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sudhakarsingh2057
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Sudhakar Singh

मै मूलतः इलाहाबाद का निवासी हूँ वर्तमान मे जिला रामपुर UP कार्यरत हूँ पेशे से mechanical engineer हूँ । तकरीबन 30 सालों से कविताएं और लेख लिख रहा हूँ

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Sudhakar Singh

।।आधा तीहा अऊना पऊना कथरी लुगरी फटा बिछौना।।।बंटा हुआ ये बचा हुआ ये जितना भी हिस्से मे आया। खुश था उसमें हिन्दोस्तान। फिर से ये कुरूक्षेत्र सजा कर कौन दे रहा गीता ज्ञान।    जलियावाला याद कीजिए कितनो को डायर ने मारा।मरने और मारने वाले दोनों ही थे। हिन्दुस्तानी। न दोहराओ वही कहानी। जंहा जवान किसान को मारे । रोजी से मजबूर हैं दोनो कंहा जांयेगे ये बेचारे।।।। स्याह अतीत के स्पंदन को फिर धड़काने से क्या होगा। भोली भाली बेबस जनता को लड़वाने से क्या होगा। सिकंदर नेपोलियन हिटलर जैसे नही रहे आदर्श हमारे। हमने तो गांधी को माना सत्य अंहिसा शस्त्र हमारे। यही सत्य है यही रहेगा। बाकी सब इतिहास कहेगा।। सत्ता और कुर्सी का ये मद क्षण भंगुर नही रहेगा।

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Sudhakar Singh

अपनों से संवाद अगर यूँ ही कम होता जाएगा। जीवन के खालीपन मे अवसाद ही भरता जाएगा।मंजिल की उंचाई सपनों से जब उंची होती जाएगी।ये जीवन की कठिनाइ को उतना ही बड़ा बना बनायेगी। हर प्रयास का लक्ष्य हमेशा विजयी नही बनायेगा। वही बचेगा शेष यंहा जो हार को भी अपनायेगा। हर अफसाना हो सकता है मंजिल तक न जा पाये। पर वो जीवन का अंत नही हरगिज न मृत्यु को अपनाये।।

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Sudhakar Singh

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Sudhakar Singh

।।अगर देख सकता तू जालिम कोरोना।                तू भी सीख जाता अपनी पलके भिगोना।।                           ये मंजर ये तस्वीर हैं प्रलय पर भी भारी।    कल्पना से परे है इतनी बेबस लाचारी।।                  करो twitt पर twitt तुम हुक्मरानो।                 ये तुम्हारी नियति नीति का ही फलसफा है।       ये भारत का बचपन है इसको पहचानो।।          कैसे पढ़ाओगे इतिहास इनको जिस भारत के खातिर रानी लक्ष्मी बाई लड़ी थी।                           उसी आजाद भारत मे एक मासूम बच्ची            दो निवालों के खातिर नंगे पावो खड़ी थी।। #mothers_day
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Sudhakar Singh

E Gram ।।।जो सूट बूट मे आया था ।डालर और पाऊंड लाया था।दिरहम दीनारी  थैलों मे बीमारी वही छुपाया था।वो कुलीन अभिजात्य वर्ग जिनको विदेश ही प्यारा था। जो भागे थे इस माटी से इसमें क्या दोष हमारा था। जिनके उदरो का खालीपन ये देश नही भर पाया था। उसको तुमने क्यों नही धरा जो इस विषधर को लाया था। अपने जीवन का लक्ष्य महज दो रोटी पर ही घूम रहा । हम जैसो के खून पसीनो पर जो पिये बार झूम रहा। उसका इतना महिमामंडन जो दबे पांव घुस आया था। मिट्टी गारे मे सन सन करके हमने जो शहर बनाया था। जब वक्त पड़ा तो पता चला वो अपना नही पराया था। हम मलिन लोग गंधाते थे तुमको  कब कंहा सुहाते थे। लंबी दीवारों के पीछे तुमने ही हमे छुपाया था।अब शहर शहर और नगर नगर  हर तरफ भीड़ का रेला है। मुफलिसी गरीबी का जमघट भूखे नंगो का मेला है।कितना इसको ढक पाओगे ।इन सबको कंहा छुपाओगे।  हमने  इस मिट्टी को चाहा शहरों को आबाद किया। अपने खून पसीने से इस देश को जिंदा बाद किया। मेरा सपना बस रोटी थी मैं वही कमाने आया था। पर ये जो पीड़ा मुझे मिली उसका हकदार पराया था।।जिनके थे उदर बहुत गहरे जो यंहा नही भर पाया था। उससे भी सवाल जरूर करना जो इस महा प्रलय को लाया था।। #E_Gram_Swaraj
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Sudhakar Singh

।।।जो सूट बूट मे आया था ।डालर और पाऊंड लाया था।दिरहम दीनारी  थैलों मे बीमारी वही छुपाया था।वो कुलीन अभिजात्य वर्ग जिनको विदेश ही प्यारा था। जो भागे थे इस माटी से इसमें क्या दोष हमारा था। जिनके उदरो का खालीपन ये देश नही भर पाया था। उसको तुमने क्यों नही धरा जो इस विषधर को लाया था। अपने जीवन का लक्ष्य महज दो रोटी पर ही घूम रहा । हम जैसो के खून पसीनो पर जो पिये बार झूम रहा। उसका इतना महिमामंडन जो दबे पांव घुस आया था। मिट्टी गारे मे सन सन करके हमने जो शहर बनाया था। जब वक्त पड़ा तो पता चला वो अपना नही पराया था। हम मलिन लोग गंधाते थे तुमको  कब कंहा सुहाते थे। लंबी दीवारों के पीछे तुमने ही हमे छुपाया था।अब शहर शहर और नगर नगर  हर तरफ भीड़ का रेला है। मुफलिसी गरीबी का जमघट भूखे नंगो का मेला है।कितना इसको ढक पाओगे ।इन सबको कंहा छुपाओगे।  हमने  इस मिट्टी को चाहा शहरों को आबाद किया। अपने खून पसीने से इस देश को जिंदा बाद किया। मेरा सपना बस रोटी थी मैं वही कमाने आया था। पर ये जो पीड़ा मुझे मिली उसका हकदार पराया था।।जिनके थे उदर बहुत गहरे जो यंहा नही भर पाया था। उससे भी सवाल जरूर करना जो इस महा प्रलय को लाया था।। प्रवासी मजदूर#

