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अभिजीत मिश्रा

कविता और मैं ,अधूरे है,एक दूसरे के बिना, "dance and me are also incomplete without each other"

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अभिजीत मिश्रा

संग तुम्हारे जी रहे थे ,बिन तुम्हारे काट लेंगे,
कुछ किताबो के सहारे गम भी अपना बाट लेंगे,
गर कभी होठो ने इक भी शब्द नाजायज कहे हो,
गर हमारी धड़कनों ने कुछ खलल पैदा किया हो
गर जुबां ने आपकी उल्फत को कुछ अपशब्द कहकर ,
आपकी की बेवफाई का तनिक सौदा किया हो,
तो हमे तुम माफ करना थूक कर हम चाट लेंगे,
संग तुम्हारे जी रहे थे बिन तुम्हारे काट लेंगे,
क्या पता था शर्म बस बेशर्म स लिबास पहने,
हर गली नुक्कड़ पे जाकर बस नुमाइश कर रही थी,
इश्क़ को पूजा था हमने,इश्क़ एक अहसास था पर,
दो बदन को एक करने की ही साजिस कर रही थी,
तो हमे तुम माफ करना,रास्ता हम काट लेंगे,
संग तुम्हारे जी रहे थे,बिन तुम्हारे काट लेंगे

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अभिजीत मिश्रा

जान किस्मत मान किस्मत किस्मतों का दौर है,
हर  गली में एक आशिक़  आशिको का दौर है,
चढ़  गए थे फासियो  को चूम  भारत के  लिए,
मान  ऐसा   लग  रहा था फासियो  का दौर  है,
बांट  कर  जो  रख दिया  है मज़हबो के रंग में,
कब  बनेगा   राम  मंदिर  संघियो  का  दौर  है,
ओठ   कर  चादर  पुरानी  कह  रहे  बूढ़े   मुझे,
इक नया सा ला  कफन अब ठंडियो का दौर है,
कल्पना हो  या की पी वी सुन यहां मैं कह रहा,
पेट  मे  मत   मार  इनको  बंदियों  का  दौर  है,

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अभिजीत मिश्रा

तेरी छवि को निहारा तो ऐसा लगा मानो चंदा ने तारे है पहने हुए,
तेरे नैनो को देखा  स्वयम ने कहा नैना गहनों को जैसे है पहने हुए,
शीप को इक गुज़ारिश है बारिश की पर आंख से न हो बारिश ये मेरा कथन,
आंख तारो के जैसी चमकती रहे इक यही है गुज़ारिश जो करता "अमन"
जीत की इस पहल में है सब दौड़ते इश्क़ में तू सदा पर जो हारी रहे,
तू उसे छोड़ दे मैं उसे छोड़ दूं मैं तुम्हारा रहूं तू हमारी रहे।।
स्वप्न में इक जो चेहरा सदा छेड़ता कहता रहता है मुझसे  तुम्हारी हूँ मैं,
इश्क़ के इस भवर में हूँ बिल्कुल नई ,एक दीवानी सी पागल बेचारी हूँ मैं,
पर मैं कैसे कहू इक बेचारा स मैं दिल का मासूम थोड़ा कुंवारा स मैं,
प्रेम की इक उपासक शिवानी सी तुम,प्रेम का एक अभिजीत तारा स मैं,
रोज़ बाणों की वर्षा हो दिल पे मेरे,और दिल की मेरे तू शिकारी रहे,
तू उसे छोड़ दे मैं उसे छोड़ दू मैं तुम्हारा रहूँ तू हमारी रहे।
खैर संवरा था चंदा तुझे देख कर और सूरज भी शरमाया था रात भर,
और सितारों ने की थी शिकायत बहुत जा के थोड़ा स उनसे भी तो बात कर,
रात जुगनू ने कानो में कह ही दिया कौन है ये जो हमसे चमकदार है,
ये की जिसके जिसम पे है मोहक बहुत दिल्ली वाला ये मीना का बाजार है,
हां नही है मोहब्बत मगर क्या हुआ तुझको पाने की कोशिश तो जारी रहे,
तू उसे छोड़ दे मैं उसे छोड़ दूं मैं तुम्हारा रहूँ तू हमारी रहे।

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अभिजीत मिश्रा

आँख में आँसू का और दिल में लहू का काल है 

है तमन्ना का वही जो ज़िंदगी का हाल है 

यूँ धुआँ देने लगा है जिस्म और जाँ का अलाव 

जैसे रग रग में रवाँ इक आतिश-ए-सय्याल है 

फैलते जाते हैं दाम-ए-नारसी के दाएरे 

तेरे मेरे दरमियाँ किन हादसों का जाल है 

घिर गई है दो ज़मानों की कशाकश में हयात 

इक तरफ़ ज़ंजीर-ए-माज़ी एक जानिब हाल है 

हिज्र की राहों से 'अकबर' मंज़िल-ए-दीदार तक 

यूँ है जैसे दरमियाँ इक रौशनी का साल है 

~अकबर हैदराबादी ...

