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supriyakumari8192
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Supriya Kumari

Writer in ❤️. Student in life. Google Map of my own destination and aspirin in pain. Keep motivating me by your valuable comments, feedbacks and likes Follow me on Instagram@ chal_ji_le. Please like my facebook blog page @ Haal-E-Dil

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Supriya Kumari

लड़ लेते है उनसे, थोड़े से कभी जादा भी
खफा होने को दिल भी करता है घंटो का
पर डर जाता है दिल की कही 
ये जिंदगी ही ना हो बस मिनटों का #love #besthindi #shayari

love besthindi shayari

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Supriya Kumari

जब मैं पैदा हुई तो पता नहीं तू किस तरह से सीने से लगाई होगी 
पर मन कहता है खुशी से तेरी आंख भर आई होगी
सोचती हूं  कैसे नौ मास तू सब्र से  बिताई होगी
जो मेरे पैदा होने से पहले ही मेरा नाम सोच अाई होगी
याद नहीं कुछ कैसे रात भर तुझे  जगाई थी मै
पर  मेरे एक आवाज से ही तू आधी रात को ही अपनी सुबह बनाई होगी
पहला अक्षर कैसे सीखी याद नहीं,
पर पता है कितने उम्मीद से तू मुझे पहली बार चाक स्लेट पकड़ाई होगी
याद नहीं कितने जतन से तू रोटी खाने को मुझे मनाई होगी
पर पता है जब नमक तेल लगी गर्म रोटियां तू अपने हाथों से मुझे खिलाई होगी
 तो रोटियां खत्म हो गई होगी और तू दो दिन की बासी रोटी को ही खुद का निवाला बनाई होगी
पता नहीं कब मै साफ बोलना सीख पाई थी
पर मेरे बढ़ते उम्र में भी लड़खड़ाते शब्दों से,तेरी पैर भी डगमगाई होगी
पता नहीं डॉक्टर ने क्या दवा दी थी बीमार होने पर
पर उस वक़्त दवा से ज़ादा तेरी दुआ ही काम आयी होगी
मेरे बेतुके से जिद्द पर थप्पड़ भी जड़ी होगी तू गालों पर
पर जिद्द पूरा ना करने की हार में अकेले में सिर पटकी भी होगी तू
पता नहीं कितनी कहानियां सुनी थी मै
पर पता है बड़े शौक से पुरानी कहानी भी दोहराई होगी तू
पता नहीं कितना गुस्सा उतारी हूं तुझ पर
पर शायद ही कभी दिल से बातों को लगाई होगी तू
मै छोटी से बड़ी हो गई जाने कैसे मुसकाई होगी तू
पर पता है मेरे पहले पलटवार से रात भर आंसू बहाई होगी तू
मेरे हज़ारों सवालों से भी तू ऊबती नहीं थी
पर तेरे बस एक सवाल पर भी टेढ़े जवाब से बहुत दर्द पाई होगी तू
बच्ची है हर बार सोच कर सब भूल जाती होगी तू
पर बड़ी हो गई हूं मै ज़ादा मत सिखाओ, 
जानती ही क्या हो सुन थोड़ी घबराई होगी तू
भले बात ना करू ना ही कुछ तकलीफ बताऊं
पर जब भी बुखार में आज भी तप रही हूं कहीं भी
तो सबसे पहले बिन बताए ही मेरा हाल पूछने कॉल लगाई होगी बस तू #mothers_day 
#hindi
#poetry
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Supriya Kumari

