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prakashshukla3277
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Prakash Shukla

जिला- फतेहपुर AT मेरे अल्फ़ाज़ ही मेरी पहचान

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Prakash Shukla

एक पति बेचारा अपनी बेगुनाही कैसे शाबित करता है
पत्नी आज दिन भर कहाँ थे
पति यहीं तो था
पत्नी यहां कहाँ ?
बस यहीं तो था
पत्नी यहीं थे कि गुलछर्रे उडा रहे थे
पति हे भाग्यवान
अच्छा तो अब मुझसे बहाने न बनाओ सच सच बताओ
पति तुम ऐसे ही शक करोगी तो मै खा लूँगा
पत्नी हाँ खा लो जहर कम से कम निपट तो जाओगे
पति हट पगली जहर खाएँ मेरे दुश्मन
मैं तो तुम्हारी कसम खाने की बात कर रहा था
☺️☺️☺️☺️

©Prakash Shukla love
#OneSeason
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Prakash Shukla

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

 मतवाले नयनो के बाण चलाकर,पिया ने किया मुझको घायल
सुरमयी शब्दों से प्यार जताकर ,करके गया मुझको पागल
दिल के सुरताल ,मेरे उलझे से बाल ,मुझे फूलों से उसने सजाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

तन और बदन मे आग लगाकर,करके गया है दिवाना
बलमा ने आकर बाँहों मे भरके,किया दुनिया से मुझको बेगाना
 नयनों की पलक,तले एक झलक,जैसे सागर ने मोती छुपाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

मिलती नजर मुझसे सरमा के बोली,जिस्मों का मिलन अब है होना
दिल की फुहार बोली नजरों की धार,मेरा हर एक अंग भिगोना
हो जाऊँ सराबोर,मेरा बलम चितचोर,दिल के रंगों को दिल से लगाया

होली के रंग,बढ़ती उमंग, मेरे साजना को तरस न आया
हाथ लेके गुलाल,कोमल से गाल,मेरे सपनों को रंग लगाया

©Prakash Shukla #होली_की_हार्दिक_शुभकामनाएं
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Prakash Shukla

डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन
डूब गए हैं लोग यहाँ के डूब गया बचपन

छूट गए हैं कोरे पन्ने बचपन के वो खेल
छूट गए हैं खेल तमाशे बचपन की वो रेल
रूठ गई है प्यारी गुडि़या रूठ गए सब मेल
रूठ के देखो बनी शिकहरी जंगल की इक बेल
सूने सूने से हो गए हैं मेरे हरे भरे उपवन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन

टूटी चप्पल के पहिए और डिब्बों की गाडी़
छूट गए सब रिश्ते बारिश में भीगती बाडी़
चार आने में मिलता सब गुडि़या गुड्डे की साडी़
पैसों मे बिकता चाट-साट चूरन से बनती डाढी़
छूट गईं बारिश की बूँदें टूट चुका है तन
डूब गई कागज की कस्ती ऊब गया है मन #DryTree
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Prakash Shukla

तुम ठहरी परदेशी मैम

एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.................(धीरे आवाज)
एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.............(.जोर)
एक दफा देखा उनको 
आँखों में न नींद रही.............(.बहुत जोर)
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं............(.बहुत जोर)

क्या था अपनापन बेगाना
सीने में ही दबा रहा...........जोर
दिल भी खाली लेन देन के
सौदे में ही लगा रहा..............धीरे
था बेगानापन अपना ही
हाथों में अस्क की बूँद रही.............बहुत जोर
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे

तुम ठहरी परदेशी मैम
मैं गाँव का था एक छोरा.............जोर
कोशिश की पर दिल न माना
बीच धार में बोरा..................धीरे
टूटा दिल मोतियन की माला
एक एक कर रूँध रही.............बहुत जोर
साँसें मेरी साथ छोड़कर
पलकें मेरी मूँद रहीं.................धीरे तुम ठहरी परदेशी मैम

तुम ठहरी परदेशी मैम

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग
जब बस रुकी तो हम सब उतर गए और हमने फ्रेश होकर भोजन करने को बैठ गए तभी पास में बैठे शिक्षक बातें कर रहे थे कि एक लड़के की जिम्मेदारी स्वयं प्रिन्सिपल मैडम ने ली है और उसका पूरा खर्च भी वे ही उठा रही हैं यह सुनकर मै मीनाक्षी मैडम का आजीवन आभारी बन गया था
                        मैंने और शीतल ने खाना खाया और बस में बैठ गए और अब मेरे मन में उठ रहे सभी प्रश्नों का जवाब मुझे मिल चुका था अब टूर में जाने वहाॅ घूमने का आनन्द उठाना चाहता था हम सभी ने बस में बैठकर अंत्याक्षरी खेली और आज मेरी बारी थी शीतल को परेशान करने की मैने मौका देखकर शीतल के बैग से कपडे़ निकालकर उसकी सहेली के बैग में डाल दिए और उसकी सहेली के कपडे़ उसके बैग में डाल दिए थे उधर शाम होते होते हमारी बस हरिद्वार पहुँच चुकी थी हम सब इतने थक चुके थे कि हम सबने अपने अपने कमरे को तलाश लिया और तुरन्त सो गए अगली सुबह एक नई सुबह एक नई जगह घूमना और अभी शीतल के साथ जो होने वाला था उसका फूला हुआ चेहरा और फूली हुई नाक भी देखना बाकी था फिर
                                     *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"सोलहवाॅ भाग

