ये सर्द मौसम.. ये गीली बारिशें..
तेरा ताबिश भीगा बदन ..
और ये माहौली जवानी ...
हाए, मैं शर्म से पानी पानी...!!
वो कतरा गिरा जब गेसू से चश़्म तक ..
साँसें भीगे मेरी जले लब-ए-शफ़क..
तौबा ये सीने की जलन ...
ये सर्द मौसम.. ये गीली बारिशें..
तेरा ताबिश भीगा बदन ..
और ये माहौली जवानी ...
हाए, मैं शर्म से पानी पानी...!!
वो कतरा गिरा जब गेसू से चश़्म तक ..
साँसें भीगे मेरी जले लब-ए-शफ़क..
तौबा ये सीने की जलन ...
Khwahish Syed
मिट्टी का पुतला ढह मैदान हो गया ..
ख़ौफ का वो घर अब मसान हो गया..।।
रुख़ बदल के ख़ुद रिश्ता ये कहता है ..
तेरा इब्न ही अब तेरा मेहमान हो गया..।।
मेरे चाहने वालों में कई खंजर थे शामिल ..
मेरी पीठ पीछे हर कोई बईमान हो गया.. ।।
Khwahish Syed
टूटते रिश्तों को देख ख़याल आया ..
आज सामने फ़िर एक सवाल आया ..।।
बैठ मेरे पास किताब घंटों रोती रही..
कलम को आज क्यूँ इतना मलाल आया..।।
रात के सिसकते सन्नाटे ने भी पूछा ...
तेरी ख़ामोशी को क्यूँ बेवजह ज़लाल आया..।।
Khwahish Syed
ईक रग से लहू का हिस्सा जुदा हुआ..
कहीं जिस्म से जिस्म का हिस्सा जुदा हुआ.. ।।
कटे बदन का वो गोश़्त क्या ही कहे,
गिद्धों की बस्ती में ही दिल का हिस्सा जुदा हुआ.. ।।
#by syed.. ❤️ #Gif
Khwahish Syed
कई अरसे से रंगों का जहाँ नहीं देख़ा..
अपनी जमीं नहीं देख़ी, वो आसमाँ नहीं देख़ा..।।
मैल ज़म लक़ीरों पर जज़्बातों का कीड़ा लगा,
मैंने फ़िर हाथ का वो गहरा निशाँ नहीं देख़ा..।।
दबे दबे एहसास रहे मेरे बरसों,
दिल के कोनों सा कोई निहाँ नहीं देख़ा..।।
Khwahish Syed
ये दर्द ये बेचैनी ये चुभन ये तन्हाई क्यूँ..
मर्ज बढ़ गया ये खोख़ली दवाई क्यूँ..
आज़ारों में तू दर्द से चीख़ा था रातों
असरार बन कहर टूटे मुझ पर तबाही क्यूँ ..
तेरे जिस्त का मेरे जिस्त से है रूहानी ताल्लुक
फिर अस्ल चेहरे में मुख़ोटों की बीनाई क्यूँ ..
कलम काँपे स्याह उगले अश्कों सा जहर
इश्क़ नहीं ये फिर लिखें उस पर रूबाई क्यूँ...