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amitkumar6211
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AMIT KUMAR KASHYAP

मैं तो दर्पण हूँ, तुम जैसे देखो मैं वैसा दिखूंगा🕸️

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AMIT KUMAR KASHYAP

धार्मिक कट्टरता 🙍

जब धर्म मस्तिष्क पे चढ़ जाता हैं,
बुद्धि तो मानों मर जाता हैं,

सड़ जाता है, जिह्वा उसका जैसे नागिन का विष पड़ जाता है,
बूझ जाती हैं लौ  विश्वास की और घोर अंधेरा छाता है,

अंधेरी सी इस दुनियां में कोहराम नज़र आता है,
खून की इन चमकती छीटों को देखो सब लाल नज़र आता है,
मगर रुको कोई दलित,हिंदू तो कोई मुसलमान नजर आता है,
रास्ते से हटो कोई आते नज़र आता हैं,

हां,हां ये तो 9 साल के बच्चे का जनाजा नज़र आता हैं,
मटके से पानी पी न सका ऐसा नज़र आता हैं,

ये चमकते जुगनू अंधेरी में क्या इशारे देता हैं,
ज़रा साथ चलो इसके ये अद्भुत नजारे देता हैं,

मगर ये अब मिटता नज़र आता हैं,
अरे! नही नही उपर तो देखो बाबा साहेब का प्रकाश नजर आता हैं, 
अब सब साफ नजर आता है सब इंसान नजर आता है।

लेखक __ अमित कुमार💙

©AMIT KUMAR KASHYAP #DalitLivesMatterIndia

#Dark
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AMIT KUMAR KASHYAP

तुम्हारे कदमों का चलना जैसे सरहदों का टूटना हो,
   मैं संयुक्त राष्ट्र का शांति दूत हूं,                       
समझो तो मैं तुम्हारे कदमों की अदा हूं।

           लेखक_ अमित कुमार💙

©AMIT KUMAR KASHYAP #Love , #romance ,#romantic,#loveshayri.
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AMIT KUMAR KASHYAP

मुझे बदनाम कर दो इस जहां में,
उम्मीदों का बोझ रीढ़ तोड़ रहा हैं।


                 लेखक ___ अमित कुमार ✍️

©AMIT KUMAR KASHYAP #LostInSky
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AMIT KUMAR KASHYAP

🥰ठंड पड़ी बस्ती में फिर एक आग जली,  🌹                                     
🥰पत्थर की कलेजे में धड़कन की राग फूटी,    🌹                            
                       🥰  आंखों की आंखों में ना जाने क्या बात हुई? 🌹                 
                    🥰मैं रोम रोम भींग चुका था आंसू में, 🌹                                        
                                   🥰 न जाने इश्क की कब बरसात हुई?🌹               
                                           🥰फिर दिल्लगी की मुझे आग लगी।🌹।                                          


🥰तेरी सांसों की घर्षण पे जिस्म  खो गया हैं,🌹।   
                                🥰मैं तो हूं मगर रूह कही खो गया हैं ,🌹
              🥰चूड़ियों की खनक खींच लाती हैं बाहर,🌹।     
                     🥰मगर रूह की तलब लिए तेरी आंखों से मैं रो बैठा हूं,🌹
🥰काली जुल्फों की रात में तेरी मखमली सूट पे सर रख,🌹
🥰सपनों में खो बैठा हूं, मेरी जानेमन बस इस दिल्लगी में सब हार बैठा हूं।🌹


लेखक ___अमित कुमार

©AMIT KUMAR KASHYAP #Love ,#pyar,#lovestory,#zindagi,#ishka,

#Dillagi
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AMIT KUMAR KASHYAP

ममता की मार🥺

मैं बाबा साहेब के विषय में बोल नहीं पाऊंगा,
क्योंकि शुरुआत में आंख के आंसू ,
लब्ज़ को लड़खड़ा देते हैं,

