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tarakeshwardubey6463
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Tarakeshwar Dubey

मित्रों से अनुरोध है कि मेरा पोस्ट देखने के बाद ही लाइक करें और पसंद आये तो फालो करें। धन्यवाद।

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Tarakeshwar Dubey

Inflation 


हेलो फ्रेंड्स


आज हम बात करेंगे Inflation अर्थात मुद्रास्फीति की जिसे आम भाषा में लोग महंगाई समझते हैं।


पिछले कुछ महीनों से यह मुद्रास्फीति एक गंभीर समस्या बनी हुई है। इससे भारत समेत विश्व के अनेकों देश बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका भी इसकी मार झेल रहा है जहाँ महंगाई चार दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है।


सभी देशों की सरकारें और केंद्रीय बैंक इस पर काबू पाने की जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं पर अभी तक कोई सफल परिणाम हासिल नहीं हो पाया है। इसी कड़ी में कुछ केन्द्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दी है। US फेड ने भी मार्च से ब्याज दरों में बढ़ोत्तरी की बात दोहराई है।


इसका प्रभावी असर शेयर बाजार पर भी देखने को मिल रहा है। अक्टूबर 2021 में 18604 के उच्चतम स्तर को छूने के बाद से निफ्टी में बिकवाली का जो दौर शुरू हुआ वह अब तक जारी है जिसे हवा दे रहा है, अमेरिका का शेयर बाजार और वहां की मुद्रास्फीति।


विशेषज्ञों का मानना था कि फेडरल रिजर्व एक चौथाई प्रतिशत ब्याज दर बढ़ायेगा पर अब कयास लगाए जा रहे हैं कि यह बढ़ोत्तरी आधे प्रतिशत की भी हो सकती है। कितनी बार ब्याज दरें बढ़ाई जायेंगी, उस पर भी कई मत है। इससे बाजार में भ्रम का माहौल और दबाव बना हुआ है।


जो भी हो ब्याज दरें बढ़ने से मार्केट में लिक्विडिटी क्राइसिस आयेगी और इससे शेयर बाजार में प्रभावशाली बिकवाली देखने को मिल सकता है। ऐसे में शार्ट टर्म ट्रेडर्स को सावधानी बरतनी चाहिए और स्ट्रिक्ट स्टाप लास मेंटेन करना चाहिए। वहीं लांग टर्म इन्वेस्टरों को, यदि ऐसा मौका मिलता है तो उसका लाभ उठाना चाहिए और निचले स्तर पर अच्छे शेयरों में खरीददारी करके बेहतर पोर्टफोलियो बनाना चाहिए।


भारत में ग्रोथ स्टोरी बहुत बेहतर है और जैसे ही यह समस्या खतम होगी, बाजार में फिर से रफ्तार दिखाई देने के आसार है। पर तब तक आपको धीरज बनाये रखना होगा।


आपके बेहतर इनवेस्टमेंट लाभ की हम कामना करते हैं। हमसे जुड़े रहने के लिए हमारे यूट्यूब चैनल "Smart Bulls" को सब्सक्राइब करें। धन्यवाद।

©Tarakeshwar Dubey Inflation

#promiseday
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Tarakeshwar Dubey

गुलिस्ताँ
"""'"""""""

कोई इनको भी समझाए,
सभी भटके को मार्ग दिखाए।
राष्ट्र ही सर्वोतम धर्म है,
कोई इसका पाठ पढ़ाए।

चाहें जख्मी हो कोई मंदिर,
चाहें मस्जिद घायल हो जाए।
आहत होता सदा वतन ही,
चोटिल दर्द सही ना जाए।

ना कोई जाति ना कोई मजहब,
राष्ट्रीयता मे बसी सभी सदाएं।
कुछ लोग अपनों से बिछुड़ गए हैं,
चलो उन्हें घर वापिस लाएं।

लड़ते रहने के न कोई मायने,
आओ हिलमिल चमन महकाए।
जिनके रूह मे अब भी है नफरत,
चलो उन्हें हम मरहम लगाएं।

