Nojoto: Largest Storytelling Platform
rupeshp1969
  • 62Stories
  • 51Followers
  • 516Love
    100Views

Rupesh P

मुझे प्रतिलिपि पर फॉलो करें : https://hindi.pratilipi.com/user/c370p29k4w?utm_source=android&utm_campaign=myprofile_share

https://m.facebook.com/writerrupak/

  • Popular
  • Latest
  • Repost
  • Video
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

डेढ़ सयाने

कहीं सफर में आते-जाते,
अनजाने जज़्बात जगाते,
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

डेढ़ सयाने बतलाते हैं,
हमको क्या-क्या ज्ञात नहीं है,
क्या करने की क़ुव्वत अपनी,
और किसकी औकात नहीं है।
सब्ज़ बाग़ सपनों के सुंदर,
दिखलाते है  डेढ़ सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

इनने नाप रखी है पृथ्वी,
अपनी वृहद डेढ़ टंगड़ी से,
और सारा आकाश
उठा रखा है एक छोटी उंगली से।
दुविधा ग्रसित, चकित चिंतित को
और छकाते डेढ़ सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने ।

जब तुमको हर बात पता है,
फिर क्यों नहीं शिखर पर जाते?
क्यों बैठे हो मार्ग रोककर,
पथिकों के रोड़े अटकाते?
सबकी सही राह और मंज़िल,
'रूपक' रुक मत बनो सयाने।
बिना बात की बात बनाते,
मिल जाते हैं डेढ़ सयाने
रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
(facebook: @writerrupak)

©Rupesh P #jharokha
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

कितनी बातें कहने को थीं,
कितनी बातें व्यर्थ कहीं,
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

मन भर बातें मन में रखीं,
हल्की-फुल्की बोल गए,
भाव-विभोर, भयातुर, 
मुख क्या ग़लत समय पर खोल गए ?
शब्द बाण निष्प्राण, लक्ष्य संधान,
ध्यान से हुआ नहीं ।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

अनुभव में थे पके शब्द,
जो युवा कर्ण को कटु लगे,
ममता से थे भरे शब्द,
जो अहंकार में लघु लगे।
क्रोधाग्नि में जली नसीहत,
चिड़िया चुगकर खेत गयी।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

समय नहीं रुकता है रोके,
राजा, रंक, प्रसन्न, उदास,
नहीं लौट पाते पल 'रूपक'
रह जाती बस आधी प्यास।
भावी क्षण की छांछ फूंकते,
विगत क्षणों की टीस सही।
जब अतीत के शब्द टटोले,
गङबङ खाता, ग़लत बही।

FB: @writerrupak
writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #Butterfly
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

थोड़ा हँसना, थोड़ा रोना,
हँसकर लोट-पोट होना,
'अच्छा' कहना, ताली देना,
गुस्सा होना, गाली देना;
अब तो हर बात बताने को,
बंधन-रहित emoji है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

अब शब्द-व्याकरण गौण हुए,
बस बात समझकर LOL हुआ,
हिन्दी में 'भ्राता' कहने वाला,
BRO! वालों से troll हुआ,
अब परसाई के व्यंग्य नहीं,
हर शब्द के अर्थ असीम,
अब हैं चुभते विष-बुझे बाण,
कहलाते हैं जो meme;

बॉलीवुड का हिन्दीभाषी,
धोती धारी, सर चोटी है,
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

माना कि हिन्दी Cool नहीं,
और न ही उतनी HOT लगे,
Literature तो LIT लगता है,
साहित्य गाँव की हाट लगे;
अब हिन्दी के विद्वानों की,
स्थितियाँ विस्मयकारक हैं,
कुछ की ह्रदय विदारक है,
और कुछ स्टार-प्रचारक हैं;
है नमन नवीन लेखकों को,
हिन्दी 2.0 सोची है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।

जन से जुड़ने की आशा में,
तत्सम के तद्भव रूप बने,
फिर हर भाषा से शब्द उठा,
हिन्दी के सरल स्वरूप बने,
अब जिसको हिंदी कहते हैं,
वो हिन्दी जैसी लगती है,
उतनी ही जितनी फ्रेंच-फल्लियां,
भिंडी जैसी लगती है।
अटका है पंत, निराला में,
'रूपक' थोड़ा संकोची है।
ऐसे में उनको प्रणाम (🙏🏻),
जो हिन्दी के खोजी हैं।
facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #Hindi #HindiDiwas2021 #hindikavita #hindi_poetry #हिंदी #हिंदीदिवस 