प्रवासी मजदूर#

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Sudhakar Singh

#Labour_Day ""एक मई " आज सपरिवार महानगरों जिलों बाजारों से भागता हुआ दो अदद रोटी की तलाश  तुम्हारे मदद का मोहताज  आज भी  कल भी था ।।।   शहर के मुख्य चौराहों पर मैं आज भी फावड़ा कन्नी हथौड़ा लेकर खड़ा होता हूँ रोजगार की तलाश मे खुद का भाव रोज तय करता हूं। पसीने से लथपथ कमीज से सीली हुई बीड़ी निकाल के जलाता हूँ । पता नहीं अच्छी है या बुरी पर पल भर को सुकून जरूर देती है। ये दूर तक फैली रोड मीलो लंबी रेलवे लाइनें मैंने पग पग नापी है ।गगन चुंबी ईमारतो मे आखिरो छोर की ईंट लगाने भी मैं ही जाता हूँ ।तुम्हारे ऐशो आराम के एक एक चीज  मे सार सज्जा मे मेरा ही खून पसीना शामिल है। मैं  जहाँ था वंही हूँ मेरी दलाली करने वाले बिचौलिये मेरे श्रम का व्यापार करने वाले ठेकेदार आज सामाजिक संभ्रांत हो गये। मैं अपनी लाचारी अगली पीढ़ी को देकर चला जाऊँगा ।आखिर विकास के लिए मजदूर तो चाहिए । बस एक मई को याद करते रहना।।। #Labour_Day
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Sudhakar Singh

""एक मई " आज सपरिवार महानगरों जिलों बाजारों से भागता हुआ दो अदद रोटी की तलाश  तुम्हारे मदद का मोहताज  आज भी  कल भी था ।।।   शहर के मुख्य चौराहों पर मैं आज भी फावड़ा कन्नी हथौड़ा लेकर खड़ा होता हूँ रोजगार की तलाश मे खुद का भाव रोज तय करता हूं। पसीने से लथपथ कमीज से सीली हुई बीड़ी निकाल के जलाता हूँ । पता नहीं अच्छी है या बुरी पर पल भर को सुकून जरूर देती है। ये दूर तक फैली रोड मीलो लंबी रेलवे लाइनें मैंने पग पग नापी है ।गगन चुंबी ईमारतो मे आखिरो छोर की ईंट लगाने भी मैं ही जाता हूँ ।तुम्हारे ऐशो आराम के एक एक चीज  मे सार सज्जा मे मेरा ही खून पसीना शामिल है। मैं  जहाँ था वंही हूँ मेरी दलाली करने वाले बिचौलिये मेरे श्रम का व्यापार करने वाले ठेकेदार आज सामाजिक संभ्रांत हो गये। मैं अपनी लाचारी अगली पीढ़ी को देकर चला जाऊँगा ।आखिर विकास के लिए मजदूर तो चाहिए । बस एक मई को याद करते रहना।।।

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Sudhakar Singh

ये कौन जा रहा है मेरा गांव छोड़कर
आँखे भी रो रही है समंदर निचोड़कर
ना तूफानों का खौफ है ना आंधियों का डर
तुमने दिये बनाए थे सूरज को जोड़कर: शत शत नमन श्रद्धांजलि इरफान खान।।।

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Sudhakar Singh

World Book Day  कौन हो भाई जी मैं हां जी आप ।। जी मैं इस लोकतंत्र का अभिशाप। सीता का रूदन द्रौपदी का चीरहरण। और दुर्वासा का दिया हुआ शाप। न अमीर सी गद्दारी । न गरीब सी लाचारी  विरासत मे मिली ये खोखली खुदा्री। न खुशी से उन्माद न गम से प्रलाप।। जिंदगी के हर आयोजन का कर्जदार। शादी ब्याह अजारी बीमारी सब मे उधार। अतीत रहा साहूकारों से ऋणी  हम बैंको के कर्जदार। बहुत बड़ा परिचय है जान कर क्या करेंगे आप।।  विद्यालय का शिक्षक हूँ। व्यायाम शाला का प्रशिक्षक हूँ। मोहल्ले मे एक अदद किराना दुकान हूँ।शहरी आबादी का दो कमरे वाला मकान हूँ। फौजी हूँ पुलिस का सिपाही हूँ।  गांव का कर्जदार किसान हूँ। कारखानों का कामगार हूँ। दो पहिये पर दिन रात  भागती जिंदगी का संताप हूँ। मैं इस देश का  मध्यम वर्गीय अभिशाप हूँ। मैं संघर्षों की व्यथा हूँ। मैं अनंत अध्ययाओ वाली सत्यनारायण कथा हूँ। ना किसी आरक्षण मे ना किसी संरक्षण मे। हर नियम हर कानून की प्रयोगशाला हूँ। मैं दिनकर की रश्मिरथी हूँ बच्चन की मधुशाला हूँ। हर युग मे  रहा अनाथ  मैं जिया बिना माँ बाप। मेरी तो पहचान यही मैं लोकतंत्र का मध्यमवर्गीय अभिशाप।।। #world_book_day
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