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Kanchan Kumari

I love Nu jatav enjoy all kahaniyan🇨🇮

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Kanchan Kumari

#son #nadi#kekinare
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Kanchan Kumari



अब ये सब पढ़-सुनकर आपको लग रहा होगा कि यह राजा तो बहुत ही प्रसन्न और मौज में रहता होगा, तो ऐसा बिलकुल न था. राजा अक्सर उदास रहता था क्योंकि उसके जीवन में अमन चैन की मात्रा इतनी ज्यादा थी कि उसके पास करने के लिए कोई काम ही न होता था. दरबार में खाली बैठे-बैठे समय काटना उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत थी.

उसके दरबारीगण अक्सर उसे किस्से कहानियां सुनाया करते जिन्हें सुन-सुनकर वह अपना समय काटा करता. फिर ये हुआ कि धीरे -धीरे उसे कहानियां सुनने का चस्का लग गया. जैसे ही एक कहानी ख़त्म होती, वह दूसरे दरबारी से कहानी सुनाने का आग्रह करता. दूसरा ख़त्म करता तो तीसरे का मुँह ताकने लगता. किन्तु दरबारी आखिर कितनी कहानियां सुना सकते थे, सो आखिर एक दिन उनकी कहानियां ख़त्म हो गईं. 


अब तो राजा बड़ा परेशान, उसका समय काटे न कटे. अब भी दरबारी उसके लिए छोटी-मोटी कहानियां बनाकर लाते और सुनाते, किन्तु उनसे उसका जी न भरता था बल्कि उसकी कहानी सुनने की प्यास और बढ़ जाती थी. 


वह चाहता था कि कोई उसे ऐसी कहानी सुनाये, इतनी लम्बी कहानी सुनाये, कि जिससे उसका जी भर जाए. आखिर जब उसे अपने दरबार में कोई ऐसा कहानी सुनाने वाला न मिला तब एक दिन उसने राज्य भर में मुनादी करवा दी कि जो भी उसे खूब लम्बी कहानी सुनाएगा, जिसे सुनकर उसकी कहानी सुनने की प्यास बुझ जाए, तो उसके साथ वह अपनी बेटी अर्थात राजकुमारी का विवाह कर देगा और अपना उत्तराधिकारी बना देगा. 

किन्तु उसने इस घोषणा के साथ एक शर्त भी लगा दी कि यदि कहानी पर्याप्त लम्बी न हुई, अर्थात जिसे सुनकर राजा का जी न भरा, तो उस आदमी को ज़िन्दगी भर के लिए जेल में चक्की पीसने के लिए डाल दिया जाएगा. 

राजा की बेटी बहुत सुन्दर थी. कहानी सुनाने के पुरस्कार के रूप में उससे विवाह की बात सुनकर कई लोगों के मन में लालच पैदा हुआ, किन्तु असफल होने पर जेल जाने की शर्त सुनकर मन मसोस कर रह गए. दरअसल राजा कहानी सुनने का कितना बड़ा शौक़ीन है, ये बात राज्य भर में सभी लोग जानते थे. उसका जी भरना कोई आसान काम न था. 

बड़ी हिम्मत करके एक आदमी सामने आया. उसने राजा को कहानी सुनाना शुरू किया. उसकी कहानी तीन महीने तक चलती रही. राजा बड़े चाव से सुनता रहा. लेकिन आखिरकार एक दिन उसकी कल्पनाशक्ति ने जवाब दे दिया और वह कहानी को आगे बढाने में असमर्थ हो गया. शर्त के मुताबिक़ राजा ने उसे जेल में डलवा दिया. 

राजा फिर उदास रहने लगा. कहानी सुने बिना उसका मन न लगता था. किन्तु जेल जाने के डर के कारण कोई अब उसे कहानी सुनाने को आगे न आता था. 


उसी राज्य में एक बुद्धिमान और साहसी युवक रहता था. वह मन ही मन राजा की बेटी से प्रेम करता था और उससे विवाह करना चाहता था. उसके कानों तक जब राजा की घोषणा पहुंची, तो वह अपनी किस्मत आजमाने दरबार में पहुँच गया. 


उसने राजा से कहा - "महाराज, क्या ये सच है कि सबसे लम्बी कहानी सुनाने वाले से आप राजकुमारी का विवाह कर देंगे ?"

राजा - "बिलकुल सच है. किन्तु असफल रहने पर तुम्हें ज़िन्दगी भर के लिए जेल में चक्की पीसनी पड़ेगी, ये भी सच है."

युवक - "मुझे शर्त मंजूर है महाराज. मैं आपको अपनी कहानी सुनाना चाहता हूँ जो एक बार एक प्रदेश पर हुए टिड्डी दल के आक्रमण से सम्बंधित है."