रीढ़ तो सीधी होती हैं,
मगर तीव्र सांसे धड़कन बढ़ा देती हैं,

गर्व से मैं दुबला फूल कर बलिष्ठ हो जाता हूं,
मगर खड़े पैर ज़मीन पे लड़खड़ा जाते हैं,

शब्दों के वेग तन को ताव देते,
मगर कंठ में उपजी लार उसे दाब देती हैं,
बोलना तो बहुत चाहता हूं,
मगर आंख की निर्मल धारा शब्दो को मार देती हैं।



लेखक __ अमित कुमार💙

©AMIT KUMAR KASHYAP #Hum_bhartiya_hain
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AMIT KUMAR KASHYAP

किसने युद्ध को ताल दिया?🌪️
 
दो तरफा कोप का ये कैसा बिजन रोप हुआ?
हरियाली की चादर पे लाल रंग का धूप हुआ,
हिरोशिमा की आह को फिर से किसने राग दिया?
बोलो अमन की छाव में किसने भय का भान किया?
बताओ किसने फिर से युद्ध को ताल दिया?

ज्वाला मुखी की राख में भय का कैसा छाव हैं?
क्या यह धरती की कोंख से निकली मृत्यु की आह हैं?
डगमग करती जीवन की नाव को फिर भय का भान हुआ,
शुष्क नैन की चादर पे भीति का श्रृंगार हुआ,
टूटी रण की रीढ़ को फिर किसने जान दिया,
बोलो फिर किसने युद्ध को ताल दिया।

लेखक___ अमित कुमार ✍️

©AMIT KUMAR KASHYAP #FadingAway
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AMIT KUMAR KASHYAP

जानते हो?

रास्ते मे गुलाब का फूल दिखे तो मन करता है, तोड़ ले।

घर के आँगन में खिले तो बच्चे को बोलते है, ध्यान देना कोई तोड़ न ले।

क्योंकि आप जिससे प्यार करते हों,
उसको गुलाम या फिर कहे अधिकार रखना चाहते हो।

मगर प्यार का अर्थ ही है स्वतंत्रता,                           
इसलिए तुम जिसे प्यार करते हो इसपे हक मत दिखाओ,                    
बस विचारों को प्यार के संगम से रखो।।                           

amit कुमार🌻

©AMIT KUMAR KASHYAP #Freedom
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AMIT KUMAR KASHYAP

Mind is the prisoner of thoughts which we collect around us but it's impossible to break its limitations until you have provoked willpower to accept truth of matter's nature.

PRAAJM_ AMIT🥀

©AMIT KUMAR KASHYAP #findyourself
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AMIT KUMAR KASHYAP

ना मारो विचारों को 
वह तो औऱ पनपे  गा,

रक्त बीज का रक्त हैं,
गिरेगा औऱ अधिक जन्मे गा,

खनक की आहट तेज़ बढ़ेगी
चिंता मन को कचोटेगा,

लाशे कब्र तोड़ निकलेंगी
हिमालय की शिखर को भय छेंकेगा,

न जला ज़ख्म को औऱ
वरना दर्द से आयुध का सैलाब उठेगा,

भृत्य की भय जीतेंगी
उनकी विचार अमरत्व की सुख भोगेगा,

जब-जब विचार को मारोगे
एक- एक अंश औऱ तेज बोलेगा।

       
   लेखक_ praajm_amit✊

©AMIT KUMAR KASHYAP #Blackboard
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AMIT KUMAR KASHYAP

(बूढ़ा अमेरिका🦅)

अस्त्र पकड़ सदियों से,             
          न जाने कितने आघात किये,
कलप उठा है जी अशोक सा,     
         न जाने कितने कलिंग मार दिए।

सूख गया हैं, चित्त थार सा,           
अफगानी सैकत की वॉर में,
चीख़-चीख़ के बोल रहा हूँ,         
       वॉशिंगटन के मैदान से,
मैं अमेरिका बूढ़ा हो गया हूँ,    
    रक्त -पात के महँगे श्रृंगार से।

praajm-AMIT🏳️

©AMIT KUMAR KASHYAP reality
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