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abhishekga4993
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Abhishek 'रैबारि' Gairola

insta: @gairo0 मै कोई महत्वपूर्ण या क्रांतिकारी संदेश नहीं मां के कानो को राहत देने वाली बेटे की आवाज़ हूं, प्रेमिका के आंखों को ठंडक देने वाली चिट्ठी की बात हूं, पिता का सीना चौड़ा करने वाली ख़बर का अख़बार हूं, तख़ल्लुस से रैबारि, दिलों तक पहुंचने वाला रैबार हूं। (रैबारि माने messenger)

https://gairo-blog.blogspot.com

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

White ये स्याह दिन है कोई, कि है चढ़ती रात क्या जाने,

फिसल न जाए होठों से दिल की बात क्या जाने,

कोई ठग है बेरी, ये मौसम आशिका़ना न समझना

कैसे सम्हालूंगा मेरे मचलते ये ख़्यालात क्या जाने।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  #शायरी

शायरी

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

                          अनिंद 
ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए,
भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए। 
न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी  
छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए।


यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,

अनिंद ब्याल राति क्य बतौं, मैतें घड़ैक भी निंद नि ए, भों कथा छुईं छें रिंगणि मुंड मा पर रिंग नि ए।  न सुपिन्यु छो, न बैम छो कुई, स्या त बल कल्पना छे मेरी   छा एक बिस्तरा मां थर्पयां द्वि लोकलाजे कैतें बींग नि ए। यखुलि-यखुलि ज्यु मा हे कनि छिड़बिड़ाट छे मचणि,

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

गुमगांव था उस शहर का नाम जहाँ मेरा कारवां कुछ देर रुका, उसी गुमगांव में गुमनाम यादों को गुमशुदा सा तलाश रहा हूं।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  गुमगांव था उस शहर का नाम जहाँ मेरा कारवां कुछ देर रुका, 
उसी गुमगांव में गुमनाम यादों को गुमशुदा सा तलाश रहा हूं।
।।
#love #life #nojotohindi #कविता #शायरी #poem #poetry #shayari

गुमगांव था उस शहर का नाम जहाँ मेरा कारवां कुछ देर रुका, उसी गुमगांव में गुमनाम यादों को गुमशुदा सा तलाश रहा हूं। ।। love life nojotohindi कविता शायरी poem poetry shayari

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है।
।।
#runaway #love #life #nature #poem #nojotohindi #कविता #विचार

प्रकृति भी अद्भुत है। एक ऐसा स्थान जहां कंक्रीट के जंगल बसे हुए हैं, जहां प्रकृति को योग्य श्रद्धा नहीं मिलती, जहां हम इस पौराणिक और मूलभूत शक्ति से अनभिज्ञ हैं, जहां डांबर के पथ पर बख़्तर के अश्व दौड़ते हैं, जहां सूर्यास्त होने के बाद भी चौंधियाने वाला प्रकाश मौजूद रहता है, वहीं यह महान शक्ति हमें अथम कर मितव्ययिती प्रदान करती है। ।। runaway love life nature poem nojotohindi कविता विचार

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी दूर आ गया है की उसे लगभग भूल ही गया है। पर जब वह किसी पर्वत के शिखर पर या उसकी वादी में उतर कर आकाश को निहारता है तब उसे अपने उस आदिम स्वयं का बोध होता है। इन पाशणों के बीच तब शायद वह नग्न, शुद्ध, और ईश्वर के निकट महसूस करता है।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी

कभी कभी मनुष्य को अपने आदिम युग को याद करना चाहिए, जब उसके पास नाम मात्र के संसाधन, सेवन हेतु मिट्टी से उपजा अन्न, पशु, बस यही सब थे। आवास रहित वह एक ठिकाने से दूसरे ठिकाने को भटकता रहता था। अपने छोटे से झुंड के साथ जिसे वह परिवार कहता था। अधिकतर परिस्थितियों में वह और उसका यह झुंड इस खानाबदोश यात्रा को पूरा भी नहीं कर पाता था। कभी प्रकृति, कभी बीमारी, कभी भूख या कभी किसी परभक्षी को अपना घुमतु जीवन सौंप आता था। फिर भी झेलने की क्षमता और प्रायोगिक नवीनता के दम पर आज, वह अपनी उस आदिम स्वयं से इतनी #poem #writing #कविता #nojotohindi #शायरी #विचार