सदाएं - आवाज।

©Tarakeshwar Dubey गुलिस्तां

#apart

गुलिस्तां #apart #कविता

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Tarakeshwar Dubey

नेह लिखा
""""""""""""

सावन भर आए अंबर मे,
तब कवियों ने नेह लिखा।
सरसो जब फूले बंजर मे,
तब कवियों ने नेह लिखा।
अंखिया जब-जब कजराई,
तब काली घटा घन में छाए।
कुहुक उठी कोयल बगिया मे,
तब कवियों ने नेह लिखा।

जब अमियां बौराई यौवन मे,
तब कवियों ने नेह लिखा।
कलियां मुस्काई उपवन मे,
तब कवियों ने नेह लिखा।
पैजन छनके जब पैरन मे,
सूर और ताल बजे मन मे।
कदम जब बहके राहों में,
तब कवियों ने नेह लिखा।

पीयू-पीयू जब रटा पपीहा,
तब कवियों ने नेह लिखा।
चातक ने जब गाया विरहा,
तब कवियों ने नेह लिखा।
जब पुष्प महके गजरे मे,
भौरें पथ से वहक गए।
ताज बना सिर का सेहरा,
तब कवियों ने नेह लिखा।

मेहंदी जब सजी हाथो में,
तब कवियों ने नेह लिखा।
सरगम जब घुली सांसो में,
तब कवियों ने नेह लिखा।
सुर्ख हुए जब से रुखसार,
किरणों मे आई लाली।
चाँदनी उतर आई आंगन में,
तब कवियों ने नेह लिखा।

उठ गया जब दिल से पहरा,
तब कवियों ने नेह लिखा।
मंजर जब-जब हुआ सुनहरा,
तब कवियों ने नेह लिखा।
अंखिया जब लड़ गई चांद से,
वैरन हुई दुनिया सारी।
प्रियतम जब आए बांहो में,
तब कवियों ने नेह लिखा।

©Tarakeshwar Dubey नेह लिखा

#humantouch

नेह लिखा #humantouch #कविता

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Tarakeshwar Dubey

हे राम! तुम्हारे जन्मभूमि पर,
कैसा अँधियारा छाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

तुम कहते हो, तुम स्वामी हो,
तुम जग के पालनहारे हो।
तुम अंतर्यामी घट-घट वासी,
दीन, दुखियों के सहारे हो।
तुम ही काया, तुम ही माया,
इस सृष्टि पर, तुम्हरी साया।
धरती हो या अनंत व्योम का,
हर इक कण है तुम्हरा जाया।
फिर क्यूँ दीन-दुखियों को पथ में,
दनुजों ने तड़पाया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

जिस भूमि पर नारी पूजिता थी,
जहाँ मन पावन आधार रहा।
देव, ऋषि के यहाँ क्या कहने,
जहाँ दानव में भी संस्कार रहा।
हरण किया देवी का उसने,
छद्म भेष धारण कर के।
पर स्पर्श मात्र से दूर रहा,
मर्यादा का मान रखा उसने।
आज उसी भूमि पर अधमों ने,
कैसा कोहराम मचाया है?
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

जनता के सेवक बन कर के,
सत्ता का सुख भोग रहे हैं।
मद्द फांस के अंध मोह मे,
जन का लहू वे सोख रहे हैं।
इतिहास बन गए दया, धरम अब,
पिचासिनियों की होती जयकारे हैं।
जो कल थे मानवता के रक्षक,
सब आज हुए हत्यारे हैं।
खो गई आज मन की मृदुलता,
तम का संकट गहराया हैं।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

हे राम! तुम जग के प्रणेता हो,
पुरुषोत्तम हो प्रभू कुल श्रेष्ठ।
मर्यादा के पोषक, संरक्षक,
मनुजता के धारक मनु ज्येष्ठ।
तुम रचयिता हो संस्कारो के,
तुम संहारक हो दुर्विचारो के।
सब दया धरम हर गुण विशेष,
है अधीन तुम्हारे शशि, दिनेश।
फिर कैसे तुम्हारे शासित भूमि पर,
दनुराज का पसरा साया है।
नर रुप मे दिखते मनुजों मे,
दस-दस दसकंधर समाया है।

