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ranahijab2418
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Rana Hijab

कुछ इस तरह बिखरी सी ज़िन्दगी को संवार लेती हूं , जो इस दिल तक आता है वो बस कागज़ पर उतार लेती हूं !!

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Rana Hijab

"आपसे मिलकर अच्छा लगा" मीनाक्षी ने रघुवेन्द्र के बॉस से कहा फिर रघुवेंद्र का बॉस  "ओके बाय रघुवेन्द्र मिलते हैं कल" बोलकर चला गया, रघुवेन्द्र और मीनाक्षी आगे बढ़ चले, रघुवेन्द्र नें पलट कर वहीं मोड़ पर बैठ गई मृदुला की तरफ एक बार देखा और फिर जैसे उससे नज़रें चुराता हुआ मीनाक्षी के साथ आगे की ओर बढ़ चला। मृदुला रूपी शांत बहती धारा ने मानो वेग से बहना आरंभ कर दिया, उसकी आंखों से वर्षों बाद अश्रुओं की धारा प्रवाहित होकर ऐसे  हृदय को चीरती हुई प्रकट हुई जैसे सुषुप्त ज्वालामुखी एकाएक निद्रा से जागकर लावे से त्राहि-त्राहि मचा देता है। मृदुला के क्रोध, पीड़ा के मिले-जुले भावों के बवंडर नें उसे शून्य पर लाकर खड़ा कर दिया। भीड़-भाड़ वाले बाज़ार के एक किनारे पीड़ा से ग्रस्त बैठी मृदुला को आस-पास  से गुज़रते लोगों का जैसे आभास ही नहीं था, या किसी भी प्रकार के भावों की उत्पत्ति उसके भीतर की चेतना को प्रभावित करने में असमर्थ थी। "मेरे रघु नें आज इस भरे बाज़ार में अपनी मृदुला को पहचानने से इन्कार कर दिया, क्या मात्र "पत्नी"  शब्द मेरे निःस्वार्थ दस वर्षों के प्रेम, समय, भावनाओं पर हावी हो गया।" "क्या पत्नियां प्रेमिकाओं पर इतनी आसानी से हावी हो जाया करती हैं?!" "शायद हां! और क्यों ना हों?!" मृदुला तो बस रघु की प्रेमिका थी पत्नी तो मीनाक्षी है, आख़िर क्यों पहचाने रघु मुझे पहचान ही क्या है मेरी?!" शायद मात्र "रघु की प्रेमिका"  मृदुला स्वंय ही ख़ुद से प्रशन करती जा रही थी और स्वतः ही उन प्रशनों के उत्तर दिए जा रही थी। प्रेमिकाएं तो सदा से हारी हैं, उन्हें न समाज में सम्मान प्राप्त हुआ, न प्रेमी का नाम ही और पत्नियां हमेशा से विजित हुई हैं। उन्हें बिना समय, भाव, प्रेम का बलिदान किए सम्मान भी प्राप्त होता है और पति का नाम भी। "प्रेमिकाएं बनाम पत्नियां" में विजित हमेशा पत्नियां हुई हैं क्यूंकि प्रेमिकाएं तो मात्र प्रेमिकाएं हैं! आज एक और प्रेमिका पत्नी से हार गई, पत्नी को पहचान,सम्मान एवं नाम प्राप्त हुआ परंतु प्रेमिका फिर से अपने प्रेम का बलिदान करके रह गई। एकाएक मृदुला तेज़ी से चीखी "अगले जन्म मैं तुम्हारी पत्नी बनूंगी रघु प्रेमिका नहीं!" उसकी चीख से आस- पास से आने- जाने वाले लोगों न रुककर उस पर दृष्टिगोचर की, कोई हंसने लगा, किसी ने मज़ाक बन दिया, तो कोई उसे पागल कहकर  आगे बढ़ गया। थोडी देर बाद सब पुनः पहले जैसा चलने लगा भीड़ भी और लोग भी। मृदुला नें आस-पास देखा फिर शांत भाव से पुनः उसी स्थान पर बैठ गई और लोग फिर से उसके इर्द-गिर्द से निकलने लगे । लोगों की चहल-पहल के बीच वह प्रेमिका अकेली बैठी थी अगले जन्म में पत्नी बनने की आस में कि तभी "मृदुला" ओ "मृदुला" मानो अंतर्रात्मा से एक आवाज़ मृदुला को सुनाई दी तब तक वह स्थिर एवं शांत हो चुकी थी। मृदुला ने आस-पास देखा फिर आंखें मूंद लीं। वही आवाज़ फिर से मृदुला को सुनाई दी कि "मृदुला उठ आगे बढ़ कर दूसरे मोड़ों पर तो देख तेरे जैसी कितनी मृदुला और बैठी हैं प्रेमिकाओं का लबादा उतार कर पत्नियों का श्रंगार करने के इंतज़ार में , पत्नियों को बिना आस के नाम, पहचान, प्रेम की प्राप्ति हो जाती है किंतु प्रेमिकाएं मात्र  इंतज़ार करती रह जाती हैं और यह विषय चलता रहता है - "प्रेमिकाएं बनाम पत्नियां"