राजा तो कहानी सुनने का तलबगार था ही. तुरंत तैयार होकर कहानी सुनने बैठ गया.

युवक ने अपनी कहानी कुछ यूँ शुरू की - "एक बार एक राज्य था जिस पर हर साल टिड्डी दल का हमला होता था. इससे तंग आकर राजा ने नगर के बाहर एक विशाल गोदाम बनवाया और राज्य भर का सारा अनाज बड़े - बड़े ड्रमों में भरवा कर उसके भीतर बंद करवा दिया. 

जब टिड्डी दल आया तो उसे राज्य भर में अनाज का एक दाना भी नहीं मिला. किन्तु टिड्डी दल आगे नहीं बढ़ा बल्कि वहीं मंडराता रहा और आखिरकार उन्होंने पता लगा लिया कि सारा अनाज इस गोदाम में बंद है किन्तु उसमें प्रवेश का कोई रास्ता नहीं है. 

अनाज का पता चल जाने के बाद टिड्डियों ने गोदाम में प्रवेश के रास्ते की खोज शुरू की और अंततः एक ऐसा सूराख खोजने में सफल रहे जिसमें से होकर एक बार में केवल एक ही टिड्डी भीतर जा सकती थी और अनाज का दाना लेकर वापस आ सकती थी. 

फिर क्या था, उस सूराख से होकर पहली टिड्डी भीतर गई और अनाज का दाना लेकर बाहर निकल आई .... 

फिर दूसरी टिड्डी भीतर गई और अनाज का दाना लेकर बाहर निकल आई .... 

फिर और दूसरी टिड्डी भीतर गई और अनाज का दाना लेकर बाहर निकल आई .... 

फिर और दूसरी टिड्डी भीतर गई और अनाज का दाना लेकर बाहर निकल आई .... 

फिर और दूसरी टिड्डी ...... "

एक दिन बीता, दो दिन बीते, धीरे-धीरे हफ्ता बीत गया. युवक कहानी के नाम पर बस एक ही लाइन कहता जा रहा था - "फिर दूसरी टिड्डी भीतर गई और अनाज का दाना लेकर बाहर निकल आई ...."

इसी तरह महीना बीत गया, छः महीने बीत गए, साल बीत गया, दो साल बीत गए पर युवक वही लाइन दोहराता रहा. 

राजा बार बार एक ही लाइन सुन सुन कर बुरी तरह उकता गया और एक दिन बोला - "नौजवान, आखिर कब तक इस तरह टिड्डियाँ गोदाम के भीतर से अनाज का दाना लेकर निकलती रहेंगी ?"

युवक बोला - "जब तक सारा अनाज ख़त्म नहीं हो जाता महाराज ! क्योंकि टिड्डी दल जहां भी हमला करता है वहाँ सफाचट करके ही आगे बढ़ता है. 


अभी तो गोदाम के सैकड़ों कमरों में भरे हजारों ड्रमों में से पचास ड्रम भी खाली नहीं हुए महाराज !"


राजा हाथ जोड़कर बोला - "भाई, तू जीता मैं हारा. मैं अपनी बेटी का विवाह तेरे साथ कर दूंगा और तुझे अपना उत्तराधिकारी भी बना दूंगा किन्तु अब ये कहानी और आगे नहीं सुन सकता. मैं अब कोई भी और कहानी नहीं सुनना चाहता."

बस, फिर क्या था, बुद्धिमान युवक का राजकुमारी से विवाह हो गया और वह राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया गया. साथ ही राजा साहब का कहानी सुनने का चस्का भी जाता रहा.


    
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Pyar Karte Hain To Pyar nibhaanaa Sikho Janab Varna Pyar To Aaj Ke Jamane Mein Khilauna ho chuka hai

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  #Ja
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Kanchan Kumari

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Kanchan Kumari

निश्चित तौर पर इससे मुझे खुशी मिलती है लेकिन यह मेरे लिए थोड़ा सरप्राइज़ जैसा भी होता है. उनकी बेटी होने के चलते, मैं सहजता से भूल जाती हूं कि उनका व्यक्तित्व कितना ख़ास है. जब भी मां के बारे में दूसरे लोगों से सुनती हूं तब-तब मैं उन्हें नए तरह से देखती हूं.

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  # Meri Man hai

# Meri Man hai #ज़िन्दगी

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Kanchan Kumari

मेरी मां मेरे दोस्तों में बहुत पॉपुलर हैं. मेरे दोस्त उनसे बातें करना पसंद करते हैं और जब भी वे मुझसे मिलने आते हैं, वे मेरी मां से मिलने की कोशिश विशेष रूप से करते हैं. वे एकसाथ हंसते हैं और एक-दूसरे की सराहना करते हैं और कभी-कभी मेरा मज़ाक भी उड़ाते हैं.