ये बवंडर बिकराल हो रहा है, कॉरॉना का आतंक कुख्यात हो रहा है
सूक्ष्म ये वायरस घुसपैठियों सा अपने कदम हमारी सीमाओं में बढ़ा रहा है
पर साथियों तुम डरना मत, बस सब्र से थोड़ा और घर में ही रहना तुम
क्यूंकि कोई है जो हमारे लिए घर से निकल उस कॉरॉना से लड़ने जा रहा है।
तुम खिलखिला रहे हो अपनों संग, क्यूंकि कोई है जो अपनो का मोह छोड़कर बाहर आ रहा है
थम चुका है बहुत कुछ, थप पड़ा है सब कुछ, पर वो आज भी बिन थके हमारे लिए भागे जा रहा है
साथियों कोई है योद्धा जो बस हमारे सुरक्षा में खुद को लुटा रहा है।
कहीं पत्थर तो कहीं थूक लोग उनपर बरसा रहे है, जहां बरसाना था फूल वहां बस नफरतों के शूल बिछा रहे है
पर कोई जिक्र नहीं जख्मों की, देखो कैसे वो मौत के मुंह से इंसानों को खींच ला रहे है
कोई है खुदा जो इंसानियत को ही अपना मजहब बता रहे है।
बंद मंदिर, मस्जिद सूने पड़े है, क्यूंकि अस्पतालों में आज साक्षात देव खड़े है
हम घर में रहकर कॉरॉना से घबरा रहे है,
पर कोई है योद्धा जो कॉरॉना के घर जाकर उसे मात दे आ रहे है।
शिकन नहीं कोई, उनके चेहरों और हाथो के घाव उनके वीरता की गाथा सुना रहे है
कोई है जो परिवार छोड़कर, लोक सेवा ही अपना धर्म बता रहे है।
जब पक रही है पकवान घरों में, खाकी वर्दी धूप में सिक रही है
स्वाद के लिए हम खा रहे है भरे पेट भी, अरे पूछो तो क्या वो भर पेट भी खा रहे है?
घरों में बंद खुद को लाचार हम समझ रहे है, अरे पूछो उन रिपोर्टरों से क्यों कॉरॉना में भी घर से निकल रहे है?
तुच्छ जिनको कहते रहे, कचरे के ढेर सा बस बोझ समझते रहे
आज वही तुच्छ अमीरों की बस्ती उजड़ने से बचा रहे है,
देश का कचरा वो साफ करके पूरे देश को महामारी की गिरफ्त से छुड़ा रहे है
 दोस्त है कोई योद्धा जो खुद बीमार होकर भी हमें बीमारी से बचा रहे है।
फिक्र ना कर दोस्त, हम है तेरे आगे खड़े, बिन कहे ही कर्म से बतला रहे है
भले कर्ण सा कवच नहीं पास फिर भी रण में वज्र सा हर आखिरी वार खा रहे है
 हां है कोई योद्धा जो निष्ठूर वायरस को सबक सिखा रहे है।
देश तू फिक्र न कर, तेरे पूत है वीर बड़े, अपनी माटी का कर्ज चुका रहे है
होगी कॉरॉना प्रचंड शत्रु, पर देखो कैसे मेरे योद्धाओं के आगे ये कॉरॉना भी परास्त हुए जा रहे है। #corona_warriors #corona #gocorona #hindi
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Supriya Kumari

क्यों रात में भी सबेर का राह तकते हो?
कर लिए सुबह का स्वागत बहुत, 
चलो आज रात का भी स्वागत करते है
पर्दा हटा,खिड़की खोल धूप को सुबह भीतर बुलाते हो
चलो आज रात में यही बाहर सितारों के नीचे खाट बिछाते है
दिन की रोशनी में भागते है ख्वाबों के लिए,
क्या रात बस नींद में ख्वाब देखने के लिए है?
क्यों नहीं आज रात के अंधेरे में भी, कोई ख्वाब जगाते है?
चल पड़े हो उमंग लिए एक राह पर तुम भोर में,
फिर क्यों रात के अंधियारे से कतराते हो?
चल पड़े हो छोर पकड़ तुम धार की, 
फिर क्यों चट्टानों के आने से घबराते हो?
जरूरी नहीं मुहाना दिन में ही पास आए, 
फिर क्यों रात से तू हिचकिचाते हो
उजियारे में दौड़ते तो क्या बड़ा उत्कर्ष है, 
चलो देखते है अंधियारे में कहां तक चल पाते हो
शाम ढलने से निराश हो जाते हो, 
फिर रात ढलने का क्यों नहीं मातम मनाते हो?
उदयाचल ही उम्मीद की मापदंड नहीं, 
क्यों नहीं रात को भी खुशियों कि इकाई बनाते हो
सुविधाओं में संभावनाएं तो होती ही है, 
क्यों नहीं कमियों को भी उपलब्धियां बनाते हो?
दिनकर की खूबी सबको पता है, 
क्यों नहीं शशि को ही जीत का आधार बनाते हो
दिन का बखान सब लोग करते है
क्यों नहीं रात से बतिया नया कुछ सीख जाते हो? #hindi #life #motivational #inspiration
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Supriya Kumari