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं।

तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को
पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। 

बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई 
तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं।

लंबा है रास्ता-ए-सेहरा मगर मंजिल-ए-नख़लिस्तान साफ़ है। मृगतृष्णा बोल- बोल कर सीधी राहों पर भी मोड़ बिठा रखे हैं।

दिल दबा है, दिमाग रला है, रूह विकृत और दरदरी हो गई हैं क्या जाने बेचारी ने कितने युगों से करोड़ों जन्म भिड़ा रखे हैं।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। 
शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं।

तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को
पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। 

बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई 
तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं।

ज़ाहिद हैं फिर भी मुझको लुफ़्त परस्त जाने क्यों बता रखे हैं। शायद इसलिए के दिल ओ दिमाग की तंग फिज़ा में आप बसा रखे हैं। तो रेत क्यों दूं उंगलियों के ऊबड़ खाबड़ नाख़ूनों को पेशानी पर नसीब की रेखाएं इनसे ही तो गुदवा रखे हैं। बाहर की फ़जा-ए-माहौल का इल्म नहीं है क़ैद में मुझे कतई तूफ़ानी रातों में भी दहलीज पर उम्मीद -ए -दिये जला रखे हैं।

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

एक तुम्हारा न होना

कई बरसों से, या मुमकिन है हमेशा से हो, 
आत्मा कि धरती में एक रिक्त स्थान था, 
फिर एक तुम्हारे होने से, 
वो अकेलेपन का छेद भर गया था। 
मेरी रूह ने तुम्हारी हाज़िरी को पकड़ लिआ था, 
जैसे किसी पेड़ की जड़ों को मिट्टि पकड़ लेती है। 
तब एक दिन डर की ऐसी प्रचंड आंधी चली, 
कि वो तुम्हारी मौजूदगी को अपने संग उड़ा ले गई। 
और वो तूफ़ान, अपने साथ उड़ा ले गया, 
एक बड़ा टुकड़ा, मेरी मन की माटी का, 
जो शायद मुझसे दूर अभी भी कहीं, 
तुम्हारे होने की जड़ों से लिपटी हुई हैं। 
उसी भूमी के टुकड़े के उड़ जाने से, 
मेरे हृदय का सूराख़ और भी चौड़ा हो गया है। 
इस बढ़ती रिकति में, जो अब और भी गहरी है, 
रह गया है, एक तो सिर्फ़ ख़ालीपन,
और...
एक तुम्हारा न होना।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  एक तुम्हारा न होना

कई बरसों से, या मुमकिन है हमेशा से हो, 
आत्मा कि धरती में एक रिक्त स्थान था, 
फिर एक तुम्हारे होने से, 
वो अकेलेपन का छेद भर गया था। 
मेरी रूह ने तुम्हारी हाज़िरी को पकड़ लिआ था, 
जैसे किसी पेड़ की जड़ों को मिट्टि पकड़ लेती है।

एक तुम्हारा न होना कई बरसों से, या मुमकिन है हमेशा से हो, आत्मा कि धरती में एक रिक्त स्थान था, फिर एक तुम्हारे होने से, वो अकेलेपन का छेद भर गया था। मेरी रूह ने तुम्हारी हाज़िरी को पकड़ लिआ था, जैसे किसी पेड़ की जड़ों को मिट्टि पकड़ लेती है।

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

HOVER

You are the lingering feeling
that is perpetually hovering over my head, like a killer hornet, whom I can't ignore. The buzzing of its unnatural, translucent wings producing a trepidation deep inside my core, making my feeble frame shudder with angst. In lieu, if I engage with it, I know forsooth, it will sting me and make me virulent. The stinger that was remained inhumed, bleeding its poison, oozing its pleasure, tardily, in my stream and my soul,
still penetrated, in my flesh somewhere,
paralyzing my frail body and,
arresting my wee thoughts, with the soft warmth of the sweet torpor while the foreboding of the impending doom lies in wait.

