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dharmendra6137
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dharmendra

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dharmendra

उठो, जागो, अपने जमीर की, हिफाजत करो।
रहे अपनी शान बुलन्द, कुछ ऐसी आदत करो।।
और ये गली चौराहे के, ठीठोलेपन छोड़ो।
हो सके तो मजलूम की मदद, और खुदा की इबादत करो।।
=दिव्यम=

©dharmendra धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया

#safarnama

धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया #safarnama #विचार

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dharmendra

हेमा उतारे आरती, बहे ज्ञान सरिता।
निकिता - निकिता ,कभी अज्ञान  कि निशा।।

राहुल प्रदीप हो गया, पाकर के तथागत।
शैलेन्द्र और सुरेन्द्र भी, करते है स्वागत।।
सुनील हैं अनियमित , विनोद और प्रवीण।
ऐसे ही रहे तो फिर, कैसे होंगे उत्तीर्ण।।
समीरन करो मरियम का, दीपक से सुषमा।
मेहनत से आगे बढ़ो, समझो ये कविता।।

बहे ज्ञान सरिता,,,,,,,

समीरन सदा शिवानी को,  चल सत्य की शरणम्।
वैशाली का संजना, जैसे ऋतु आई हेमन्त।।
प्रियंका राय से बने, पूनम का सितारा।
रघुराज से  राहुल मिले ,  जैसे दीपक का सहारा।।
बुद्धि प्रबल वैशाली की, और शिवानी निकिता।
अच्छा पढ़े पूनम रघु, संजना हेमन्त कविता।।
बहे ज्ञान सरिता,,,,,,,,,



अल्लाह का रिजवान हैं,  किस्मत का सितारा।
रिहान और रोहित है, मां बाप का प्यारा।।
सबकी बिधाई है , बस आगे की पढ़ाई।
शुभाशीष से गुरुजन के , हो सबकी भलाई।।
दिलो में है *दिव्यम* सदा, कुरान और गीता।
बहे ज्ञान सरिता,, #Delhi_Riots
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#Dreams
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Jo विश्वास नहीं करते 
उन्हें कभी सफाई मत दो।
क्युकी उन्हें आप पर 
विश्वास है ही नहीं।

धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया
दिव्यम
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*आसान तो कुछ भी नहीं है, इस संसार मे,,,,*

*एक सांँस लेने के लिए भी, पहली सांँस छोडनी पडती है....*

धर्मेंद्र सिंह चोरड़िया*दिव्यम* #Moment
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सिखाया जिन उंगलियों को मैने कलम चलाना
आज वे उंगलियां मुझपर ही उठने लगी हैं।।

जिस बाग को पिलाया कभी पानी मैने ही
आज उस बाग की हर कली रूठने लगी हैं।।

कभी सीखा था जिसने हमसे ही जोड़ना घटना
आज उनकी नजरों में छवि मेरी घटने लगी हैं।।

वे चुर हो बैठे है आज पैसो के अहम में
उनकी नियत अब बदलने लगी हैं।।

पर नाज कर उन गुजरे पलो पर ए दिव्यम
तेरी सजाई मूर्तियां अब तो पूजने लगी हैं।।
,, धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया की कलम से

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Bad Times सिखाया जिन्हें हमने उंगलियों का गणित 
वे उंगलियां आज हम ही पर उठने लगी है।

जिस बाग को पिलाया कभी पानी हम ही ने
उस बाग की हर कली अब रूठने लगी है।।

जो पूछा करते थे कभी हम से जोड़ना घटना
उनकी नजरों में आज छवि अपनी घटने लगी है।।

अब शोक ना कर गुजरे पलो का ए दिव्यम
तेरी सजाई मूर्तियां अब हर घर पूजने लगी है।।

वे जो बैठे है आज पैसे पैसे के अहम में
उनकी नियत भी अब बदलने लगी हैं।।
,, धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया,, की कलम से

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dharmendra

मारो मारो कहै और सब उसे पीट रहे। 
कोन जाने किसका चुराया  उसने धन हैं।
बच्चे चोर बच्चे चोर जोर से चिल्लाते हुए
 ऐसे नोच रहे जैसे लाया कोई बम है।
सभी है पुलिस यहां सभी जज वकील है 
कौन जाने कौन सी धाराओं में किया इसे बंद है।।
मिल गया हक यहां सबको ही दरिंदगी का 
कौन जाने कानूनी किताबे कहां बंद है।।
कहीं मोब लिंचिंग तो कहीं गैंगरेप है
कहीं जात पात पर निकाल दिया दम है।।
अरे कैसा यह भारत हुआ हे महान मेरा
कैसे आए विकास के लिए अच्छे दिन है।।
,धर्मेन्द्र सिंह चोरड़िया

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