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मिलन राधाकृष्ण

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मिलन राधाकृष्ण

क्या लिखूँ लगा रहा हूँ गोते कल्पना के सागर में
चुनने को कुछ मोती
पिरो सकू जिन्हें मैं कलम की नोंक पर
ताकि बना सकू एक सुंदर वर्णो की माला
पर आसान नही है यूँ शब्दों को चुनना
बड़ा दुष्कर है उस सागर की गहराई में उतरना
फसने लगता हूँ मैं उन शब्दों के जाल में
और थमने लगती हैं साँसे कल्पनाओं के उफान में
कभी डूबु और कभी बहा जाता हूँ इन शब्दो की लहरों में
और घात लगाए बैठे है कुछ जीव व्याकरण के चेहरों में
बड़ी मशक्क़त से बचके इनसे 
तब जाके मिलते है कुछ शब्दो के मोती
पर फिर भी रहता असमंजस में 
क्या इससे भी बेहतर ये रचना होती..?

©मिलन राधाकृष्ण #PoetInYou
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मिलन राधाकृष्ण

हे राजीव-नयन, दशरथ नंदन, कौशल्या पुत्र तुम्हारी जय ।
रघुवंशमणि,जानकीपति, लक्ष्मण के भाई तुम्हारी जय ।। 

ममता के सागर में डूबे, माँ के मौक्तिक तुम्हारी जय ।
कौशल्या, कैकई और सुमित्रा, के प्राणाधार तुम्हारी जय ।। 

अनुजों के तात, सखा,भाई, उनके भगवान तुम्हारी जय ।
लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न, तीनो के ज्येष्ठ तुम्हारी जय ।। 

हे सूर्यवंश के वंशज, रघुकुल के तेज तुम्हारी जय ।
वचनों पे प्राण करे न्यौछावर, हे धर्मात्म तुम्हारी जय ।। 

बल,भक्ति,रूप,ज्ञान,विनय, हर गुण की खान तुम्हारी जय ।
जीता सीता के स्वयंवर को, हे शिवधनु भंजक तुम्हारी जय ।। 

पिता के वचनों के खातिर, गए वन को राम तुम्हारी जय ।
छोड़े सब सुख और जगतराज, हे परम-त्याग तुम्हारी जय ।। 

नही किया पक्षपात कोई, हे समत्व भाव तुम्हारी जय ।
करते आदर ह्रदय से सबका, केवट के मित्र तुम्हारी जय ।। 

होके भगवन वन में रोये, करुणा के बाँध तुम्हारी जय ।
पत्नी वियोग में हुए व्याकुल, हे सीता-पति तुम्हारी जय ।। 

खाए सबरी के जूठे बेर, हे निश्छल प्रेम तुम्हारी जय ।
किया भवसागर से पार उन्हें, हे तारणहार तुम्हारी जय ।। 

है सहाय तुमने सुग्रीव की कि, बाली के अंत तुम्हारी जय ।
दी पत्नी,खोया राज उसे, हे मित्र-श्रेष्ठ तुम्हारी जय ।। 

लांघा सौ योजन समुद्र गए, लंका हनुमान तुम्हारी जय ।
कि सीताजी की खोज किया, लंका के दहन तुम्हारी जय ।। 

बांधा सेतु सागर पर तुमने, हे राम नाम तुम्हारी जय ।
नही रुके किसी चुनौती से, हे अविराम तुम्हारी जय ।। 

ले सेना फतेह करी लंका, हे रघुकुल वीर तुम्हारी जय ।
मारा सारे राक्षस कुल को, हे उनके मोक्ष तुम्हारी जय ।। 

हे जगतपिता,हे जगदीश्वर, मेरे आराध्य तुम्हारी जय ।
कहे मरते दम तक 'मिलन' यही, हे मेरे राम तुम्हारी जय ।।

©मिलन राधाकृष्ण #NojotoRamleela
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मिलन राधाकृष्ण

वो क्लासेज छोड़कर छुपकर तेरे रूम पे आना,
तुझसे मिलने के लिए वो साथ पढ़ने के बहाने बनाना,
तेरा वो मुझे अपने हाथों से खाना खिलाना और  फिर एक दूसरे की बाहों में सिमट जाना,
उन नजदीकियों की गर्मी को इन सर्द हवाओं में भी सुलगते पाया है,
आज एक बार फिर से दिल मे तुम्हारा ख्याल आया है.......

©MAAN THE CREATOR #IntimateLove
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मिलन राधाकृष्ण

प्यार अभी भी दोनों के दिलों में जिंदा है, पर आज उस पर मजबूरी का फंदा है,
आज भी हर सांस में एक-दूसरे का नाम है, पर क्या करे अब ये रिश्ता ही बेनाम है..... 

अब चल पड़े हैं दोनों अलग राहो पर, शायद ही अब मिले किसी चौराहे पर
भले ही मंजिले अब दोनों की एक हो, पर अब गुमनामी है उनकी राहों पर.....

