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richadhar9640
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Richa Dhar

I enjoy writing, reading listening to poetry.

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Richa Dhar

White मैं तुम्हारी स्मृति का सेतु बाँधती चली गयी 
तुम्हारी दी हुई पीड़ा के रेत में, मैं अश्रुजल मिलाती चली गयी

कभी न पूर्ण होने वाली अभिलाषा की तिलांजली देती चली गई 
शेष बचे अवशेष को जल प्रवाहित क़रती चली गयी

ये हवन कुंड सा हृदय मेरा, अग्नि प्रज्जवलित होती चली गयी
बाकी बच्ची इक्षाओं को समिधा बना एक एक कर जलाती चली गयी

अंतिम आशा और अभिलाषा समाप्त होती चली गयी 
तुम्हारे प्रेम की आशा,मेरा सम्पूर्ण जीवन कुंठित क़रती चली गयी

©Richa Dhar #GoodMorning जीवन
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Richa Dhar

White 
मैंने उन्मुक्त प्रेम को बांधना चाहा
किनारे तटबंध बनाये,बांध बनाये
बहुत समझाया अंतर्मन को
परंतु प्रेम तो नीर जैसा था
रिस रहा था,न चाह कर भी न रोक सकी
अगाध प्रेम को न बांध सकी
और प्रवाह ने तोड़ दिये सारे बंधन
ये हृदय बांध न सका तुम्हारा प्रेम
और नेत्रों में छलक आया
न चाह कर भी न छुपा सकी तुम्हारा प्रेम
और तुम्हारे प्रेम के प्रवाह में खुद भी बहती चली गयी .....

©Richa Dhar #love_shayari उन्मुक्त प्रेम

#love_shayari उन्मुक्त प्रेम #कविता

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Richa Dhar

White दुखों की परत जम जम के अब पाषाण हो गयी हूँ
कैसे भी ढालों,तराशों कोई भी आकृति दे दो मुझे

दुखों की छैनी हो,या बातों का हथौड़ा
अब कोई भी मार सह लूंगी,कैसा भी बोल दो मुझे

लोगों से सुना है के पत्थर पिघलते नहीं टूट जाया करते हैं
मगर पत्थरों पर भी नमीं दिखाई दी है मुझे

जैसा रूप दोगे मुझे,अब वैसे ही ढल जाऊंगी
अब कोई कमी न रहे मुझमें,अपने अनुरूप बना लो मुझे

©Richa Dhar #love_shayari पाषाण
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Richa Dhar

White कलयुग की छाप दिखने लगी है अब
लोगों के चेहरे से पर्दे गिर रहे हैं अब

जो कहते हैं हिंदुओं को हिंसक
उनकी औक़ात भी देख रहे हैं सब

मणिपुर मुद्दा बहुत गरमाया
बांग्लादेश के मसले पर चुप्पी साधे हैं सब

बंगाल में बलात्कार हुए,जबरन धर्म परिवर्तन हुए
किसी को फ़र्क़ नहीं पड़ा,मौन बैठे हैं सब

हिंदूं अगर हिंसक होता ,मासूम अगर न होता 
तो यूं ही नहीं बरगला पाते सब

हिन्दू सबका सम्मान करता हैं,कण कण में प्रभुता देखता हैं
अगर हिन्दू हिंसक होता तो कब का मिटा दिया होता सब

©Richa Dhar #happy_independence_day जय हिंद
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Richa Dhar

इर्द-गिर्द घूमती अपनी इन परछाइयों का क्या करें
कैसे इन्हें समझाएं,कैसे इनसे निबाह करें

तन्हाइयों में हम तो किसी तरह गुज़र बसर कर लेते हैं
कोई आके इन्हें समझाए मेरे लिए ये न परेशान हुआ करें

धूप में मेरे साथ जलती है,अँधेरे में गुम मुझमें समां जाती है
कोई आ के इन्हें समझाए वो मेरे अंदर न छुपा करे

लोगों की भीड़ से मैं खुद को अलग-थलग कर लेती हूं
कोई आके समझाए मेरे पास आके वो हास-परिहास न किया करे

छोड़ दो मुझे इतना अकेले के मैं मन का गुबार निकाल सकूं
मेरी परछाइयों से कह दो के वो मेरे साथ न चला करें।