©Tarakeshwar Dubey हे राम

#Stars

हे राम #Stars #कविता

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Tarakeshwar Dubey

चलो चुप हो जाएँ
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बाहर मचा हुआ है शोर, चलो चुप हो जाएँ,
आफत पसरी है चहुँ ओर, चलो चुप हो जाएँ।

जिसके जिम्मे में था, उसे संभाले रखने की,
वही निकला शातिर चोर, चलो चुप हो जाएँ।

महफुज है समझने की, बड़ी कीमत पड़ी देनी,
दर अदालती हुई कमजोर, चलो चुप हो जाएँ।

कोई भी अछुता न रहा, हुक्मरानों की घातों से,
अघातें की उसने बड़ी जोर, चलो चुप हो जाएँ।

एकाकीपन के आलम में, आती है बहुत याद,
हूक उठती है पोर-पोर, चलो चुप हो जाएँ।

"मृत्युंजय" जमाना कातिल है, रूहों से बहे सैलाब,
जाने कब तक होवेगी भोर ? चलो चुप हो जाएँ।

©Tarakeshwar Dubey चुप हो जाएं

#ujala

चुप हो जाएं #ujala #शायरी

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Tarakeshwar Dubey

चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?
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कैसे लिखूं मै कुमकुम बिंदिया, रोली कंगन की झनकार,
जब माता के आंगन में, मचा हुआ है हाहाकार।
कोई भोंकता पीठ मे खंजर, कोई वक्ष पर ताने तलवार,
कोई देश की बोली लगाता, संस्कृति पर करता प्रहार।
कोई बांटता जाति धर्म में, करवाता जन मे दंगे,
कोई देशभक्ति की आड़ में, बैरी से लड़वाता जंगे।
कोई सेना के सौर्य बल पर, प्रश्न चिन्ह उठाता है,
कोई अदालतों की चौखट पर, न्याय की बोली लगाता है।
कोई बैठ कर संसद में, जन गण की दंभ भरता है,
छलकपट से छद्म भेष में, जन मानस जख्मी करता है।
ऐसे निर्मम हालतों मे मैं, चुप कैसे रह सकता हूँ?
माता मेरी विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?

ऐसे कुकृत्यों पर कहीं, धरती डोल गया होगा,
भूमंडल के बाहर कहीं, अंबर बोल गया होगा।
निष्ठुरता से क्रुद्ध हो कर, किसी ने रेखा खींची होगी,
आखों में अंगारे भर कर, लहू सी नीर बही होगी।
कहीं दरिया के मीठे जल मे, खार उमड़ आया होगा,
कहीं भगत सिहं के रगों मे, लावा दौड़ गया होगा।
कहीं चंद्रशेखर के हाथो में, पिस्टल तन गई होगी,
कहीं कुँवर के बाजुओं मे, तलवारे चमक गई होगी।
बहने सजग हुई होंगी और भाई शहीद हुए होंगे,
जब सरहद पर बैरी ने, छिप कर घात किए होंगे।
पतितों के पथभ्रष्ट मार्ग की, पीड़ा कैसे सह सकता हूँ?
भारत माता विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?

जब कोई द्रोही षडयंत्र से, जो दंगे करवाएगा,
हो जाएंगे स्वर बुलंद, कोई प्रेमी डट जाएगा।
माता की मर्यादा को जब, पापी दाग लगाएगा,
जाग उठेगी नारी रणचंडी, कोई बागी हो जाएगा।
भस्म मलेंगे जब योद्धा, छल-छल लहू तब छलकेंगे,
बज उठेगी रणभेरी, जन-जन यौवन फिर गरजेंगे।
कट जाएंगे शीश अरि के, मिट्टी मे मिल जाएंगे,
जो भिड़ेंगे महावीरों से, खाक-खाक हो जाएंगे।
कदमो में होगा सिंधु, शिखर खुद ही शीश झुकाएगा,
ऊँचे गगन में शान तिरंगा, लहर-लहर लहराएगा।
व्यभिचार सम्मुख हरगिज, नत्मस्तक नही हो सकता हूँ,
भारत माता विलख रही, मै चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ?

