रेप इन इंडिया कह कर माताओं बहनों का न अपमान करो
देश की नारी से माफ़ी मांग लो शब्दों का तो मान करो
बलात्कार की पीड़ा तुम क्या जानो राजनीति के लल्लु पप्पु
अपना नहीं कम से कम , दादी मम्मी बहन का सम्मान करो
Dr Vassundhara Rai
Nagpur
Dr Vassundhara Rai
प्रिय तुम मेरे गीतों की प्रेम धुन बन जाना
सुन मेरी गीत धुन तुम मन ही मन मुस्काना
दोहों छंदो और गीतों में प्रेम की बूंदे जो गिरती हैं
बसंत फागुन सावन की फुहार मैने तुमको है
माना
लेखनी संग कल्पना भी बलखा के मुस्काती है
रच वसुधा के गीतों में देख तुमको है शरमाना
Dr Vassundhara Rai
बड़ी गंदी बड़ी उलझी अब विरासत है
तुम्हारी चिता पर गर्म हुई सियासत है
बेटियां जल गयीं कोई फरक नहीं पड़ता है
क्यों तुम्हारे भाषण में दिखती नहीं लियाकत है
Dr Vassundhara Rai
Dr Vassundhara Rai
चिता पर जब तुमने तांडव गया होगा
आत्मा ने आज उत्सव मनाया होगा
शिव भी हारे हारे हारे हारे होंगे
आत्मा ने जो काली रूप सजाया होगा
Dr Vassundhara Rai
Dr Vassundhara Rai
मेरी चीखों को चहकने दो ज़रा
मेरी मृत्यु को फैलने दो ज़रा
बेटी को बचाओ बेटी को पढ़ाओ
इस संदेश को भी हंसने दो ज़रा
जो थम गयीं हैं सांसें मेरी
चिता को मशाल बना दो ज़रा
Dr Vassundhara Rai
Dr Vassundhara Rai
*कौन*
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लम्बी रातों का हिसाब रखेगा कौन
कटि कैसे तन्हाई मेरी सोचेगा कौन
लफ़्ज़ों पे क्यों रही उदासी इतनी
लवों को सिया किसने कहेगा कौन
Dr Vassundhara Rai
विधायक का होता नहीं कोई स्वाभिमान है
होता है तो केवल कुर्सी का अभिमान है
घट तोड़ जोड़ गुणा भाग में विभाजित हुए
लोकतंत्र में दिखता नहीं अब वोटो सम्मान है
Dr Vassundhara Rai
Nagpur
Dr Vassundhara Rai
( १ )
नेताओं का धर्म नहीं न कोई जात-पात है
वोटो के बदले तुमसे हुआ सीधा विश्वासघात है
अब तो जागो जनता कब तक ठगे जाओगे
संविधान दिवस पर लोकतंत्र की हुई मात है
( २ )
आओ थोड़ा तुम थोड़ा हम सिंघम बन जाएं
Dr Vassundhara Rai
इतराती कूरूप राजनीति उतर गरी बाज़ार में
नेता कहे रुपया दो कर लो सरकार में
उल्लु सीधा होने तक पहुंचे हर घर द्वार में
कुर्सी के चक्कर में नेता छोड़ गये मझधार में
Dr Vassundhara Rai
Dr Vassundhara Rai
झूठ पर टिकी सफलता को हंसते देखा है मैंने
बूट की चमक पे क्रूर्रता को चलते देखा है मैंने
सूट के ठाठ बाट को ऐंठता देखा है मैंने
सियासी कुर्सी के लिए नेता को बिकता देखा है मैंने
पूछो तो मैं हूं कौन ,कौन हूं मैं
कालचक्र हूं जिसे कभी टिकता नहीं देखा है मैंने..
Dr Vassundhara Rai