सब कुछ है मेरे पास मग़र कुछ कमी भी है। आँखों में गर-चमक है तो थोड़ी नमी भी है।! लगती नही -लग़ाम मेरी इस- मिजाज़ पर। दिल की लगी कभी तो कभी दिल्लगी भी है।। हैरान- न हो मुझको- समन्दर में देख कर। मेरे -लबों पर तेरे -लिए - तिश्नगी भी है।! दिल तुझको ढूंढता है निगाहें किसी को और। अब क्या करूँ मिजाज़ में आवारगी भी है।। उड़ता हूँ मैं फिज़ाओ में अब तो यहाँ-वहाँ। रूकने को मेरे वास्ते दो -गज़-ज़मी भी है।।
Iqbal Mehdi Kazmi
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Iqbal Mehdi Kazmi
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