फिर से इस ठहरे हुए जल में,कुछ तरंग उठ रहा है
रोकती हूं मन को पर ये रोए जा रहा है
मां लॉकडॉउन में फिर घर याद आ रहा है।
मदमस्त खुद की मौजों में बह रहा था, जिसे घर से लगाव कम लग रहा था
दोस्तो के बीच घर को भूल जाना एक विजय लग रहा था 
आज फिर से उस हारे दिल को बस तेरा पुकारना याद आ रहा है
हां मां लोकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
कर्मपथ के तपस्वी समझ रहे थे खुद को, मोह माया सब तुच्छ लग रहे थे मुझको
पर इस मोह पर जमा धूल,जब धुला जा रहा है
हां मां फिर से बस घर याद आ रहा है।
सैकड़ों खाने के बीच तेरा स्वाद खो गया था कहीं
आज बस वही तेरे हाथो का देशी खाना याद आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस गांव को छोड़ आए थे बसे शहर के लिए,
आज वो शहर उजड़ रहा है तो बस गांव याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
जिस घर से बाहर भागने को दिल चाहता था,
घर से दूर कहीं महीनों अकेले रहने को दिल करता था
आज बस महीने भर के अकेलेपन में दिल बेबस हो रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बाहर जाने से टोकती थी तू, कहां जा रही है पूछती थी तू
आज फिर से तू टोके, बंद कमरे में वही तेरा रोकना याद आ रहा है
हां मां लॉकडाउन में बस घर याद आ रहा है।
बना कर तू खिला देती थी अक्सर, पर कभी जो मुझे रसोई भेज देती तो रूठ जाती थी पलभर
पर मां तेरा रसोई में मुझे भेजना ही आज मेरे काम आ रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर याद आ रहा है।
आसानी से चुमन्न और प्यार मिल जाता था, शायद इसलिए वो फिजूल हो जाता था
पर आज जब कोसो दूर है सब, और आलिंगन स्वप्न लग रहा है
तब सबसे कसकर लिपटने को दिल कर रहा है
हां मां लॉकडॉउन में बस घर आने को दिल कर रहा है। #maa ghar yaad aa raha hai
#lockdown #homesick #home #hindhi

#maa ghar yaad aa raha hai #lockdown #Homesick #Home #hindhi

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Supriya Kumari

है मनुज ये जीवन कैसा, कुछ समझ नहीं आता है
अपने अंतर की पीड़ाओं में दबा चला जाता है
खेल खेलता कितना पर भीतर बिखलाता है
हृदय सहित यू क्रीड़ा ऐसे सहज नहीं होता है
कर्म - अकर्म में वो उलझा सुलझ नहीं पाता है
धर्म क्या अधर्म क्या, कभी भीतर अकुलाता है
हृदय के वो दावानल को बुझा नहीं पाता है
मुखमंडल पर कुसुम लिए भीतर कुंठित पाता है
जीवन रस में हुए विलीन, पर एक हला पीता है
बाहर दिखता अंगराज, भीतर कर्ण छला जाता है
जीवन की ये मादकता, संकुचित किए जाता है
थक जाता मनुस्मृतियो से निकल नहीं पाता है
तब लगता है क्यों मनुज ये हृदय लिए आता है
हृदय रहित जो ये होता, क्यों फिर दुख ये पाता
पर मनुज फिर कैसे होता हृदय विहीन जो आता
उपहास नहीं ये मानव पीड़ा, उपहार बन कर है अाई
विश्व गवाह है इतिहास बनी वो जो पीड़ा हंस सह पाई
हे मनुज! तू सुधा है जो हृदय मंथन से अाई
पाकर तू अमर हो जाए, जो मोल समझ में आई
ले तू पीड़ा जीवन समर का, बना रहे अभिलाषी
चलता रह तू कर्म पटल पर, बनकर एक वनवासी। #kavita #hindi #motivational #inspiration
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Supriya Kumari

