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Ravi Pratap pal

जिंदगी की दौड़ में दोस्त इतने मजबूर हो गए है? जो नजदीक हैं वो बातो🎤से दूर हो गए हैं🏃 किस किस का नाम लूं इस छोटे शब्दों में😇😇 जो गोरखपुर,🚶 में हैं वो भी गूलर के फूल हो गए है😢 शायर और कवि रवि

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Ravi Pratap pal

#bachpan
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Ravi Pratap pal

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Ravi Pratap pal

महिला मिशन शक्ति(कविता) 
तुम वेद की अभिव्यक्ति हो,तुम युद्ध का एहसास हो 
तुम काव्य रूपी मीरा हो, तुम लक्ष्मीबाई की सांस हो
तुम खुसरो की हर पक्ती हो,तुम रजिया की भी शक्ति हो 
तुम याग्यवल्य चुनौती हो,तुम गार्गी की तर्कशक्ति हो 
तुम गणपति की लेख हो,तुम वेदव्यास की वेश हो
तुम राम रूपी पत्थर हो ,तुम अशोक की शिलालेख हो 
तुम बादल की हुंकार हो, तुम पवन कि बहार हो 
तुम शेर की दहाड़ हो,तुम "रवि"(सूरज) की अंगार हो
तुम नेह लोगों की प्यार हो ,तुम दुष्टों की संहार हो
तुम कृष्ण चक्र सुदर्शन हो,तुम द्रोण की तलवार हो 
तुम द्रौपदी की लाज हो,तुम समाज का रिवाज हो 
तुम कौरवों का शत्रु हो,तुम कृष्ण की आवाज हो 
तुम ताड़का विनाशी हो,तुम शबरी की भी दासी हो
तुम दरिया की मीन हो,तुम केवट की लाठी हो 
तुम राक्षसों का काल हो,तुम महादेव त्रिकाल हो 
तुम वंशीधर की बांसुरी,तुम दुर्गा मां की भाल हो 
तुम सृष्टि की निर्माण हो,तुम जल की जीवन धार हो 
हर मानुष तुझमें बसते है,तुम मानुष की जीर्णोद्वार हो
BY RAVI PRATAP PAL

©Ravi Pratap pal महिला मिशन शक्ति

#WatchingSunset

महिला मिशन शक्ति #WatchingSunset #कविता

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Ravi Pratap pal

सुना है मन,सुना है तन ये उपवन भी सुने हो गए है
सनी है बाहें,सुनी है आहें ये रहे भी अब सुनी हो गई है
हर शोरगुल वाली गलियों में भी अब शोकाकुल है
ये पवन ये हृदय की धड़कन भी अब सुनी हो गई है
RAVI TO SURYA

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Ravi Pratap pal

कोशिश है कि कर जाए जान को अब जहान के नाम
इस जान में अब जान ही कहां है
कोशिश है कि लिपट जाऊ अब इस वतन के नाम
इस वतन से अलग अब मेरा नाम ही कहां है
RAVI TO RAVINDRA #alone
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Ravi Pratap pal

"कोरोना के खिलाफ"(कविता)
आस लगाए बैठा था कि अब कोरोना टल सकता है
एक दुपहरी से मजदूरों का भोजन चल सकता है
पर अभी भी लोगों के हालत को नाजुक बनाए बैठे हो?
कितनो को डूबा चुके कितने को डुबाए बैठे हो 
तेरे इस काले कारनामे को हम सब मिल मिटाएंगे
जो सपना बन बैठे हो तुम, तुम पर ही छड़ी  चलायेंगे

जो फसें है तेरे उलझन में उनका भी एक अपना घर है
एक पहर में मन लगता नहीं  कैसे कहे कि 8 पहर है 
जो  लट्ठ लाचारी के मारे अपने दर्द छुपाएं बैठे है
कर दे उनको भी रिहा क्योंकि उनका भी एक शहर है

तू निर्जीव निर्मित श्रेणी का एक तुच्छ दरिंदा है
मानव भी सजीव श्रेणी का एक नादान परिंदा है
मत जला रोज -रोज हर घर  में  चिराग  को
तू नश्वर रूपी मुर्दा है,नर"रवि" मानव रूपी जिंदा है
BY RAVI PRATAP PAL

