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Shayari
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अपने ही वजूद का बिखराव दरअस्ल हूँ मैं । आईनों की बस्ती में तभी बेशक्ल हूँ मैं ।। शौक़ से गुनगुना रहे थे जिसे लोग " अब्र" गुमनाम कलमकार की वो ग़ज़्ल हूँ मैं
अब्र (Abr)