मैं बैठा थक कर आज यहाँ, कुछ यादों ने डेरे डाले है
कुछ सपने थे मेरे अपनों के, सीने से लगाये बैठे है
छोटे छोटे आँखों में, कुछ बड़े से सपने बोई तू
इन नन्ही नन्ही हाथो से कही तस्वीर उकेरी तू
बढ़ते पाँवो की आहत भी तुम पहले ही सुन बैठी थी
बुनते बुनते ख्वाबो को तू, मुझमे ही दिन गिनती तू
लगे मैं ही सूरज तेरा, दिन रात मुझि में जीती तू
मेरे सपनो को पलते मैंने, आँखों में तेरी देखा था
मेरे उन सपनो की कीमत, आंसू ने तेरे सींचा था
छोटा मैं नादान परिंदा, उड़ने को बस चाहू माँ
हौले हौले धीरे से मेरे, इन परो को तब तू खोली माँ
बादल छाया अम्बर ऊपर, बड़े जतन से ताकी तू
फिर छोटी छोटी पंखो में मेरे, अपनी ताकत यु झोंकी तू
की देख उड़ा मैं बादल पार, जहाँ साफ़ नजर है आये सब
खुला अम्बर पुकारे मुझको, मैं भी बस हूँ उड़ा चला
बड़ी शौक थी उड़ने की, पर खुद की वो ख्वाब नही
बस मेरे उड़ते पर तू देखे, यहीं मेरा था ख्वाबमहल
पर देख आज जब उड़ा मैं ऊपर, भीड़ खड़ी है मुझको ताके
कही शाबाशी, कही पे ताली, लोग नजर है आये खूब
पर जिसको मेरी खोजे आँखिया, वही नजर न आये क्यों
जीत की अपनी खुशी मनाता, बचपन में ही सोचा था
पर आज आँख में आंसू मेरे, जीत लगे है फीके क्यों
बेरंग से कोरे कागज़ पर, सपनो के रंग बिखेरी तू
पर आज वही सजीव हुए तो, कहाँ है छिप कर बैठी तू
शोर बहुत है यहाँ सफ़र में, आराम जरा सा खोजू माँ
वो तेरी गोद नसीब जो होती, सारी सफ़र कर लेता यूँ
पर बिन तेरे यू उड़ना ऐसे, आँखे धोका देती माँ
धुंधला सब, नजर है आता, ओझल सब ये कर देती माँ
कोई तरसे जीत को यहाँ, मैं तरसु तेरे दर्शन को
उस अलौकिक सृष्टि से,लौकिक सृष्टी में आ जा माँ
बहुत संभाला खुद को अबतक, पर और जिया न जाये माँ
कभी नजर न डाला मैंने, कोई जीत के आता जब
परअपनी माँ संग ख़ुशी मनाये,तेरे आँचल बिन रोता बस माँ
हर उगते ढलते सूरज में बस तुझको ही खोजू माँ
की कही ओट के पीछे ,दिनकर संग छुप बैठी हो माँ
कही सुबह वो मेरी आये,जिसका अस्त देखता आया माँ
तू मत रोना की कमजोर पड़ा मैं, ये आंसू मेरे हिम्मत माँ
हर आंसू तेरी गाथा गाये, जो उड़ने में बल भरते माँ
बस तू होती तो बात और थी, पर सपने तेरे है जीते माँ
तेरे आँखों से देखे सपने, अब मेहनत के रंग सब देखे माँ
मेरी सपनो में जीतीं मेरी माँ.... #Maa #mother #hindi #son
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Supriya Kumari

 

