लिखता हू खुद को मिटाने के लिए
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Abhishek shekhar
मैं रोज देखता हूँ तुमको जूड़ा बनाते हुए ,वाकई कमाल जूड़ा बनाती हो
लेकिन वो बाल ,जो छूट जाते है वो अर्धचंद्राकार बाल ऐसे लगता है जैसे कोई झरने की धार ,कोई झुकी हुई पेड़ो की डाली , जैसे कोई ढलता सूरज ,कोई लावण्यता का पूरक ,जैसे कोई पहाड़ो की घुमावदार सड़क ,जैसे कोई साड़ी पर चांदी का वरक ,जैसे कोई अलग ही संसार , अब और क्या कहूँ इसके आगे बेकार है सोला सिंगार । #अनुभव
हे प्रिये किस बिधि तुझे रिझाऊँ ,कौन तरीका मनाऊँ ,क्या अपने प्राण न्योछावर कर जाऊँ
ऐ बादलो सुनो तुम यदि मेरे शहर से होकर जाना,तो मेरे आंसू लेते जाना,और इसके घर के आंगन में गिरा देना ,वो खेल रही होगी बारिश से छोटी बच्ची की तरह ,वैसे जैसे पिछली बार देखा था उसे
जब ये आंसू की बूंदे उसके सिर पर पड़ेगी तो शायद मेरी याद आ जाए, पड़े जब बूंदे उसके कानों में तो याद वो दिन जब मैं उसके कान में जोर से चिल्ला कर भाग जाता था , जब ये बूंदे गिरे उसकी आँखों पर तो शायद मैं उसको कहीं नजर आऊं
,जब गिरे ये बूंदे तेरे गा #बात