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nikhilvairaagi0550
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Nikhil Vairaagi

सब कुछ तो बचा है कहने को, तुम सुनोगे क्या..?

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Nikhil Vairaagi

रात खिड़की से झाँकता चाँद
और उसकी अनगिनत बाहें
छेड़ती हैं तुमको
जिसे तुम रौशनी कहती हो,

हर रात चूमती हैं 
तुम्हारे बदन को,
होंठो को, आँखों को
खेलती हैं जुल्फों में तुम्हारे
उसकी बाहें जी भर,

हर रात आता है वो
उमस की गर्मियों में
जलता हूँ देखकर तुम्हे
उसकी बाहों में
कम्बख़्त जाता भी तब है
जब मैं जलकर 
आग का गोला(सूर्य) हो जाता हूँ।

©Nikhil Vairaagi #KhidkiSeChand 
Divyanshu kumar singh Namita Writer Namita Nisha Mamta  Madhavi Choudhary  Divyanshu kumar singh

#KhidkiSeChand Divyanshu kumar singh Namita Writer Namita Nisha Mamta Madhavi Choudhary Divyanshu kumar singh #कविता

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Nikhil Vairaagi

 #TumItniKhubsooratHo
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Nikhil Vairaagi

अध्यापक कहूँ या मित्र?
अंतर करना मुश्किल सा लगता है,
क्योंकि मेरे जीवन के हर मोड़ पर
आपने वही किरदार चुने जो मुझे
हर बार गलतियों से बचाता और
मुस्कुराने की नई वज़ह बनकर
हर बार इस अंधेरे सफ़र से 
एक किरण उम्मीद की 
मेरी घबराई आंखों को दिखाता,
आपने तब भी अपना किरदार बदला
जब मैं जीवन के उस पड़ाव पर था
जहाँ गलतियाँ होना लाज़मी था मगर
उन गलतियों के साये में 
मैं कहीं खो न जाऊँ इससे पहले 
हर बार आपका हाथ 
मेरे हाथों को थाम लेता है
आज भी किरदार अलग होते हैं 
पर हाथ वही...
Happy Teachers Day #teacher_day
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Nikhil Vairaagi

देखो हम आज़ाद हैं, तभी तो 
एक तरफ गीता और दूसरी तरफ क़ुरान है
सब कुछ बिकता है आज़ादी के बाद यहाँ
धर्म मज़हब सब कुछ हर कोई विद्वान है
धर्म अब जीवन का सलीक़ा नही यहाँ
मज़हब के लिए मारने को भी तैयार हैं
देखो ना हम कितने आज़ाद हैं
जो बेख़बर हैं आज़ादी से ख़रीद लें
मिलती तो है हथियारों के दम पर
कभी राम तो कभी अल्लाह के नाम पर
क्या हुआ जो चार-छः मरेंगे संस्कृति के नाम पर,
हमे तो आधुनिक बनना है मगर ज़िहाद के साथ
आज़ाद हैं हम, देंगे कीमत आज़ादी की
आख़िर हूरों से भी मिलना है, तो क्या हुआ
अगर काफ़िर गुज़र गये चार, आज़ाद हैं हम,
लड़ेंगे आखिरी सांस तक बदलने को तक़दीर
मारेंगे मारेंगे पाने को अपनी ज़ागीर
कभी तो होगा तिरंगा, केसरिया या हरा
वरना रक्त के छीटों से लाल ही सही
आज़ाद हैं हम, ये भी सही वो भी सही... #आज़ादी
#हिंदुओं को हिन्दू की, #मुस्लिमों को मुस्लिम की और #हिंदुस्तानियों को हिंदुस्तान की आज़ादी मुबारक़

#आज़ादी #हिंदुओं को हिन्दू की, #मुस्लिमों को मुस्लिम की और #हिंदुस्तानियों को हिंदुस्तान की आज़ादी मुबारक़ #कविता

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Nikhil Vairaagi

#OpenPoetry इस बारिश की बूंदों में दीदार तुम्हारा 
चाय की गर्म प्याली में चासनी की घोल सा
रूह को सुकून देता है...
तुम्हारे नर्म रुख्सरों से फिसलती
बारिश की ये बूँदें आँखों में इस कदर
चमक जाती हैं जैसे सुर्ख घने बादलों में
सूरज की किरणें इंद्रधनुषीय छटा बिखेरती हैं,
ज़ुल्फ़ों के घने बादलों से 
इन कम्बख़्त हवाओं का गुज़रना मन में एक टीस देता है
कि काश ये ज़ुल्फ़ें मेरे रुख्सरों से एकबार सरकते 
तो इनमें उलझे सीपियों को बंद कर
तेरी यादों की माला पिरोता... #नज़्म
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Nikhil Vairaagi

 #खुश_तो_है_ना_तू..
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Nikhil Vairaagi

 #नज़्म
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Nikhil Vairaagi

 #किरदार_बदलते_रहते_हैं
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Nikhil Vairaagi

#OpenPoetry क्या कहूँ, 
जो बात थी वो निकल गयी, वक्त की रेत हाथ से फिसल गयी
जब वक्त था तो आँखें बंद करली, जुबाँ ने उसकी स्वाद चख ली
अब आँखें खोलूं तो अंधेरा, जुबाँ पे मेरे दर्द तेरा
दर्द भी तो मैंने माँगा, क़सूर क्या दूँ इसमें तेरा
क्या कहूँ
उस वक्त को मैं, जिस वक्त तूने हाथ थाम्हा
जिस अगन की तपस से भी, सहम उठती रूह तेरी
उस अगन की कोख में, मैंने तुझे हर बार खिंचा
क्या कहूँ
अब शब्द कम हैं, जिंदगी में वक्त कम हैं
रास्ते अंजान हैं सब, दारुण है लगती हर गली अब
सांस लेना भी कठिन अब
हाथ तेरा खोजता मन, हर गली में चीखता मन
आंखें बरसती खार वो अब, जो कभी सोयी हुयी थी 
नींद भी आती नही अब, ख़्वाब भी रूठे हुए हैं
क्या कहूँ
रुक सा गया हूँ, चीख़ कर अब थक गया हूँ
इस वक्त ने ऐसे मरोड़ा, तुझसे जुड़ा हर तार मेरा
जाती नही आवाज मेरी
या अब भी है तुझपे 
मेरी उन ख़ताओं का फेरा?
सुन जरा ऐ वक्त तू भी, रुक गया, हारा नही
हाथ थाम्हा था जहाँ, हर रोज जाता हूँ वहीं
जागती उम्मीद अब भी, मिलेगी वो फिर यहीं
मिलेगी वो फिर यहीं.... #मिलेगी_वो_फिर_यहीं✍️

मिलेगी_वो_फिर_यहीं✍️ #कविता #OpenPoetry

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Nikhil Vairaagi

 #कुछ_सवाल
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