जो मेरी मां से पहली बार मिलते हैं वो भी कहते हैं कि मैं कितनी लकी हूँ कि मुझे ऐसी मां मिली हैं.

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  #meri maa yesi thi
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सांकेतिक तस्वीर

अक्सर मुझे लगता है कि मेरी मां, सुधा, जो सबकी बातें और ज़रूरतें समझती हैं, वो अपनी निजी बातों को हमें ठीक से समझा नहीं पाती हैं. शायद असल सच यह है कि हम मां को ठीक से समझने की कोशिश नहीं

©Kanchan Kumari
  # Pyari Maa
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Kanchan Kumari

हर दिन की तरह मैं सुबह 8 बजे मैं चाय पीने के लिए अपने होस्टल से बाहर जाने के लिए निकला, मैं जैसे ही चाय की दुकान वाले के पास पहुंचा, देखा आज चाय वाला वहा पे नहीं था। शायद देर से पहुचने कारण वो चाय वाला वहा से   जा चुका था , मेरे पास होस्टल लौट जाने के आलावा कोई और ऑप्शन नही था। मैंने सोचा की आगे जाकर कही नाश्ता कर लिया जाए, बहुत जोर की भूख लगी थी। मैं आगे की होटल की ओर जा रहा था।
तभी मेरी नज़र फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी, दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे बच्चों की हालत बहुत खराब और कमजोर नज़र आ रहे थे। कमजोरी के कारण अस्थिपिंजर साफ दिखाई दे रहे थे, वे भूखे लग रहे थे। छोटा बच्चा रोते हुए बड़े भाई को खाने के बारे में कह रहा था, बड़ा भाई उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था, वो जानता था ना तो मेरे पास पैसे है ना ही खाने के लिए भोजन जिससे मैं अपने छोटे भाई की भुख मिटा सकू , वो भी लाचार बैठा भूख से पागल होए जा रहा था। मैं अचानक रुक गया दौड़ती भागती जिंदगी में एकदम से ठहर से गये।

इन मासुम से बच्चो की ऐसी हालात को देख मेरा मन भर आया इनकी भूख को देख मेरा भुख खत्म सा होगा, सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाए, मैंने उन्हें 10 रु देकर आगे बढ़ गया। जैसे ही मैं आगे की और बढ़ा मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हुँ मैं, 10 रु क्या मिलेगा, चाय तक ढंग से न मिलेगी, स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा।

मैने मासूम से देखने वाले भूखे बच्चों से कहा: कुछ खाओगे ? बच्चे थोड़े असमंजस में पड़े मैंने कहा बेटा मैं नाश्ता करने जा रहा हुँ, तुम भी कर लो, वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए। उनके कपड़े गंदे होने और ऐसी हालात में देख कर होटल वाले ने डाट दिया और भगाने लगा, मैंने कहा भाई साहब उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो पैसे मैं दूंगा।

मेरे बाते सुन होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा….......
उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी। बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी मांगी। सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया बच्चे जब खाने लगे, उनके चेहरे की ख़ुशी देख मेरे चेहरे पे स्माइल आ गया। उस वक़्त हमे दुनिया की काफी अच्छी फ़ीलिंग आ रहा था । उन दो मासूम बच्चो को देख अपना बचपना याद आ गया।

होटल  से निकलने के बाद मैंने बच्चों को कहा बेटा जो पैसे मैंने दिए है उसमे 2 रु का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना। और फिर दोपहर-शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना, और मैं नाश्ते के पैसे दे कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला।

होटल के आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे होटल वाले के शब्द आदर मे परिवर्तित हो चुके थे। मैं अपने होस्टल की ओर निकला, थोडा मन भारी लग रहा था मन थोडा उनके बारे में सोच कर दुखी हो रहा था। रास्ते में मंदिर आया मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा हे भगवान! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ये भूख, आप कैसे चुप बैठ सकते है।

मोरल - आज हमारे आस-पास मैं ना जाने ऐसे कितने लोग हैं जो गरीबी के कारण एक पल के लिए खाने के लिए उनके पास भोजन नही हैं , और नाही उनके पास पहने के लिए कपड़े है। जहाँ पे इस तरह के बच्चे आपको देखे आप उनकी मदद जरूर करे , जितना हो सके उतना मदद जरूर करे उसके बाद आपको जो खुशी मिलेगी ना वो और खुशी कही और नही मिलने वाली आपको ।

©Kanchan Kumari
  # Ek Aisi Garibi ki kahani

# Ek Aisi Garibi ki kahani #ज़िन्दगी

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