©Tarakeshwar Dubey चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ

#DearKanha

चक्षु कैसे मूंद सकता हूँ #DearKanha

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Tarakeshwar Dubey

रिमझिम सावन बरसे
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भाभी हो रिमझिम सावन बरसे,
हम ससुररिया जइबै ना।

पतिया लिखाई द न्योता पठाई द,
भाभी हो सगुनवा हमरी कराई द,
हम ससुररिया जइबै ना।

चोलिया मंगाई द लहंगा सिलाई द,
भाभी हो पीयरी रंगे रंगाई द,
हम ससुररिया जइबै ना।

मेहंदी मंगाई द कंगना मंगाई द,
भाभी हो रची-रची हाथे रचाई द,
हम ससुररिया जइबै ना।

पालकी के बीचे-बीचे झालर लगाई द,
भाभी हो डोलिया हमरी सजाई द,
हम ससुररिया जइबै ना।

©Tarakeshwar Dubey रिमझिम

#Independence2021
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Tarakeshwar Dubey

फुहार
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झिमिर-झिमिर पड़े रेशमी फुहार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।
दुअरा पर गमके बेला, कचनार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

सुनु ए सखी सब परसो के बतिया,
राधा रानी के अइले संहतिया।
वगिया मे झूला पड़े कदम के दारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

धरती के चुनर भईल बा धानी,
उमड़-उमड़ बहे सरयू के पानी।
वंशी के धुन डोले गोकुल के नारि,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

रुनझुन-रुनझुन नाचेले गइया,
चीं-चीं-चीं-चीं चहके वन के चिरइया।
गोपियन सजी सब सोलहो श्रृंगार,
सखि सब चलु मल्हार गावे।

©Tarakeshwar Dubey फुहार

#fourlinepoetry
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Tarakeshwar Dubey

चंद्रमुखी
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इक राग पर रागिन दीवानी हुई,
तेरी मेरी ये प्रीति जुबानी हुई।
जमाने ने ढाहे कितने सितम-दर-सितम,
जब से बैरन हमारी जवानी हुई।

चाय पर चर्चा हमसे वे करते रहे,
प्याली की भी अपनी एक कहानी हुई।
मधुशाला की पड़ गई छाप जब से,
मद भरी फिर तो वह एक पैमानी हुई।

नजरों को पिलाने की आदत है,
अधरों की सारी रश्में बेमानी हुई।
एक बूंद भी पीला देना होठों से,
मानूं शाकी तेरी मेहरबानी हुई।

चले आते है हर रोज मयखाने मे,
मुड़कर वे कभी लड़खड़ाये नहीं।
पारो की माला फेरते सदा झूम के,
सुख काठी चंद्रमुखी की जवानी हुई।

© मृत्युंजय तारकेश्वर दूबे।

©Tarakeshwar Dubey चंद्रमुखी

#OneSeason

चंद्रमुखी OneSeason

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Tarakeshwar Dubey

सार
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जिम्मेदारियाँ,
भाग-दौड़,
प्रतिस्पर्द्धा,
एक-दूजे
से आगे
निकलने 
की होड़,
पारिवारिक
कर्त्तव्य
और रिश्तों
की मर्यादा
के बीच
पीसता
कश्मकश में
पड़ा यौवन,
ऊँचाई की
सीढ़ियां चढ़ता
इतना ऊपर
चला जाता है
कि शायद !
थक जाता है.....

इसीलिए शायद
ढूंढता है
शांति,
नीरवता,
अकेलापन
दूर
सबसे दूर
बहुत दूर
एकांत.....

क्या यही
जीवन का
सार है ?
क्या यही
जीवन है ?

©Tarakeshwar Dubey सार

#Mic
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