©MAAN THE CREATOR #Trees
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मिलन राधाकृष्ण

प्यार अभी भी दोनों के दिलों में जिंदा है, पर आज उस पर मजबूरी का फंदा है,
आज भी हर सांस में एक-दूसरे का नाम है, पर क्या करे अब ये रिश्ता ही बेनाम है..... 

अब चल पड़े हैं दोनों अलग राहो पर,शायद ही अब मिले किसी चौराहे पर
भले ही मंजिले अब दोनों की एक हो,पर अब गुमनामी है उनकी राहों पर...

©MAAN THE CREATOR #Trees
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मिलन राधाकृष्ण

"मर्ष"
[ एक ब्रेक-अप दास्ताँ ]

ये कहानी है हर उस middle class family वाले लड़के और लड़की की जो सच्चा प्यार ढूंढ़ तो लेते है पर वो प्यार परिवार की जिम्मेदारियों में कहीं खो जाता है....

TEASER RELEASE ON - 18/05/2022

©MAAN THE CREATOR #PARENTS
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मिलन राधाकृष्ण

मंजिल की राह में रूकावटे हर बार नए रूप में हैं..
इसमें कई असल कारण भी हैं, कई चहते हैं और कई बहाने भी हैं,
निराशा भी है, असफलताओं का ढेर भी है
पर सब कुछ मुस्करा कर पार कर लेता हूं उस एक मंज़िल के लिए....

©MAAN THE CREATOR By- मृगांक

#Books

By- मृगांक #Books #Poetry

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मिलन राधाकृष्ण

थका, हारा, टूटा हुआ खड़ा था मैं मुँड़ेर पर,
नजरें पड़ी मेरी मिट्टी के एक ढ़ेर पर,
चौंका मैं आया ये कहाँ से मेरी दहलीज पर,
देखा उसे मैंने नजरें तरेर कर।
देख कर उस ढ़ेर को मैं हसने लगा, निमित्त थी जिसकी पिपीलिका। 

कौंधी अचानक एक बिजली जहन में,
पड़ गया मैं एक चिंतन गहन में, 

ये दृश्य था साहस, मेहनत और लगन का,
विश्रंभ, एकता और उस अनल का,
हो रही जो प्रवाह रग में बनके रुधिर,
हथियार डाले सामने जिसके तिमिर। 

ये दृश्य था विश्वास के उस समर का,
जहाँ एक ओर वनवासी प्रतिद्वंद्व में लंकेश था। 

था मार्गदर्शन उनमे वाशुदेव सा,
ऐसा लगा मानो ये रण हो कुरुक्षेत्र का। 

था उनमे बल कई गुना अपने शरीर का,
मानो लगा प्रतिरूप हो वो भीम का। 

थी उनमे ऐसी लगन अपने कर्म की,
ना फिक्र रहती उनको अपने मर्म की। 

ये दृश्य था विजय के उस उदघोष का,
हर दलित के उत्थान की शुभ्र सोच का। 

करते निरन्तर जतन कोई भी वार हो,
चाहे जीत हो , या फिर चाहे हार हो।
[ समझा द्विवेदी जी की बातों का मर्म आज मैं, थी जिसमे सफलता की नीति, 
बात थी कि "कोशिश करने वालों की कभी हार नही होती"|] 

हुआ नए सूरज का उदय मेरे जहन में,
मैं निकला बाहर कायरता के वहम से,
उठी हूक एक मेरे मानस-पटल से,
मत डिग तू रह अटल अपने सत्य पे,
क्यों मानता है हार अपने कर्म से,
तू दे उसे ललकार स्व विश्रंभ से, 

पड़ता नही कोई फर्क चाहे कैसा भी आकार हो,
तुम करो अपना कर्म सारे सपने साकार हो।

©MAAN THE CREATOR #maanthecreator 

#Sunrise
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मिलन राधाकृष्ण

माना कि आज बहुत दूर है तू आसमान के उस चाँद की तरह,
पर फिर भी मेरा नूर है तू उस चाँद की चांदनी की तरह,
पर विडम्बना तो देखो आज प्यार ने ही इश्क को हराया है,
क्योंकि कोई और है जिन्हें मैंने तुझसे ज्यादा चाहा है,
पर दिल का क्या करे इस पर तो तेरा सुरूर छाया है,
आज एक बार फिर से दिल मे तेरा ख्याल आया है.......

©MAAN THE CREATOR #Moon
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मिलन राधाकृष्ण

ना खता उनसे हुई थी, ना हमारा क़सूर था,
शायद ये रिश्ता ही क़िस्मत को ना-मंजूर था,
उसने तो सर्वस्व सौंप दिया हमे प्रीत के ख़ातिर,
पर उसके त्याग को कोई अर्थ दे ना सका,
 मैं इतना मजबूर था.........

©MAAN THE CREATOR मर्ष

#soulmate

मर्ष #soulmate #Poetry

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