#pen
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

यहां से भाग जाना चाहता हूँ,
कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ।

बड़ी चिपकू हैं ये दुनिया की रस्में,
ज़रा पीछा छुड़ाना चाहता हूँ।

वो बाग़ीपन तुम्हारे दिल में भी है,
मैं जिसको आज़माना चाहता हूँ।
 
लकीरें भी, क़दम भी घिस गए हैं,
नया रस्ता बनाना चाहता हूँ।

पहाड़ों की तरह पथरा गया हूँ,
मैं बादल बनके गाना चाहता हूँ।

समय की पटरियों पर रेल-जीवन,
बस एक जंज़ीर पाना चाहता हूँ।

सभी फ़ितरत यहां आतिश-फ़िशां हैं,
मैं जल्दी जाग जाना चाहता हूँ।

इन आधी रात के ख्वाबों को 'रूपक'
सुबह ख़ुद से छुपाना चाहता हूँ।

यहां से भाग जाना चाहता हूँ,
कोई अच्छा बहाना चाहता हूँ।

~Rupesh Pandey 'Rupak'
facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #ghazal #nagma #geet #poetrycommunity 

#flyhigh
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

#जन्माष्टमी #कृष्ण #कन्हैया #janmashtami #KanhaJi #Kanhaiya #jaikanhaiyalalki
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

बालमुकुंद, मदन, मधुसूदन, पार लगाते नैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

बिछड़े हुए देवकीनंदन, या बिगड़े लाल यशोदा,
रसिया ग्वाल गोपियों के, या गीता ज्ञान पुरोधा,
सृष्टि के आदि-अनंत, भवसागर के खेवईया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

स्वयं सजाएं मंच, दिखाएं भाँति-भाँति की लीला,
नवरस बरबस खेलें सब, कभी चोटिल कभी चुटीला,
भाव करें जब घाव, तो भरते खुद ही मुरली बजैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

जीवन जिनका सतत प्रेरणा, हर किरदार प्रवीण,
नटखट, प्रेमी, राजा, योगी, सब उत्तम सब उत्तीर्ण,
काम, क्रोध, न लोभ मोह, सब जन सम भाव दिखैया,
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।

धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हैं, भवसागर के द्वार,
कर्म, साधना, भक्ति मार्ग, से होते हैं यह पार
'रूपक' चातक चंद्र प्रभु , मीरा-कण्ठ बसैया, 
जिसके मन जैसे भाये, वैसे कृष्ण कन्हैया।
facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #janmashtami #jaishrikrishna #kanha #Kanhaiya 
#DearKanha
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

प्रलय की प्रतीक्षा में

फिरसे लोग फ़ूटेंगे अंकुरों की तरह,
उग आयेंगे यहाँ-वहाँ कुकुरमुत्तों की तरह,
लटक जाएंगे ऊँचाइयों पर छत्तों की तरह,
फैल जाएंगे हर ओर खर-पतवार की तरह।

निकल पड़ेंगे सरीसृप, उभयचरों जैसे,
जब आषाढ़ में चिटकी धरती पर,
गिरेंगी सावन की पहली बूंदे, 
और आएगी सौंधी सुगंध।

जैसे पानी की खोज में रोज़ निकलते हैं,
चीतल, हिरण और बारहसिंगे,
तेन्दुए और बाघ से बचते-लड़ते-मरते,
निकल पड़ेंगे पेट, ह्रदय या आत्मा के लिए।

वो उठा देंगे उंगलियां अपने बगल वाले पे,
जो लाया था सुनामी,प्रलय,भूकंप,महामारी;
मैं तो बस लाया था अपने हिस्से का सुख,
जब खोद रहा था पड़ोसी हमारी क़ब्र।

जब सड़कें सुनसान थीं, 
विचर रही थी हमारी अदृश्य कुढ़न,
अब सड़कें हो गईं हैं आबाद,
और कुढ़न दुबक गयी है कमरे में।

भटकेंगी फिरसे सशरीर आत्माएं,
अगले प्रलय के आने तक,
हर नई पीढ़ी, लाएगी प्रलय शीध्र,
और बढ़ जाएगी आगे शीघ्रतम।
Facebook:@writerrupak
email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #Rose
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

दबे पांव का आना कब तक, बात-बात डर जाना कब तक,
कब तक रहना सहमा-सहमा, आफ़त का सर आना कब तक ?