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  #kitaabein 

HOVER

You are the lingering feeling
that is perpetually hovering over my head, like a killer hornet, whom I can't ignore. The buzzing of its unnatural, translucent wings producing a trepidation deep inside my core, making my feeble frame shudder with angst. In lieu, if I engage with it, I know forsooth, it will sting me and make me virulent. The stinger that was remained inhumed, bleeding its poison, oozing its pleasure, tardily, in my stream and my soul,
still penetrated, in my flesh somewhere,
paralyzing my frail body and,

#kitaabein HOVER You are the lingering feeling that is perpetually hovering over my head, like a killer hornet, whom I can't ignore. The buzzing of its unnatural, translucent wings producing a trepidation deep inside my core, making my feeble frame shudder with angst. In lieu, if I engage with it, I know forsooth, it will sting me and make me virulent. The stinger that was remained inhumed, bleeding its poison, oozing its pleasure, tardily, in my stream and my soul, still penetrated, in my flesh somewhere, paralyzing my frail body and, #Poetry

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

फ़र्क केवल नज़रिए का ही नहीं होता है, 
दर्शन का भी होता है और कई परिस्थितियों में 
दर्शन का अंतर ही सर्वोपरी है। 
काश मुझमें वो शक्ति होती कि 
मै आपको उसके दर्शन करा पाता 
जो मै अनुभव कर रहा हूं।

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  #saath 
फ़र्क केवल नज़रिए का ही नहीं होता है, 
दर्शन का भी होता है और कई परिस्थितियों में 
दर्शन का अंतर ही सर्वोपरी है। 
काश मुझमें वो शक्ति होती कि मै आपको उसके दर्शन करा पाता जो मै अनुभव कर रहा हूं।
#love #life #poem #poetry #कविता #शायरी #nojotohindi

#saath फ़र्क केवल नज़रिए का ही नहीं होता है, दर्शन का भी होता है और कई परिस्थितियों में दर्शन का अंतर ही सर्वोपरी है। काश मुझमें वो शक्ति होती कि मै आपको उसके दर्शन करा पाता जो मै अनुभव कर रहा हूं। love life #poem poetry #कविता #शायरी #nojotohindi #विचार

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Abhishek 'रैबारि' Gairola

हिमालय की गोद, वादियों की ठंडी हवा, बर्फ़ की कुशाग्र चोटियां, रमणिक पहाड़ी गांव और उनका सुस्त व श्रमिक जीवन, बूढ़ी दंतहीन दादी, गौचर, भोटिया कुकुर, पंछी, नदी, मिट्टी के मकान, चीड़, बांज और देवदार के वृक्ष, नारंगी-पीले मालटे और पुष्प। 
कहो सुकून क्या है?

©Abhishek 'रैबारि' Gairola
  हिमालय की गोद, वादियों की ठंडी हवा, बर्फ़ की कुशाग्र चोटियां, रमणिक पहाड़ी गांव और उनका सुस्त व श्रमिक जीवन, बूढ़ी दंतहीन दादी, गौचर, भोटिया कुकुर, पंछी, नदी, मिट्टी के मकान, चीड़, बांज और देवदार के वृक्ष, नारंगी पीले मालटे और पुष्प । 
कहो सुकून क्या है?
।।
#love #life #poem #poetry #कविता #शायरी #nojotohindi #mountain

हिमालय की गोद, वादियों की ठंडी हवा, बर्फ़ की कुशाग्र चोटियां, रमणिक पहाड़ी गांव और उनका सुस्त व श्रमिक जीवन, बूढ़ी दंतहीन दादी, गौचर, भोटिया कुकुर, पंछी, नदी, मिट्टी के मकान, चीड़, बांज और देवदार के वृक्ष, नारंगी पीले मालटे और पुष्प । कहो सुकून क्या है? ।। love life poem poetry कविता शायरी nojotohindi mountain

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