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divyayanichoubey3752
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Indu Bala Mishra

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Indu Bala Mishra

💧_मैं जल हूं_💧

मैं जल हूं जीवन मुझसे है, हरी भरी सृष्टि मुझसे है।

कल–कल करती नदियों की, झर–झर झरते झरनों की,
 लहराते बलखाते सागर की, अद्भुत सुंदरता मुझसे है।।

मैं जल हूं जीवन मुझसे है, हरी भरी सृष्टि मुझसे है।

फल–फूलों के मीठे रस में, काले बादल  के घन वर्षण में,
शरद ऋतु के शीत बूंदों में, जन जीवन में स्वच्छता मूझसे है।।

मैं जल हूं जीवन मुझसे है, हरी भरी सृष्टि मुझसे है।

ऐ धरती के मानव सुन ले मेरी संरक्षण–शुद्धता तुझसे है,
मेरी शीतलता–स्वच्छता तुझसे है, भूखे–प्यासों की क्षुधा तृप्ति मुझसे है।।

मैं जल हूं जीवन मुझसे है, हरी भरी सृष्टि मुझसे है।

©Indu Bala Mishra #World_Water_Day
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Indu Bala Mishra

❤️✿हमारी ये बेटियां✿❤️

बेटियां अनचाही नहीं होती, किस्मत से मिलती हैं बेटियां।
मैंने देखा है बेटे वालों को बेटियों के लिए तरसते हुए।।

बेटियों को समर्पित मेरी एक छोटी सी कविता...
✿फूलों सी कोमल खुशबू सी मोहक, सुंदर सुकुमारी प्यारी सी। 
माया ममता की मूरत, भोली-भाली सी सूरत 
   हमारी ये बेटियां।।

   पिता की पगड़ी, माता की लाज
   कुल की मान, देश की शान
   हमारी ये बेटियां।।

   पति-प्रिया बन, सुघड़ गृहणी बन
   नव निर्माण करतीं, सुंदर सृष्टि रचतीं 
   हमारी ये बेटियां।।

   राम, कृष्ण जैसे देवों की
   वाल्मीकि, तुलसी से सपूतों की
   भगत, चंद्रशेखर से देशरत्नों की 
   मातृरूपी रत्नगर्भा भी थीं,  
 हमारी ये बेटियां।।

   सरस्वती, लक्ष्मी, दुर्गा, काली
   सीता, सावित्री, इंदिरा, सरोजनी
   कल्पना, ऊषा, शाक्षी, सिंधु
   बछेंद्री, किरण भारत की वरदान
   हमारी ये बेटियां।।

   फिर क्यों मारी जाती, इस निर्दय संसार में
   माता की कोख में, दहेज की लोभ में
   प्यारी-दुलारी
          हमारी ये बेटियां।।🙏

©Indu Bala Mishra #बेटी_बचाओ_बेटी_पढ़ाओ
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Indu Bala Mishra

भिखारिन 🎭

देखा था मैंने उसे,
सूनी सड़कों पे टहलते हुए।
कभी रोती, कभी हसती थी,
अपनी दुखों को समेटे हुए।
जाड़े की रात हो, या 
गर्मी की धूप हो।
देखा था मैंने उसे, 
चिथड़ों में लिपटे हुए।।

बिखरी जुल्फों से झांकती, 
उसकी सूनी आंखें।
खोजती दानियों से,
खाने को कुछ पाने के लिए,
देखा था मैंने उसे,
भूखे फुटपाथों पे सोए हुए।।

सोचा था उसने कभी,
सुखी जीवन जीने को।
सुख तो मिला नहीं,
दुआ मांगती मरने के लिए।
देखा था मैंने उसे,
सूनी सड़क पे मरते हुए।।

©Indu Bala Mishra #भिखारिन
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Indu Bala Mishra

_वृक्ष_

फूटी अंकुर फूटा कोंपल, और धरा पर खड़ा हुआ।
आंधी, बारिश, तुफ़ा से लड़कर, मैं धीरे–धीरे बड़ा हुआ।।

सावन आया पतझड़ आई, आई वसंत बहार।
डाल–डाल पर काली खिली, हुलसा हृदय आपार।।

मधुप तितलियां छाई आकार, गूंजी कोयल की मृदु तान।
डाल–डाल पर बना बसेरा, मुझसा किसका शान।।

भूखे–प्यासे पंथी को दी, छाया और आहार।
सुखदाता–आश्रयदाता बन, दिया मात–पिता सा प्यार।।

कई दसक बीतीं, सादिया बीतीं, फिर हुआ वृद्ध सा भास।
धीरे–धीरे पत्ते झड़ गए,
हुआ अकेलेपन का एहसास।।

एक दिवस मैं मौन खड़ा था, बीतीं बातें सोच रहा था।
तभी तन पर चली कुल्हाड़ी, क्षण भर में क्षिण–भिन्न पड़ा था।।

किसी के घर का बना जलावन, और क्षुधा को तृप्त किया।
किसी के बालक का बन पलना, स्वप्न–लोक में लीन किया।।

किसी राजा का बना सिंहासन, राज–भवन का शान बना।
किसी चिता के संग जलकर, मैं मानव तन का त्राण बना।

कहते हैं जीवन अनमोल है, मेरा जीवन धरा का प्राण रहा।
जीकर तो सुख दिया सभी को, मैं मरकर भी अनमोल रहा।।

©Indu Bala Mishra #वृक्ष


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