दिन बीता, साल बीते,सब कहते है, मैं बड़ी हो गयी
बीते दिन की यादें, वो पल,समय की धूल से मैली हो गयी
कल के उत्थान में,मेरी बचपन की पतन हो गयी
एक सैलाब आया और मासूमियत कही दफ़्न हो गयी
सब कहते है मैं बड़ी हो गयी
उन्हें लगता है तू नही पास मेरे
एक मोड़ आया, हमारी विरह हो गयी
साथ थी तू तब, अब कहते है तू खुदा को प्यारी हो गयी
सब कहते है मैं बड़ी हो गयी
तू तो साथ ही मेरे, फिर कब तू यादें और ये यादें मैली हो गयी
बावलों से क्या लगू,इनकी कहानियों से लगे, मैं बावली हो गयी
सब कहते है मैं बड़ी हो गयी
पर तू आज भी साथ मेरे,अँधेरे से खिंचती हाथ मेरे
कभी जो नींद न आवे,तो तू ही तो है जो आके सुलावे
फिर कब मैं बड़ी हो गयी,
क्यों सब कहते है, मैं बड़ी हो गयी?
आज भी तेरे गोद की नर्मियाँ है,कही खो जाऊ तो रौशनी बस तू
हर शिखर पे चूमती मुझे, मेरे लिए रोती है तू
जब गिरु तो कोई ना हो,तब हौंसले बाँध उठाती है तू
फिर कब ये गुलशन वीरानी हो गयी
सब कहते है मैं बड़ी हो गयी
मेरी सखियों की जननी की उम्र ढल चुकी
पर तू तो अब भी जवां, ना बूढी होगी कभी
वे याद करती बचपन, कहती दुलार छोड़ आई कहीँ
पर मेरे यादों में बस प्यार ही है,और मुझे देख मुस्काती बस तू
मेरे हौसले में, मेरी बुलन्दियों में, मेरी अपेक्षाओं की सागर में तू
मेरी डगमगाती नाव को संभाले भी तू,फिर कब तू मुझसे जुदा हो गयी
सब कहते है मैं बड़ी हो गयी
तेरी हँसी गुदगुदाती मुझे,जो छूना चाहू न स्पर्श कर पाऊं तुझे
तब लगे तू नही दुनियां की, बस मेरी तारा है तू
बचपन में जुगनू को तारा समझ पकड़ लेती
काश वो जुगनू होती जो तू, पर तू नही पल भर की रौशनी
जो जल बुझ जाये अभी,तू है सितारा उस अम्बर की
जो स्पर्श से दूर पर ना डूबेगी कभी #maa #motherhood #hindi
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Supriya Kumari

वो कहते है, कैसे अकेले हम रहते है
ना चंचलता, ना चमक, कैसे नीरस से हम बहते है
भारी मन मुस्कान लिए, एक अलग दिल सुलह करता है
ले आओ वो दोस्त फिर से, उदास मन बस ये कहता है
महफ़िल में रंग जमाए जो ले आओ मेरे दोस्त वो।
वो कहते है भूत में अब भी हम रहते है,
बीती बातें बिसार दे, क्यों यादें पकड़े बैठे है
नई जगह है, नई तरंग, फिर क्यों मलंग बन बैठे है
खुली फिज़ा है, दिल खोल जरा, देख नए दोस्त बैठे है।
अब कैसे समझाए इनको की
साथ भले हो लोग मगर, कहां दोस्त ये हो सकते है,
चाय की चुस्की में जब तक वो पुराने दोस्त घुल बैठे है।
खुश हूं मै, पर ठहाके ढूंढ़ रही हूं,
वो बरसो पुराने वाले फिर से दोस्त ढूंढ़ रही हूं
चाय में बिस्कुट के साथ उन यादों को निकाल सकू
बस वही दोस्तो का साथ ढूंढ़ रही हूं 
सालो के साथ जो साल गुजरे, बस वो लम्हा ढूंढ़ रही हूं
सूख चुकी है इमोशन जो, वो फीलिंग ढूंढ़ रही हूं
एक बार गले मिलकर, जी भर गालियां दे दे
बस वही पुराने दोस्त ढूंढ़ रही हूं।
वो कहते है भूत से निकलो, क्यों वही बैठी हो
कैसे समझाऊं उनको की
बैरागी नहीं ना ही भूत में रहती हूं, बस दोस्तो की कद्र करती हूं
जिन्होने जीना सिखाया, बस उनकी थोड़ी फिक्र करती हूं
वरना रास्ते तो लंबे है, हर मोड़ पर किसी का हाथ थाम लेती
पर जो गालियां दे उठा सके किसी मोड़ पर बस वही पुराना यार ढूंढ़ती हूं।



 #दोस्त #friendship #life #yaari
#hindi #shayari
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Supriya Kumari

सुना है किसी जमाने में,
 तुम भी खुद के लिए जिया करते थे
वो मुस्कुरा कर कहते है,
बेटा उस वक़्त हम बाप नहीं हुआ करते थे #father #life #hindi #bestquotes
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