर में मनमोहना....
दे दो मेरी धड़कनों को अपनी करुणा का स्पन्दन....
मेरा रोम रोम दे रहा तुम्हें नेह निमंत्रण....
सार्थक कर दो जीवन मेरा अपने करुण अहसान से।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
  #relaxation
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अर्श

White जो जानते हैं झुक कर झुका लेने की कला....
टल जाती है उनके कौशल से हर बला...।
जिनकी शख्शियत में विनम्रता है....
सम्बन्धों के विसात पर हार कर भी जाते हैं जीत....।

जिन परम्पराओं/प्रथाओं ने शर्मशार किया मानवता को....
फौरन जला डालो उन्हें...
जिन रस्मों से परस्पर प्रेम/सम्मान बढ़े....
समानता का अहसास मिले...
चलो बनाएं ऐसे प्रेमिल रीत।

तन से तन का ही नहीं....
आत्मा से गठबंधन करती है....
नर/नारी में नारायण/नारायणी का दर्शन कराती है प्रीत।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

©अर्श
  #car
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अर्श

' प्रकृति की क्रोधाग्नि'

जेठ की चिलचिलाती दोपहरी....
आग उगलता सूरज...
क्रोधाग्नि में सुलगती प्रकृति...
सूखते नदी/झरने/कुएं।पोखर...
तपता कंक्रीट का जंगल...
मानव संग पशु/पंक्षी सभी हो रहे बेहाल....
कृत्रिम साधनों से प्रचंड गर्मी से रक्षा कब तक...?
विज्ञान से मदान्ध हो कर....
सनातन जीवन शैली का सत्यानाश किया....
पेड़/पहाड़/जंगलों का विनाश कर....
खड़ी कर दी गगनचुंबी इमारतें/मॉल/ इंटरनेट की टावरें....
अहंकार में भूल गये तुम कि तुम इंसान हो भगवान नहीं....
प्रकृतिप्रदत्त साधनों के दुरुपयोग के
 भयंकर परिणाम नहीं बच पाओगे....
वातानुकूलित कमरे में स्वंय को कब तक बचाओगे...?
भूकंप का एक झटका पल में धूल धूसरित कर देगागगनचुंबी अट्टालिकाओं को....
सुनामी की एक लहर बहा ले जाएगी अपने साथ तुम्हारी सारी कलाकारी को...।
कप्यूटर/इंटरनेट के युग में अब सवेदनशील मनुष्यता का निवास नहीं..... रोबोट हो गया है मनुष्य....
पाश्चात्य संस्कृति की आधुनिकता की दौड़ में खो रहा है अपनी अनमोल आत्मीयता....
कृत्रिम साधनों के अत्यधिक प्रयोग से क्षय हो रहा है मनुष्य के प्रतिरोधक क्षमता का...
गम्भीर बीमारियों को/महामारियों को खुला आमंत्रण मिल रहा है....
गला काट प्रतिस्पर्धा में , स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बेमानी हुई....
 मासूम नौनिहाल मानसिक अवसाद का शिकार हो रहे....
ये कैसी करुण कहानी हुई...
कैसी सभ्यता है ये ,कैसा ये विकास है....
पढ़े/लिखे मूर्खों से सनातनी संस्कृति का हो रहा ह्रास है...
विदेशियों से सीखना है तो सीखो उनसे अनुशासन... सीखो उनसे कर्मठता/कर्तव्यनिष्ठता....
विदेशी संस्कृति के कचरे से अपनी जिंदगी को तबाह होने से बचाओ....
अपनी सनातनी संस्कृति की शरण में आओ....
लगाओ पेड़/पौधे....
नदी/तलाबों/झरनों को स्वच्छ रखो....
पशु/पंक्षियों से मत छीनों उनकी जमीन/उनका आकाश....
संरक्षण करो पर्यावरण का....
करो अपनी आत्मीयता का विस्तार...
मानवीय सम्बन्धों के साथ ही सम्पूर्ण सृष्टि से करो प्यार....
देखना सृष्टि भी अपनी करुणा बरसाएगी....
प्रकृति माँ है अपनी संतानों के जीवन की रक्षा के लिए संजीवनी बन जायेगी
संतुलित होगा पर्यावरण... हर जिंदगी में बहार खिलखिलायेगी...।

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

(स्वरचित:अनामिका अर्श)

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