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Rana Hijab

तुम कौन? मोहब्बत क्या? सबसे बेज़ार हूं                                                                            मैं ज़ख़्मी टूटा हुआ ऐतबार हूं!                                                                                  आवाज़ें चुभती हैं  मुसलसल अब                                                                                     मैं ख़ामोश बेबस और लाचार हूं                                                                                     फक़त मोहब्बत का ही नहीं रंज मुझे,                                                                                 यूं तो मैं आलम के हर शख़्स से ख्वार  हूं                                                                            इधर खाक़ नहीं हुई जुस्तजू मेरी,                                                                                   उधर ख़ुशफ़हमी है कि ज़ार-ज़ार  हूं                                                                                         बची इक  चिंगारी से आग सुलग जाती है,                                                                           मैं खाक़ में दबी चिंगारी से दहका हुआ अंगार हूं                                                                बेज़ुबां क्यों हासिल-ए-रुसवाई हैं,                                                                                        यूंं तो मैं इंसानियत से शर्मसार हूं                                                                                     ख़ुदा गवाह है तो ज़मीं पर शिकवे जायज़ नहीं,                                                              हिसाब सब रखती हूं,  न रंजिश हूं न पलटवार हूं!                                                             बुग्स हैं दिलों में, चेहरे सब मुखौटों में,                                                                              इक मैं हूं कि पानी की तरह आर-पार हूं                                                                      इबादत-ुए-ख़ुदा में मशगूल हुआ जो कहता है बस कि                                                           ना मुझे किसी से मोहब्बत ना मैं  किसी का प्यार हूं                                                               कल गरज़ थी तो अज़ीज़ थी  "राना"                                                                              आज बेगरज़ हुए तो बेकार हूं... "इधर खाक़ नहीं हुई जुस्तजू मेरी, उधर ख़ुशफ़हमी है कि ज़ार- ज़ार हूं"...

"इधर खाक़ नहीं हुई जुस्तजू मेरी, उधर ख़ुशफ़हमी है कि ज़ार- ज़ार हूं"... #शायरी

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Rana Hijab

न जाने कब, कहां हम कितने घटते रहे,              कच्चे मैदां ,कच्चे रस्ते सब पटते रहे                      गर्दिशों के बादल कच्ची छत पर फटते रहे,                उम्र ढलती गई, रोढ़े भी हटते रहे                           बेगरज़ थे फिर भी आंखों में खटकते रहे,                  इक सुकून की तलाश में ताउम्र भटकते रहे            पक्की नींद सोया कोई, कहीं कच्चे मकां टपकते रहे चौखट भी रही इंतज़ार में, दर भी मेरे चटकते रहे,      भूल गया वह भी, नाम जिसका हम उम्र भर रटते रहे, सुना कर दास्तां पन्नों को, ग़म अपने बटते रहे,         हुआ हिसाब नेकियों का ,ग़रीब थे वह                       जो ज़िंदगी भर दौलत समेटते रहे ,                      साहिल पर बने घरौंदे लहरों से मिटते रहे               गुज़रते लम्हों की चादर में हम लिपटते रहे, कि           यूं  ही  लिखते-पढ़ते "राना" दिन अपने कटते रहे "चौखट भी रही इंतज़ार में दर भी मेरे चटकते रहे, कि यूं ही लिखते-पढ़ते  "राना" दिन अपने कटते रहे"...!! #चौखट #इंतज़ार #दर #बेज़ार #हयातकेरंग #स्याहीकेसंग #मेरीक़लमसे #जज़्बात

"चौखट भी रही इंतज़ार में दर भी मेरे चटकते रहे, कि यूं ही लिखते-पढ़ते "राना" दिन अपने कटते रहे"...!! #चौखट #इंतज़ार #दर #बेज़ार #हयातकेरंग #स्याहीकेसंग #मेरीक़लमसे #जज़्बात

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Rana Hijab

इक ज़िंदगी गुज़ारने की कोशिशों में,                      लम्हां -लम्हां गुज़रते  वक़्त के साथ                              हम भी कुछ यूं गुज़र जायेंगें                                        फूलों की हयात का क्या,                                                      आज खिले हैं  तो कल बिखर जायेंगें ... (*हयात- ज़िन्दगी) "फूलों की हयात का क्या आज खिले हैं तो कल बिखर जायेंगें"...