©Richa Dhar #Travel मेरी परछाईं✍️✍️✍️

#Travel मेरी परछाईं✍️✍️✍️ #कविता

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Richa Dhar

White सूर्य अस्त होते ही एक चिराग हृदय में जगा लेती हूं 
बिस्तर पर जाते ही मैं अपने आप से मिल पाती हूँ

बहुत से सवाल हैं अनसुलझे और पूछती हूँ
और शब्दों के जाल में खुद ही फंस जाती हूँ

मन के आईने में जब खुद का अस्तित्व देखती हूँ
निराधार सा मैं खुद को पाती हूँ

लोगों का वास्तविक अपनत्व तलाश क़रतीं हूँ
मग़र हर जगह षणयंत्र का शिकार हो जाती हूँ

प्रेम और अपनत्व की तलाश में भटकती रहती हूं
आशा की बुझती हुई बाती बार बार जलाती हूँ

टूटता हृदय अब किसपे भरोसा करे सोचती रहती हूं
झूठे प्रेम,और दिखावे में खुद को घिरा पाती हूँ

©Richa Dhar #Sad_shayri प्रेम और अपनत्व

#Sad_shayri प्रेम और अपनत्व #कविता

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Richa Dhar

हर राज जानता था,हर कदम पर साथ था वो
ज़रा सी नाराज़गी क्या हुई कि रास्ता मोड़ रहा है वो

हम तो खुशामद करते रहे कि वो हमराज़ है मेरा
लेकिन मेरे हर राज़ को अब सबके पास पहुचा रहा है वो

किसपे भरोसा करूँ तो किस पर नहीं
जब मेरे साथ था तो मैं उसकी और मेरी जान था वो

अब मौत भी आये तो कोई डर नही
जीने की चाह थी मैं उसकी,और मेरी ज़िंदगी था वो

©Richa Dhar #WoSadak  गम भरी शायरी मेरी ज़िंदगी

#WoSadak गम भरी शायरी मेरी ज़िंदगी

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Richa Dhar

White कहती है माँ भारती कट रहा है अंग मेरा
केरल कटा,कश्मीर कटा,बंगाल कटा,लूट रहे अस्मिता को

चीख चीख कर रोती है कराहती है माँ भारती
रक्त रंजित हुई धरा,कैसे बताए पीड़ा को

वीर पुत्र दिन रात रक्षा को तत्पर रहते हैं
सेंध लगाए बैठे हैं अपने ही घर में,क्या कहें ऐसे गद्दारों को

माँ वसुंधरा की सुंदरता पर ग्रहण ऐसा लग गया
बट गए उसके ही बच्चे जाती-धर्म में,और अपनाया झूठे प्रपंचों को

एक एक आँसूं का कतरा गिरा,और चोटिल कर दिया नदी पहाड़ों को
कहीं भूस्खलन,कहीं भूचाल माँ ने भी बदल दिया भूगोल को

©Richa Dhar #kargil_vijay_diwas मेंरा वतन

#kargil_vijay_diwas मेंरा वतन #कविता

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Richa Dhar

वो वक़्त बीत गया,वो दौर भी गुज़र गया
मग़र महसूस होता रहा आज भी तन्हाइयों में तुम्हारा इश्क़

होकर भी न हो सकी,ज़माने के डर से मैं तेरी
खुशबू तेरी साथ साथ रही जैसे मुश्क

ज़हन में तो तेरे साथ आज भी जी रही हूं
लेकिन ज़िंदगी लगती है अभी भी ख़ुश्क

ए खुदा किसी को किसी से जुदा न करना
इश्क़ ख़ुदा है और सबको ज़रूरत है खुदा-ए-इश्क़

©Richa Dhar #Love ख़ुदा ए इश्क़

Love ख़ुदा ए इश्क़ #लव

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Richa Dhar

ए-सावन ऐसी बरसात कर कि सब भीग जाए
तन तो भीग गया अब मन भी भीग जाए

तन का मैल धुल गया ,अब मन का भी मैल धुल जाए
ऐसा भिगा कि धुल के सबका व्यक्तित्व स्वक्ष हो जाए

भगवन ऐसी बारिश करना कि सब तर हो जाए
बीज बोया है आज प्रेम का वो भी पनप जाए

एक आशा है सावन तुझसे कि तू सबको प्रेम करना सिखा जाए
लोगों के हृदय में प्रेम जगा,घृणा का अस्तित्व समाप्त हो जाये

©Richa Dhar #Barsaat बरसात

#Barsaat बरसात #कविता

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