 जलो मगर प्यार से

जलो मगर प्यार से #कविता

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Ravi Pratap pal

"कोरोना के खिलाफ"(कविता)
आस लगाए बैठा था कि अब कोरोना टल सकता है
एक दुपहरी से मजदूरों का भोजन चल सकता है
पर अभी भी लोगों के हालत को नाजुक बनाए बैठे हो?
कितनो को डूबा चुके कितने को डुबाए बैठे हो 
तेरे इस काले कारनामे को हम सब मिल मिटाएंगे
जो सपना बन बैठे हो तुम, तुम पर ही छड़ी  चलायेंगे

जो फसें है तेरे उलझन में उनका भी एक अपना घर है
एक पहर में मन लगता नहीं  कैसे कहे कि 8 पहर है 
जो  लट्ठ लाचारी के मारे अपने दर्द छुपाएं बैठे है
कर दे उनको भी रिहा क्योंकि उनका भी एक शहर है

तू निर्जीव निर्मित श्रेणी का एक तुच्छ दरिंदा है
मानव भी सजीव श्रेणी का एक नादान परिंदा है
मत जला रोज -रोज हर घर  में  चिराग  को
तू नश्वर रूपी मुर्दा है,नर"रवि" मानव रूपी जिंदा है
BY RAVI PRATAP PAL

 जलो मगर प्यार से

जलो मगर प्यार से #कविता

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Ravi Pratap pal

।जिम्मेदारियां मजबूर कर देती दूर रहने को वरना कौन अपने गली में जीना नहीं चाहता।। आरपीपी

आरपीपी

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Ravi Pratap pal

(बचपन की यादें कविता)
वो बचपन के दिन भी कितने शुकून से जिया करते थे,दंगा हो या डांस ह भी एक झुंड में जाया करते थे 
जब कोई ना होता बागों में तो हम लोगो का डेरा था, शाम भी होती वहीं वही शुबह का शवेरा था
 जंगल जंगल बागो बागों में दिन भर हम भी दौड़ा करते थे ,झकरी के पेड़ है आम यह कह हम चढ़ पड़ते थे
जब दीपक और रोहित एक साथ बाग में जाते थे ,तब रामरोहित डर के मारे आधे दूर से भाग आते थे 
जब हम सब पाकड़ के पेड़ पर झूला झूलने जाते थे ,गड़ेरिया टोला के बच्चे आए अर्पित बाबा यह कह चिल्लाते थे
जब हम लोग आपस में खेल खेला करते थे ,चिक्का खेलने के जरिए आपस में धकेला करते थे
कांचा की हो बात तो बुढ़वा अटा हमें नजर आता था ,श्रवन चाचा का कांचा स्टाइल हमें मस्त सा भाता था
घुच्ची की हो बात तो जयहिंद का गांव में नारा था ,इनके थिप्पी फेकने का स्टाइल सब लोगो को प्यारा था
सिस्टोल हो तो सभी लोग एक साथ चिल्लाते थे ,दे दे बॉल सब यहां है बस एक ही रट लगाते थे
क्रिकेट नहीं आता था मुझे इक टकटकी लगाए रहते थे ,मेरे भाई(रविन्द्र) का इक्की दुक्की बस हमें दिखाई देते थे 
रामू भी छोटू गोलू के साथ गिल्ली डंडा खेला करते थे ,और शैलेन्द्र बाबू को लोग मुखिया कह बोला करते थे
हो दादा की बात तो विक्की को लोग बुलाते थे ,बबलू भाई भी अड्डे पर पहले से जूट जाते थे
खेल बंद होने के बाद लोग पाकड़ पर चढ़ जाते थे ,हम भी मस्तराम की पुस्तक लोगो के बीच सुनाते थे
मछली कछुआ के है बाजीगर इनको शिकारी कहते थे ,कपूर चाचा 🐍के भी थे जादूगर जिसे मदारी कहते थे
हो जाए शाम तो सभी लोग एक साथ सड़क पर जाते थे ,सिक्की भाई और अजय पाल बड़ी बड़ी बात बताते थे
फोन से बात कर श्रवण चाचा तीर घाट चल जाए थे ,अरुण पाल भी लोगो को जानाना कह बुलाते थे
घर आने के बाद किसी को डॉट पॉट ना पड़ती थी ,खाना खाने के बाद बस खाट की आस लगी रहती थी
इस तरह से हम लोगो ने अपने बचपन को कुर्बान किए अपने जीवन को लेकर सबने अलग अलग सा काम किए 
BY RAVI PRATAP PAL बचपन की यादें

बचपन की यादें #कविता

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Ravi Pratap pal

हम  दिल में नहीं समाज में रहते है army

army

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