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meharchand7828
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ayansh

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ayansh

Shree Ram बिनहीं रितु तरुबर फरत, सिला द्रबति जल जोर। 

राम लखन सिय करि कृपा, जब चितबत जेहि मोर॥ 

श्री राम, लक्ष्मण और सीता जब कृपा करके जिसकी तरफ़ ताक लेते हैं तब बिना ही ऋतु के वृक्ष फलने लगते हैं और पत्थर की शिलाओं से बड़े ज़ोर से जल बहने लगता है।

©ayansh
  #shreeram
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ayansh

Jai Shri Ram राम भरोसो राम बल, राम नाम बिस्वास। 

सुमिरत सुभ मंगल कुसल, मांगत तुलसीदास॥ 

तुलसीदास जी यही माँगते हैं कि मेरा एक मात्र राम पर ही भरोसा रहे, राम ही का बल रहे और जिसके स्मरण मात्र ही से शुभ, मंगल और कुशल की प्राप्ति होती है, उस राम नाम में ही विश्वास रहे।

©ayansh
  #jaishriram
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ayansh

ram lala ayodhya mandir बरषा को गोबर भयो, को चहै को करै प्रीति। 

तुलसी तू अनुभवहि अब, राम बिमुख की रीति॥ 

तुलसी कहते हैं कि तू अब श्री रामजी से विमुख मनुष्य की गति का तो अनुभव कर, वह बरसात का गोबर हो जाता है (जो न तो लीपने के काम में आता है न पाथने के) अर्थात् निकम्मा हो जाता है। उसे कौन चाहेगा? और कौन उससे प्रेम करेगा?

©ayansh
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ayansh

Jai shree ram ब्रह्म राम तें नामु बड़, बर दायक बर दानि। 

राम चरित सत कोटि महँ, लिय महेस जियँ जानि॥ 

ब्रह्म और राम से भी राम नाम बड़ा है, वह वर देने वाले देवताओं को भी वर देने वाला है। श्री शंकर जी ने इस रहस्य को मन में समझकर ही राम चरित्र के सौ करोड़ श्लोकों में से (चुनकर दो अक्षर के इस) राम नाम को ही ग्रहण किया।

©ayansh
  #JaiShreeRam
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ayansh

गंगा जमुना सुरसती, सात सिंधु भरपूर। 

‘तुलसी’ चातक के मते, बिन स्वाती सब धूर॥



गंगा, यमुना, सरस्वती और सातों समुद्र ये सब जल से भले ही भरे हुए हों, पर पपीहे के लिए तो स्वाति नक्षत्र के बिना ये सब धूल के समान ही हैं; क्योंकि पपीहा केवल स्वाति नक्षत्र में बरसा हुआ जल ही पीता है। भाव यह है कि सच्चे प्रेमी अपनी प्रिय वस्तु के बिना अन्य किसी वस्तु को कभी नहीं चाहता, चाहे वह वस्तु कितनी ही मूल्यवान् क्यों न हो।

©ayansh
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ayansh

ram lalla रसना सांपिनी बदन बिल, जे न जपहिं हरिनाम। 

तुलसी प्रेम न राम सों, ताहि बिधाता बाम॥ 

जो श्री हरि का नाम नहीं जपते, उनकी जीभ सर्पिणी के समान केवल विषय-चर्चा रूपी विष उगलने वाली और मुख उसके बिल के समान है। जिसका राम में प्रेम नही है, उसके लिए तो विधाता वाम ही है (अर्थात् उसका भाग्य फूटा ही है)।

©ayansh
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ayansh

ऊँची जाति पपीहरा, पियत न नीचौ नीर। 

कै याचै घनश्याम सों, कै दु:ख सहै सरीर॥ 

पपीहा वास्तव में बड़ी ऊँची जाति का है, जो नीचे ज़मीन पर पड़ा हुआ पानी नहीं पीता। वह या तो बादल से ही पानी माँगता है या अपने शरीर पर दु:ख ही झेलता रहता है। भाव यह कि श्रेष्ठ पुरुष तुच्छ वासनाओं में कभी नहीं फँसते, वे सदा उत्कृष्ट गुणों को ही ग्रहण करते हैं।

©ayansh
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ayansh

आवत हिय हरषै नहीं, नैनन नहीं सनेह। 

‘तुलसी’ तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह॥ 

जिस घर में जाने पर घर वाले लोग देखते ही प्रसन्न न हों और जिनकी आँखों में प्रेम न हो, उस घर में कभी  नहीं जाना चाहिए। उस घर से चाहे कितना ही लाभ क्यों न हो वहाँ कभी नहीं जाना चाहिए।

©ayansh
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ayansh

जो सुख में साथ दे, वो रिश्ते होते हैं।
और जो दुख में साथ दे, वो फरिश्ते होते हैं।

©ayansh
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ayansh

एक खूबसूरत एहसास है जिंदगी, एक खुली किताब है जिंदगी, जिंदगी जरा सही से जी कर तो देखो, एक अनसुनी हकीकत है जिंदगी।

©ayansh
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