(*हयात- ज़िन्दगी) "फूलों की हयात का क्या आज खिले हैं तो कल बिखर जायेंगें"... #शायरी

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Rana Hijab

गिला है कि गर पत्ते समझते दर्द शाख़ का तो  यूं उससे जुदा ना होते,                                         मगर यूं तो वो झर कर मिट्टी में मिल गए             शाख़ के हिस्से तो फिर भी दरख़्त रहा... (*दरख़्त- पेड़) "समझा नहीं किसी नें पत्तों को सब  गिला- ए - जुदाई में यूं मशगूल रहे कि शाख़ को ताउम्र दिलासे मिले"..."यूं तो पत्तों ने अपनी ज़ात मिटा दी"...!!

(*दरख़्त- पेड़) "समझा नहीं किसी नें पत्तों को सब गिला- ए - जुदाई में यूं मशगूल रहे कि शाख़ को ताउम्र दिलासे मिले"..."यूं तो पत्तों ने अपनी ज़ात मिटा दी"...!! #शायरी

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Rana Hijab

कौन समझा है तुझे ऐ हमनशीं तेरे सिवा,                                        तू ही अपना हमनफ़स है तू  ही अपना हमनवां... हमनशीं- साथी ; हमनफ़स- साथ रहने वाला(आने जाने वाली हर सांस का साथी (

हमनशीं- साथी ; हमनफ़स- साथ रहने वाला(आने जाने वाली हर सांस का साथी ( #शायरी

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Rana Hijab

तीन शब्द साल 2020 के लिए  सौ साल बराबर!                          (तीन शब्दों में कहें तो) ३ शब्द और १ साल...!!

३ शब्द और १ साल...!!

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Rana Hijab

एक साल पहले,                             तुम, मैं और वो वादे,                     नये साल की ख़ुशी,                     साथ रहने के इरादे,                                         फिर साल बदल गया,                   तुमने छोड़ दिया,                          वादे टूट गए,                               इरादे सब पीछे छूट गए,                   रह गई अकेली मैं                       और बस मैं!! रह गई बस मैं...!!

रह गई बस मैं...!!

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Rana Hijab

ख़ाली हाथ आये थे  मगर ,                                                      मेरी ख्वाहिशें, मेरा ऐतबार,                                                       मेरी खुशियां, मेरा प्यार ,                                                                 मेरी मुस्कुराहटें, मेरा यार                                                        अपने साथ सब ले जा रहे हो!                                              #2020 मेरा तो सब कुछ ले गए तुम #2020😞

मेरा तो सब कुछ ले गए तुम 2020😞 #अनुभव

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Rana Hijab

एक वक़्त आता है  जब,                                                    मज़बूत से मज़बूत  शख़्स भी टूट जाता है                              तसव्वुर भी न की हो हयात जिसके बिना,                                 उसका साथ भी छूट जाता है                                                                        उस वक़्त जीते तो सब हैं,                                                            मगर हर इक सांस खलती रहती है                                             और ज़िंदगी यूं ही चलती रहती है!                                          ऐतबार करो!  यकीन रखो! वादा रहा!                                            सब अल्फाज़ धुंधले होते जाते हैं                                                झूठे वादों की भीड़ में ,                                                          खुशियों के मोती खोते जाते हैं                                                     गुमराह होता है शब-ओ-सहर ज़माना,                                                   जब  रोती आंखों से मुस्कुराते हैं                                        कभी-कभी बेकुसूर लोग भी,                                                    क्या ख़ूब सज़ा पाते हैं                                                         धीरे-धीरे उसके साथ की हर ख्वाहिश जलती रहती है,                                                                 और ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती है!                                            मजबूरी मे दिया जाये या मर्ज़ी से ,                                  धोखा,"धोखा" ही कहलाता है                                          राह-ए-इश्क़ में साथ छोड़ने वालों के लिए,                           "दगाबाज़" या "बेवफ़ा" लफ्ज़ ही लबों पर आता है                         उजड़ा गुलशन कहां पहले जैसा हो पाता है,                                                          और ये जो रास्ते बदले हैं तुमने,                                                  क्यों? कैसे? किसलिए? ये भी मुझे ख़ूब समझ आता है                  ख़ता कहां हुई इस उलझन में "राना" ,                                        अपनी हर ख़ुशी कल पे टलती रहती है                 
और ज़िन्दगी  यूं ही चलती रहती है! "और ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती है..!!" #ज़िन्दगी #ख्वाहिश #वादे #भीड़ #ऐतबार #यकीं #तमन्ना  #उलझन

"और ज़िन्दगी यूं ही चलती रहती है..!!" #ज़िन्दगी #ख्वाहिश #वादे #भीड़ #ऐतबार #यकीं #तमन्ना #उलझन

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