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kavi Purushottam das

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kavi Purushottam das

 अवसर दो 
      =======
      मुझको बच्चा रहने दो
       जरा सुनहरे अवसर दो 
       बचपन मेरा छीनो मत 
       समझो मेरी कैसी हठ 
       चाह रहा हूं दिनभर खेलूं 
       अरमां अपने कहने दो 
       बच्चा मुझको रहने दो 
       कोमल तन की समझो पीर 
       अंतस कितना रहे अधीर 
       नन्हा पौधा पेड़ बनेगा 
       मुक्त गगन में बढने दो 
       बच्चा मुझको रहने दो 
       मैं अबोध जग राहों से 
       सरिता के प्रवाहों से 
       सीख जाऊंगा मंत्र जीत का 
       शनैः शनैः खुद चलने दो

©kavi Purushottam das
  #poem
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kavi Purushottam das

हमारे स्वाभाव कि खता सिर्फ इतनी है कि हम अपनों का सम्मान डिगने नहीं देते कभी  भी इसीलिए ठगे जाते हैं बार -बार

©kavi Purushottam das
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kavi Purushottam das

भले देर हो कुछ मिनट,    रखें राह में धीर |
 कुछ भी यहाँ न कीमती,जितना समझ शरीर ||

©kavi Purushottam das
  #FathersDay #treanding #poem #Ved
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kavi Purushottam das

चिंता छोड़ अभाव की,खोज लक्ष्य की राह |
अवरोधक होंगे बहुत, करना मत परवाह ||

©kavi Purushottam das
  #FathersDay #treanding #Ved
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kavi Purushottam das

सोचते हो तुम्हारे दाव से कोई बचता नहीं 
लेकिन मुझे ये भाव जँचता नहीं 
समय लेगा जो करवट तो अंजाम देखोगे 
ख़ैरियत जानने वाला भी कोई दिखता नहीं

©kavi Purushottam das
  #WoRaat #poem✍🧡🧡💛 #Ved

#WoRaat poem✍🧡🧡💛 #Ved #कविता

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kavi Purushottam das

कैसा मौसम हो गया, बदले हर पल रूप ।
कभी अंधेरा छा रहा ,कभी चमकती धूप ।।
कभी चमकती धूप, कभी तो बूंदा बांदी ।
कभी झमाझम नीर, साथ में आती आंधी ।
कह अभिनव कविराय, जमाना आया ऐसा ।
बदले कब, क्या, कौन ,अचंभा इसमें कैसा ।।

©kavi Purushottam das
  #Parchhai #treanding #poem #Ved
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kavi Purushottam das

शिक्षा उतनी ही जरूरी है जितना हमारे लिए भोजन क्योंकि भोजन से हमारे शरीर को ताकत मिलती है और शिक्षा से विचारों को

©kavi Purushottam das
  #Parchhai #treanding #poem #Ved
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kavi Purushottam das

जरूरी नहीं कि हम उन सभी बातों को मानें जो हजार साल से चली आ रहीं अौर बेबुनियाद हैं तथा किसी के लिए हानिकारक हैं व कुतर्क पर आधारित हैं एकता के लिए बाधक हैं सिर्फ कुछ लोगों के लिए साधक हैं

©kavi Purushottam das
  #mountain #treanding #poem #Ved
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kavi Purushottam das

बदलते रहे दूसरों को लेकिन बदल न सके जब शुरूआत की खुद को बदलने की तो सभी बदले बदले से नजर आने लगे लोग खुद को चालाक और दूसरे को मूर्ख समझते हैं इसीलिए तो एक दूसरे को ठगते हैं

©kavi Purushottam das
  #Parchhai #treanding #poem #Ved
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kavi Purushottam das

दहशत में कैसे लिखें, उपजें नहीं विचार ।
काव्य चाहता सर्वथा, रहे मुक्त व्यवहार ।।

©kavi Purushottam das
  #BhaagChalo #poem #treanding
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