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manmanthdas6888
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Manmanth Das

मैं कला को आकार देता हूँ कला मुझे आकार देती है

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Manmanth Das

आजकल मतलब भर के रिश्ते वाली दुनिया में लोग त्योहार में भी मतलब ढूँढ लेते हैं नकली मुस्कान और नकली सामान से घर बाजार गुलज़ार हैं मगर भारतीय परंपरा में materialistic हुए बिना किसी दिए के जैसे सबके लिए उजाला मांगने का भाव सदा रहा है 💯 किसी के स्वागत में राम राम❤ के दो मीठे बोल बोलने वाले हम कैसे हर चीज़ में शुभता ढूँढ लेते हैं कि इतने हर्ष उल्लास और वैभव के त्योहार में शुभ के बिना ळाभ की कामना नहीं करते और दीवाली की बधाई भी देना हो तो कहते हैं शुभ दीपावली🎇
  so hey guys 
be the source of light 🙌
and spread the joy, love and happiness to this world 🛕"

©Manmanth Das
  #hapydiwali
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Manmanth Das

#Karwachauth #kalam_ke_dhabbe
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Manmanth Das

बहुत दूर तलक चलता रहा हूँ 
अपनी मंजिल से🙌 
अपनों की खुशी के लिए😢

©Manmanth Das
  #kalam_ke_dhabbe  
#mywords #mywritings #ankahi
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Manmanth Das

एक तू है
 जिसकी तलाश में है दिल
एक तेरा ख्याल जो
 आंखों से ओझल नहीं होता।

©Manmanth Das
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Manmanth Das

अंत नहीं चाह की मगर 
चुनना मन को चाहिए 
पाप पुण्य मन में ही है 
मन को क्या क्या चाहिए। 

नहीं चाहिए दश आनन
न स्वर्ण धाम चाहिए 
वन में सहर्ष गमन करे
आदर्श ऐसे राम चाहिए।

दशशीश में भटक रहा 
मन को विश्राम चाहिए 
असत्य पर विजय के लिए 
सत्य को भी राम चाहिए।

अधर्म को नमन नहीं 
न सत्य को नाम चाहिए 
त्याग में तपे राम को 
राम में भी राम चाहिए ।

नहीं चाहिए चन्द्रहास 
न कोई विमान चाहिए 
मानवता की शिला को 
चरण रज श्री राम चाहिए।

दंभ का दमन करे जो 
प्रयास अविराम चाहिए 
जलधि त्राहि त्राहि करे तो 
कोदंड को भी राम चाहिए। 

न चाहिए छल कभी भी 
न कभी अभिमान चाहिए 
सेतु बना सके समुद्र में 
मन को ऐसे राम चाहिए ।

विकल्प है अनेक किंतु 
श्रेष्ठ समाधान चाहिए 
द्वन्द्व में दुःखी मन को 
चुनना श्री राम चाहिए ।

                    ✍मन्मंथ

©Manmanth Das #shreeram #kavita

#NojotoRamleela
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Manmanth Das

#Spring  #poem #Self #written #manmanth 

#LOVEGUITAR
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Manmanth Das

ओस से भींगीं नम
 हुई नई हरी दूब, 
कोमल फसलें व
नव यौवन लिए
मंद मुसकाते हुए, 
कुछ पुष्प लताएँ
कोंपलों को समेटे
नए हरे पत्ते और
कलियाँ सकुचाते हुए , 
कल्लोलित खग वृंद 
मधुर प्रस्फुटित स्वर
में गुनगुनाते हुए,
अलसी रही झूम
प्रिय के स्वागत में
अपने हृदय के समस्त 
भाव बिछाते हुए, 
वसुंधरा धर रही
नित बसंती परिधान
 ऋतुराज की राह में
पलकें बिछाते हुए, 
आम्र कुंज से मधु
चुराकर मादक कोकिल
चिहुँक रही जाने कब से 
अपने प्रिय को बुलाते हुए, 
और उतारकर चादरें
धुंध की बसुधा देखो
झुरमुट से झांक रही
मानो देखा है उसने
पीले सरसों के पीछे 
से बसंत को आते हुए। 
                 मन्मंथ् ✍

©Manmanth Das #बसंत #कविता #रचना #मन्मंथ

बसंत कविता रचना मन्मंथ

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Manmanth Das

झुरमुटों के तले 
खड़ा हूँ परछाईं
अपनी साथ लिए,
इंतज़ार में बदल
जाने के मौसम के
जब पत्ते दरख़्तों
का छोड़ देंगे साथ , 
और निकल आएगी
धूप सच की तरह
तब निखर जाएँगी
परछाई थोड़ी सी। 
और चमकती सड़क
पर देखना मुड़कर
दिखेगी मेरी मंजिल
मुझे बुलाते हुए। 
इंतज़ार खत्म होगा
जब मेरा वक्त होगा
इसी सड़क पर मैं
तुम्हें कभी दिखूँगा 
अपनी परछाई लिए
तुमसे दूर जाते हुए। 
                    मन्मंथ्✍

©Manmanth Das #manmanth #wakt 

#WalkingInWoods  Mahendra Maddheshiya Ravi Sagar Anu Tripathi  Mona Singh Zahid Raza

#manmanth #wakt #WalkingInWoods Mahendra Maddheshiya Ravi Sagar Anu Tripathi Mona Singh Zahid Raza #शायरी

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Manmanth Das

बेशकीमती है हमारा ये सादापन,
तुम्हें क्या पता 
सादगी किसी बाजार में नहीं मिलती ।

©Manmanth Das #सादगी #शायरी #मन्मंथ 

#Tea_and_Me
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Manmanth Das

तोहमत तो न लगाते  हम पर आवारगी का 
मेरी दीवानगी उन गलियों में आज भी आवारा हैं

©Manmanth Das #तोहमत #शायरी #लफ्ज़ #मन्मंथ 

#Flower
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