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अभिजीत मिश्रा

परतव-ए-ख़ुर से है शबनम को फ़ना की ता'लीम 

मैं भी हूँ एक इनायत की नज़र होते तक 

यक नज़र बेश नहीं फ़ुर्सत-ए-हस्ती ग़ाफ़िल 

गर्मी-ए-बज़्म है इक रक़्स-ए-शरर होते तक 

ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज 

शम्अ हर रंग में जलती है सहर होते तक 

~ग़ालिब ...

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अभिजीत मिश्रा

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक 

कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक 

दाम-ए-हर-मौज में है हल्क़ा-ए-सद-काम-ए-नहंग 

देखें क्या गुज़रे है क़तरे पे गुहर होते तक 

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब 

दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होते तक 

~ग़ालिब ...

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अभिजीत मिश्रा

शर्मिंदगी है हमको बहुत हम मिले तुम्हें,
तुम सर-ब-सर ख़ुशी थे मगर ग़म मिले तुम्हें...

तुमको जहान-ए-शौक़-ओ-तमन्ना में क्या मिला,
हम भी मिले तो दरहम-ओ-बरहम मिले तुम्हें....

-(जॉन एलिया). ...

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अभिजीत मिश्रा

मैं तेरी जुल्फों में उल्फत मांगता हूँ
तुम मुझे चाहो ना चाहो फ़र्क़ कैसा
मैं तुम्हे हद से भी जादा मानता हूँ

चल रहा आँखों में तेरे ख्वाब लेकर
आईने भी मुझसे रूठे लग रहे हैं
वो तेरी उलझी कलाई के छुअन भी
चाँद तारे सब ये झूठे लग रहे हैं 
मैं तेरे आँखों में काजल लेके आया
मैं तेरे होंठों पे हीरा चाहता हूँ
तुम मुझे चाहो ना चाहो फ़र्क़ कैसा
मैं तुम्हे हद से भी जादा मानता हूँ

©devvrat awadhvashi

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अभिजीत मिश्रा

आ भी जाओ हमनवा दिल के सफर में
मैं तुम्हारे जिद का मतलब जानता हूँ
तुम मुझे चाहो ना चाहो फ़र्क़ कैसा
मैं तुम्हे हद से भी जादा मानता हूँ

कर गये पागल मुझे पहली नज़र में 
आज कल लब से हँसी जाती नही है
बस तुम्हे पाने का अरमां है जमीं पर
इश्क़ में बेतरबियां आती नही हैं
दरमियां बाहों में लेकरके खुदा से


Devvrat ....

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अभिजीत मिश्रा

जब मेरे हाथों की रेखाएं बुलाकर थक चुकी थी,
जब मेरी किस्मत मुझे हर पल गिराकर थक चुकी थी,
जब मेरे कमरे ने मुझसे ही ये पूछा कौन हो तुम,.
द्वार दरवाजे ने रोका और पूछा कौन हो तुम,
जब हमारी देह को धोखा दिया था रूह ने,
जब मिरी तन्हाई का सौदा किया समूह ने,
जब हमारी चुप्पियों ने तुमको पुकारा बहुत था,
जब तुम्हारी रुखसती पर हमने निहारा बहुत था,
जब तुम्हारा काल मेरा हाल बिन पूछे कटा था
जब तुम्हारे मैसेजों को पढ़ के टुकड़ो में बटा था
जब हमारे आँशुओ को रोज गिरना पड़ रहा था,
तब कहा थी जब हमें मर मर के जीना पड़ रहा था,
गर वो मज़बूरी थी तो मज़बूरी तेरी बेहतर है,
नज़दीकी गर कहते इसको तो दूरी तेरी बेहतर है।।। #दर्द#बेचैनी
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