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harshityadav9542
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Satish Yadav

दिल्लगी कर जिंदगी से दिल लगाकर चल,ज़िन्दगी है थोड़ी, थोडा मुस्कुरा के चल!!

https://www.youtube.com/@mere_Ram_mere_kanha

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Satish Yadav

White श्लोक 27 
 तान्समीक्ष्य स कौन्तेयः सर्वान्बन्धूनवस्थितान्।,कृपया परयाविष्टो विषीदन्निदमब्रवीत् ॥27॥ 
 अर्थ:
 जब कुन्तिपुत्र अर्जुन ने अपने बंधु बान्धवों को वहाँ देखा तब उसका मन अत्यधिक करुणा से भर गया और फिर गहन शोक के साथ उसने निम्न वचन कहे।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 26 
 तत्रापश्यत्स्थितान् पार्थः पितृनथ पितामहान्।,आचार्यान्मातुलान्भ्रातृन्पुत्रान्पौत्रान्सखींस्तथा,श्वशुरान्सुहृदश्चैव सेनयोरुभयोरपि ॥26॥ 
 अर्थ:
 अर्जुन ने वहाँ खड़ी दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच अपने पिता तुल्य चाचाओं-ताऊओं, पितामहों, गुरुओं, मामाओं, भाइयों, चचेरे भाइयों, पुत्रों, भतीजों, मित्रों, ससुर, और शुभचिन्तकों को भी देखा।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 25 
 भीष्मद्रोणप्रमुखतः सर्वेषां च महीक्षिताम्।,उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरूनिति ॥25॥ 
 अर्थ : 
 भीष्म, द्रोण तथा अन्य सभी राजाओं की उपस्थिति में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि हे पार्थ! यहाँ पर एकत्रित समस्त कुरुओं को देखो।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 24 
 सञ्जय उवाच।,एवमुक्तो हृषीकेशो गुडाकेशेन भारत।,सेनयोरुभयोर्मध्ये स्थापयित्वा रथोत्तमम्॥24॥ 
अर्थ :
 संजय ने कहा-हे भरतवंशी धृतराष्ट्र! निद्रा पर विजय पाने वाले अर्जुन द्वारा इस प्रकार के वचन बोले जाने पर तब भगवान श्रीकृष्ण ने उस भव्य रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले जाकर खड़ा कर दिया।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 23 
 योत्स्यमानानवेक्षेऽहं य एतेऽत्र समागताः।,धार्तराष्ट्रस्य दुर्बुद्धेयुद्धे प्रियचिकीर्षवः ॥23॥ 
अर्थ : 
 मैं उन लोगों को देखने का इच्छुक हूँ जो यहाँ पर धृतराष्ट्र के दुश्चरित्र पुत्रों को प्रसन्न करने की इच्छा से युद्ध लड़ने के लिए एकत्रित हुए हैं।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 21-22 
 सेनयोरुभयोर्मध्ये रथं स्थापय मेऽच्युत ॥21॥,यावदेतानिरीक्षेऽहं योद्धकामानवस्थितान्।,कैर्मया सह योद्धव्यमस्मिन् रणसमुद्यमे ॥22॥ 
 अर्थ :
 अर्जुन ने कहा! हे अच्युत! मेरा रथ दोनों सेनाओं के बीच खड़ा करने की कृपा करें ताकि मैं यहाँ एकत्रित युद्ध करने की इच्छा रखने वाले योद्धाओं जिनके साथ मुझे इस महासंग्राम में युद्ध करना है, को देख सकूं।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 20 
 अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्वा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः।,प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः।,हृषीकेशं तदा वाक्यमिदमाह महीपते ॥20॥ 
अर्थ : 
 उस समय हनुमान के चिह्न की ध्वजा लगे रथ पर आसीन पाण्डु पुत्र अर्जुन अपना धनुष उठा कर बाण चलाने के लिए उद्यत दिखाई दिया। हे राजन! आपके पुत्रों को अपने विरूद्ध व्यूह रचना में खड़े देख कर अर्जुन ने श्रीकृष्ण से यह वचन कहे।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 19 
 स घोषो धार्तराष्ट्राणां हृदयानि व्यदारयत्।,नभश्च पृथिवीं चैव तुमुलोऽभ्यनुनादयन् ॥19॥ 
  अर्थ :
 हे धृतराष्ट्र! इन शंखों से उत्पन्न ध्वनि द्वारा आकाश और धरती के बीच हुई गर्जना ने आपके पुत्रों के हृदयों को विदीर्ण कर दिया।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 16-18 
 अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः।,नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ ॥16॥,काश्यश्च परमेष्वासः शिखण्डी च महारथः।,धृष्टद्युम्नो विराटश्च सात्यकिश्चापराजितः॥17॥,द्रुपदो द्रौपदेयाश्च सर्वशः पृथिवीपते।,सौभद्रश्च महाबाहुः शङ्खान्दध्मुः पृथक् पृथक्॥18॥ 
अर्थ :
 हे पृथ्वीपति राजन्! राजा युधिष्ठिर ने अपना अनन्त विजय नाम का शंख बजाया तथा नकुल और सहदेव ने सुघोष एवं मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। श्रेष्ठ धनुर्धर काशीराज, महा योद्धा शिखण्डी, धृष्टद्युम्न, विराट, अजेय सात्यकि, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्रों तथा सुभद्रा के महाबलशाली पुत्र वीर अभिमन्यु आदि सबने अपने-अपने अलग-अलग शंख बजाये।

©Satish Yadav
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Satish Yadav

White श्लोक 15 
 पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जयः।,पौण्ड्रं दध्मौ महाशङ्ख भीमकर्मा वृकोदरः॥15॥ 
 अर्थ :
 ऋषीकेश भगवान् कृष्ण ने अपना पाञ्जन्य शंख बजाया, अर्जुन ने देवदत्त शंख तथा अतिभोजी एवं अति दुष्कर कार्य करने वाले भीम ने पौण्डू नामक भीषण शंख बजाया।

©Satish Yadav
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