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krishangopalsola5134
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Krishan Gopal Solanki

कवि एवं मंच संचालक ......

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Krishan Gopal Solanki

White बुराई के रावण को यूँ आग लगाई जायेगी,
बहन-बेटियों के हाथों में खड़ग थमाई जायेगी,
जिस दिन उन्मुक्त भाव से निडर घूमेगी नारी,
सही अर्थों में विजयदशमी तभी मनाई जायेगी।

कृष्ण गोपाल सोलंकी

©Krishan Gopal Solanki #Dussehra
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Krishan Gopal Solanki

White अपने बूते से बाहर की बात पूछता है
इक जुगनू  सूरज से औकात पूछता है।

©Krishan Gopal Solanki #Night #shyari #Love
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Krishan Gopal Solanki

कोई लैला कोई राँझा कोई हीर लिखता है,
कोई टूटे हुए दिल की यहाँ पर पीर लिखता है,
लांघकर मुश्किलें ,मेहनत जो करता है ज़माने में,
वही इंसान अपने हाथ से तक़दीर लिखता है।

©Krishan Gopal Solanki #Distant
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Krishan Gopal Solanki

फ़क़ीरी हो या अमीरी सदा ही मौज लेते हैं,
मुकर्रर दिन नहीं कोई मुसलसल रोज लेते हैं,
काम जिनका निकल गया मुड़कर देखते नहीं,
जिनको ग़रज़ होती है वो मुझको खोज लेते हैं।

कृष्ण गोपाल सोलंकी

©Krishan Gopal Solanki #alone
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Krishan Gopal Solanki

धैर्य धार कर दुख में सुख की आस में काटे,
कोई धृतराष्ट्र बनकर स्वयं कुल के नाश में काटे,
जनक ने भी सिया के वास्ते राजा ही देखा था,
वक़्त देखो कि चौदह वर्ष वनवास में काटे।

कृष्ण गोपाल सोलंकी

©Krishan Gopal Solanki #onenight
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Krishan Gopal Solanki

इंसानियत के फ़र्ज़ से मुकर जाते हैं,
लोग हादसा देखकर चुपचाप गुज़र जाते हैं।

©Krishan Gopal Solanki #Broken
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Krishan Gopal Solanki

कमी है संस्कारों की या घर के निज़ाम की,
नई पीढ़ी की हसरत है शोहरत और नाम की,
कमाते हैं जो मेहनत से अदब से पेश आते हैं,
कदाचार सिखा देती है ये दौलत हराम की।
         
          
निज़ाम  - प्रबंध
कदाचार -बुरा व्यवहार

©Krishan Gopal Solanki #Light
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Krishan Gopal Solanki

बेशक़ प्यार और दुलार करना चाहिये,
पर समय के साथ होशियार करना चाहिये,
जब बच्चे बाप के कांधे तलक आने लगें,
मित्रवत उनसे व्यवहार करना चाहिये।

कृष्ण गोपाल सोलंकी

©Krishan Gopal Solanki #Papa
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Krishan Gopal Solanki

भ्रम इंसान यूँ तोड़ देता है,
मुँह अपनों से मोड़ लेता है,
अंधेपन में सहारा थी जो छड़ी ,
दृष्टि मिलते ही उसे छोड़ देता है।

कृष्ण गोपाल सोलंकी

©Krishan Gopal Solanki #standAlone
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Krishan Gopal Solanki

घर ग़रीबी में अपना चलाने लगे,
होश जबसे संभाला कमाने लगे।

छोड़ हमको अकेले चली माँ गई,
लोग हमको अभागा बताने लगे।

रहनुमाई में जिनकी कटा दौर था,
वो इशारों पे हमको नचाने लगे।

सुख लिखा था मुकद्दर में उनके मगर,
दुख मुसलसल हमीं को सताने लगे।

भूख से जब सिकुड़कर के सोये कभी ,
लोग ख़्वाबों में रोटी दिखाने लगे।

मंजिलें फिर 'गोपाला' मिली हैं उन्हें,
वक़्त का साथ जो भी निभाने लगे।

©Krishan Gopal Solanki #Alive
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