©Rupesh P

3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

प्यास बुझे  न ! प्यास बुझे न !
मुझे और पीना है नीर,
कर दो खाली कूप, सरोवर,
नदी, ताल, झरने और झील।

अरे कंटको ! कष्ट कंठ को !
तृप्ति का कुछ करो उपाय,
हाय! कैसी अमिट ये तृष्णा, 
'जल' जाए, तो फिर 'जल' जाए।

अर्जित, अर्चित, पूजित, सिंचित,
नित, नवीन, मन अथक, अधीर।
प्यास बुझे न ! प्यास बुझे न !
मुझे और पीना है नीर।

मार आया उस मूढ़मति को,
जो कहती थी लोभ न कर,
क्षोभ, न पश्चाताप, पाप न पुण्य,
मार्ग पर शोध न कर।

हुए अप्राप्य, प्राप्य, 
प्राप्य पर, फिर अप्राप्य की अविरत पीर।
प्यास बुझे न ! प्यास बुझे न !
मुझे और पीना है नीर।

श्मशान वैराग्य तिरोहित,
कर वैभव लोलुपता पर,
दिशाहीन उन्मत्त नृत्य,
फिर किया मोह की मदिरा पर।

बस अंतिम अभियान अनिश्चित,
ततपश्चात सुजान, सुधीर।
प्यास बुझे न ! प्यास बुझे न !
मुझे और पीना है नीर।

भोगी, लोभी, दर्पी, मोही,
लालच लत, निष्प्राप्य अफीम,
'रूपक' भागे उसी दौड़ में,
जिसकी सीमा क्षितिज असीम।

ज्ञान-जलधि है, कुमति लवण है,
चातक दीन-हीन गंभीर।
प्यास बुझे न ! प्यास बुझे न !
मुझे और पीना है नीर।

facebook: @writerrupak
email: writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #desire #desires #greed #poetrycommunity 

#Life
3a375039ab441a99cd6897ad10748f38

Rupesh P

त्याग, तपस्या, बलिदानों की, गाथा को फिर गढ़ना होगा,
आज़ादी का अर्थ, हमें अब नए रूप में पढ़ना होगा ।

बहुत सुन चुके दुखद कथाएं,
निर्धनता की, कातरता की,
लुट-पिट कर हंसते रहने की,
थक कर बैठी बर्बरता की,
आतुरता को धृष्ट बताती, 
संयम वाली समरसता की;

निर्बल बन संबल पाने की, लोलुपता से बचना होगा।
आज़ादी का अर्थ, हमें अब नए रूप में पढ़ना होगा ।

पर्व मनाकर रीत चुके तो,
अवलोकन भी हो गल्ती का,
कब तक गाल बजायेंगे हम,
न मिटने वाली हस्ती का,
बस्ती के जल जाने पर, 
न जलने वाली एक रस्सी का;

क्षत-विक्षत-आहत रहकर भी, हमें अनवरत चलना होगा।
आज़ादी का अर्थ, हमें अब नए रूप में पढ़ना होगा ।

राष्ट्र अखण्ड यदि हो जाते,
भूमि के जीते टुकड़ों से,
बार-बार न नोंचे जाते,
चिढ़े हुए ज़ख्मी गिद्धों से;
युद्धों से सब सम होते, 
न याचक बनते कर-बद्धों से;

राष्ट्र भाव, मन, वचन, कर्म में, एकनिष्ठ हो भरना होगा;
आज़ादी का अर्थ, हमें अब नए रूप में पढ़ना होगा ।

आओ अलख जगाएं फिरसे,
भव्य भारतीय स्वाभिमान की,
जाति, पंथ, न धर्म, रंग की,
सबल राष्ट्र के जन महान की,
ज्ञान धरा की, विश्वगुरु की,
आत्म-अर्चना के प्रमाण की;

दीन-हीन-याचक भावों से 'रूपक', सबको डरना होगा।
आज़ादी का अर्थ, हमें अब नए रूप में पढ़ना होगा।

रूपेश पाण्डेय 'रूपक'
Facebook:@writerrupak
Email:writerrupak@gmail.com

©Rupesh P #india #IndependenceDay 

#neerajchopra
loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile