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maroofhasan2421
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Maroof alam

नाम मारूफ आलम, (Maroof alam) शायर हैं जिला रामपुर (यूपी) में रहते हैं पत्रकारिता में मास्टर डिग्री की है

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Maroof alam

तेरे पैंतरे को तेरे दंगल को खूब समझते हैं
हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं

हाकिम हमें ग्रहों की चाल मे मत उलझा
हम,सूरज,चांद,मंगल को खूब समझते हैं

उससे कहो बीहड़ की कहानियाँ न सुनाए 
चम्बल के लोग चम्बल को खूब समझते हैं

इन्होंने सर्दियाँ गुजारी हैं नंगे बदन रहकर
ये गरीब लोग कम्बल को खूब समझते हैं

जो बच्चे गाँव की आबोहवा मे पले बढ़े हैं
वो नदिया,पोखर,जंगल को खूब समझते हैं
मारूफ आलम

©Maroof alam हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं/गजल

हम आदिवासी जंगल को खूब समझते हैं/गजल #शायरी

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Maroof alam

सदियों से बीमार हूँ मै
जख्मी हूँ संगसार हूँ मै
सियासी गलों का हार हूँ मै
मुझे पुकारो मेरे दोस्तों
फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मै
मेरे वजूद की दरकार है मुझको
लूटेरों की पड़ी मार है मुझकों
अपनी पहचान भूल रहा हूँ
दुश्मन के हाथों मे झूल रहा हूँ
यहूद नसारा को नागवार हूँ मै
मुझे पुकारो मेरे दोस्तों
फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मै
लहु से तर है जुबान मेरी
नेजो पर है अब जान मेरी
रौंदी है उन्होंने आन मेरी
आज पैरों तले है शान मेरी
जंगों से दोचार हूँ मैं
मुझे पुकारो मेरे दोस्तों
फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मै
मल्लाहों ने छोड़ दिया है
लहरों ने भी तोड़ दिया है
किस्मत में हिचकोले हैं
नदियों ने मुहाना मोड़ लिया है
इस पार ना उस पार हूँ मैं
मुझे पुकारो मेरे दोस्तों
फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मै
मारूफ आलम
©कापीराइट

©Maroof alam फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मैं/शायरी

फिलीस्तीन हूँ एक पुकार हूँ मैं/शायरी

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Maroof alam

जिहाद अगर छोड़ दोगे
तो कैसे लड़ोगे खुद की बुराईयों से
जो दिल ओ दिमाग मे 
भरी पड़ी हैं
तो कैसे लड़ोगे उन शैतानी
ताकतों से जो चट्टानों की तरह
भलाई के रस्ते मे खड़ी हैं
जिहाद अगर छोड़ दोगे
तो कैसे सच्चाई का मान बचाओगे
तो कैसे अच्छाई की जान बचाओगे
लूटेरे सरेआम कमाई लूटेंगे
मेहनतकश बस मदद ऐ 
खुदा की आस लगाऐंगे
मदद जब आऐगी सो आऐगी
पर जालिम तब तक जी भर के
खून बहाएंगे
लड़ना खुद ही होगा,मदद तब ही
खुदा की आऐगी
जो ना लड़े जुल्म ओ जालिम से
गुलाम दुनिया हो जाएगी
जिहाद अगर छोड़ दोगे
मारूफ आलम
©®कापीराइट

©Maroof alam जिहाद अगर छोड़ दोगे/शायरी

जिहाद अगर छोड़ दोगे/शायरी

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Maroof alam

लिचिंग

वो भीड़ राम के नारे लगाने वालों की थी
वो भीड़ राम के चाहने वालों की थी

हाथों मे खंजर और तलवार लिए फिरते थे वो
होठों पर थे राम उनके और 
दिल मे अंगार लिए फिरते थे वो

वो सारी हदों को आज पार कर देना चाहते थे
वो हर एक मासाहारी को संगसार कर देना चाहते थे

उन्होंने ये दर्स मार, मरन का कहां से सीखा था
वो पीते थे लहू मुस्लमानों का और फिर
कहते थे ये फीका था

वो थे मांसाहारी अगर यही उनके पाप थे
तो फिर ये बताओ दशरथ क्यों गए थे शिकार पर
वो तो राम के बाप थे
मारूफ आलम
©कापीराइट

©मारुफ आलम #लिचिंग
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Maroof alam

जालिमों की हिरासत मे जलता हूँ
अपने घर,अपनी रियासत मे जलता हूँ
तुम मुझे पहचानते हो ऐ दुनियाँ जहाँ वालो
मैं फिलीस्तीन हूँ सियासत मे जलता हूँ
मैने मूसा से ईसा का जमाना देखा है
मैंने कई सल्तनतों का आना जाना देखा है
मगर इतिहास गवाह है कभी भी 
इजराइल नही था मैं
मैं आज भी फिलीस्तीन हूँ और कल भी
फिलीस्तीन था मैं
मेरे भाईयों मे मुझको लेकर इख्तेलाफ बहुत हैं
मेरे अपने ही मेरे खिलाफ बहुत हैं
अपने बुजुर्गों की विरासत मै जलता हू
मै फिलीस्तीन हूँ सियासत मै जलता हूँ
हर सदी मे अपने लाखों लोगों को खोता हूँ
मैं बारूदों से जख्मी होकर सदी दर सदी रोता हूँ
मेरा फैसला ना जाने क्यों नही होता
मैं कमजोर हूँ शायद यूँ नही होता
दम घुटता है सदियों से हिरासत मे जलता हूँ
मैं फिलीस्तीन हूँ सियासत मे जलता हूँ
मारुफ आलम
copyrigh

©मारुफ आलम मै फिलीस्तीन हूँ सियासत मे जलता हूँ

मै फिलीस्तीन हूँ सियासत मे जलता हूँ #शायरी

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Maroof alam

गजल

मेरी आंखों मे थकन साफ साफ देख
रातों की सारी जगन साफ साफ देख

चहरा उतर कर बोझल सा हो चुका है
दिल रोता है ये दुखन साफ साफ देख

मिट्टी से मरकर भी रिश्ता नही तोड़ा
मेरी चाह और लगन साफ साफ देख

कितने उजले कपड़े पहने हुए हूँ आज
मेरा दूर से भी कफन साफ साफ देख

नफरतों की सुलगती,जलती आगों मे
तपनेवालों की तपन साफ साफ देख

नई फसल मे कोई खसारा नही है अब
मुहब्बतों का ये चमन साफ साफ देख
मारुफ आलम

©मारुफ आलम जगन साफ साफ देख

#farmersprotest

जगन साफ साफ देख #farmersprotest #शायरी

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Maroof alam

गजल

मायूसियां जब देखीं खुद्दारों के चेहरों पर
एक हंसी सी दौड़ गई गद्दारों के चेहरों पर

उजले घर शहरों मे गवारा नहीं थे उसको
कालिख पोत गया वो दिवारों के चेहरों पर

मैंने जब पूछा ये बिरानियां कहाँ सजा दूं मैं
बड़ी लरज के बोला बहारों के चेहरों पर

मैंने आसमानों की जानिब देखा ही था कि 
बादल आकर छा गए सितारों के चेहरों पर

जमाने मे जब औरतों के हक की बात आईं
शिकन सी आ गई समझदारों के चेहरों पर

दरिया तेरा सूख जाना बहुत खल गया उन्हें
आज उदासी देखी कहारों के चेहरों पर
मारूफ आलम खुद्दारों के चेहरों पर/गजल

खुद्दारों के चेहरों पर/गजल #शायरी

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Maroof alam

गजल



बेवफाई से बखूबी बावस्ता थे वो लोग
प्यार के मारे थे सजायाफ्ता थे वो लोग

कभी कभी मैं सोचता हूँ वो क्या थे मेरे
हमदर्द थे मेरे या हमरास्ता थे वो लोग

मेरी मुहब्बत मेरी चाहत मेरा संसार थे
विश्वास थे मेरा,मेरी आस्था थे वो लोग

जो रिश्ते जुदा करके दूर चले गये कहीं
मेरे रिश्तों मे ही थे मेरे राब्ता थे वो लोग

एक पूरी दुनियां थी उनमें बसी "आलम"
साहिल थे मंजिल थे रास्ता थे वो लोग
मारूफ आलम सजायाफ्ता लोग /गजल

सजायाफ्ता लोग /गजल

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Maroof alam

गजल

अब हंसते खेलते रहने का हुनर छोड़ दिया उसने
 सूख गया दरिया बहने का हुनर छोड़ दिया उसने

 सच्चाई की सोहबत मे रहा न जाने फिर भी क्यों
 कहते कहते सच कहने का हुनर छोड़ दिया उसने

और कब तक सहता मार प्यार,वफ़ा एहसानों की
धीरे धीरे ये सब सहने का हुनर छोड़ दिया उसने

उस खंण्डहर मकान मे परिंदों के बसेरे क्या हुए की
जर्जर होकर भी ढहने का हुनर छोड़ दिया उसने

बहुत उठाया एक तरफा नुकसान शायद इसलियें ही
अब दिल देकर दिल लेने का हुनर छोड़ दिया उसने

मारूफ आलम
सोहबत-साथ, संग हुनर छोड़ दिया उसने/गजल

हुनर छोड़ दिया उसने/गजल #शायरी

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Maroof alam

गजल
चाहत की गर्मी मे जलते क्यों नही
प्यार का मौसम है बदलते क्यों नही

बहुत कहते थे मीलों चल सकता हूँ
अब रूक क्यों गये चलते क्यों नही

देखो ये काफिले मुद्दतों से प्यासे हैं
तुम बर्फ हो तो पिघलते क्यों नही

बिक चुके थे तभी मैं सोचता था की
दुश्मन भी अब तुम्हें खलते क्यों नही

फरिश्ते ही होंगे जरा गौर से देखो तो
ये अगर इंसान हैं तो ढलते क्यों नही

मारूफ आलम #sunrays गजल
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