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग
मैंने तैयारी बना ली थी टूर में जाने की पर मुझे अब ये समझ नहीं आ रहा था कि यह कैसे हुआ मेरा नाम टूर जाने वाली लिस्ट में कैसे आया बस मेरे घर तक आई और मैं बस में अपनी सीट पर जाकर बैठ गया हमारे साथ दस शिक्षकों की टीम भी जा रही थी तभी आगे की सीट छोड़कर शीतल मेरे पास बगल वाली सीट पर आ गई और बस सभी बच्चों को लेते हुए हरिद्वार के लिए निकल पडी़
                      शीतल अपने जोक्स के पिटारे को खोले हुए थी सभी साथी खुश थे पर मैं चिंता मे डूबा हुआ था फिर उसने एक ऐसा जोक मारा मैं न चाहते हुए भी हँस पडा़ आप भी सुनना चाहेंगे वह जोक
                    शीतल ने कहा-एक बार तीन आदमी ट्रेन से जा रहे थे उन तीनों ने एक साइड की तीनों बर्थ बुक कराई हुई थीं तीनो रात में जब सो रहे थे तो जो सबसे ऊपर वाली बर्थ में लेटा था उसके पेट में गैस बनी थी वह भी बहुत जोर की वह उठ कर बाहर नहीं जाना चाहता था तो उसने क्या किया कि गैस छोडी़ तेज आवाज के साथ और साथ साथ बोला बादल बहुत तेज गरज रहे हैं
                           इसे सुनते ही जो हँसी छूटी वह रुक नहीं रही थी इस हँसी में मैं थोडी़ देर के लिए अपनी सारी चिंताएँ भूल गया था तभी आगे जाकर हमारी बस एक ढाबे में रुकी और फिर
                                      *प्रकाश*
                       "मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"पन्द्रहवाँ भाग

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"चौदहवाँ भाग
अब हमारे स्कूल से कुछ बच्चों को टूर में हरिद्वार भेजने की तैयारी चल रही थी जिसमें जो बच्चा जाने का इच्छुक हो उसे एक एक फार्म दिया गया और उसमें माता पिता की अनुमति आवश्यक थी मुझे और शीतल को भी एक एक फार्म मिला उसे हमें भरना था और अनुमति लेकर टूर में जाना था
                        पर यहाँ भी मेरा मन गवारा नहीं कर रहा था मैने जैसा फार्म लिया था वैसा ही जमा कर दिया था पर सभी बच्चों ने अपने अपने घर वालों से अनुमति लेकर फार्म जमा किया था उसमें शीतल भी थी वह तो इतनी उतावली थी मानो हरिद्वार नहीं हम सब स्विट्जरलैण्ड जा रहे हों उसकी खुशी का ठिकाना न रहा वह तो बार बार अपने नए कपडो़ं और उनकी पैकिंग के बारे में मुझे करीब बीस बार बता चुकी थी और मुझसे भी बार-बार मेरी तैयारी के बारे में पूँछती मैं भी झूँठ बोल रहा था कि मेरी भी पैकिंग हो गई है
                          आखिर टूर जाने का दिन आ गया और मैने आज बीमारी का बहाना बनाकर छुट्टी मार ली और घर में ही पडा़ रहा मैं जान रहा था कि मैने फार्म में अपने माता पिता की अनुमति नहीं ली है तो मुझे टूर जाने का मौका नहीं मिलेगा और असल बात यह नहीं थी मेरे घर के तंग हालात थे तो मैंने इस बारे में किसी को बताया भी नहीं था
                            मैं घर में लेटा था तभी स्कूल से फोन आया कि प्रकाश चलो तैयार हो जाओ हम तुम्हें लेने आ रहे हैं टूर में चलना है तुम्हारा लिस्ट में नाम है मैं सकते में था मैने जल्दी से अपनी तैयारी पूरी की फिर
                                   *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"चौदहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"चौदहवाँ भाग

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"तेरहवाँ भाग
मैं जैसे ही साइकिल घसीटते हुए बाहर पंक्चर की दुकान पर पहुँचा तो देखा शीतल बाहर खडी़ मेरा इंतजार कर रही थी और वह अपनी साइकिल भी साथ लिए थी उसका चेहरा और नाक गुस्से से फूली हुई थी पर वह बोली कुछ नहीं शान्त खडी़ रहकर मुझे देख रही थी 
                     मैने पंक्चर बनाने वाले दादा से कहा भैया इसका पंक्चर बना दो तो दादा ने टायर ट्यूब खोला और बोला यह मर चुका है अब यह जिन्दा नहीं होगा मै दादा के कहने का मतलब नहीं समझ पाया पर शायद शीतल समझ चुकी थी इसीलिए उसके गुस्सैल चेहरे पर खुशी की लहर साफ दिख रही थी मैने दादा से पूँछा कि आपका मतलब क्या है तो उन्होंने बताया कि ट्यूब खराब हो गया है लाता है किसी ने नुकीली चीज से इसमें इतने छेद बनाए हैं कि मैं इन्हें बन्द नहीं कर पाऊँगा यह सुनते ही मै सब समझ गया था मै भी मन ही मन प्रसन्न हो रहा था कि चलो शीतल का गुस्सा कहीं तो निकल गया
                         तभी शीतल बोल पडी़ अपनी साइकिल को यहीं रहने दो और चलो मेरे साथ कल आना और अपना ट्यूब बदलवा लेना अभी उसका गुस्सा पूरी तरह से शान्त न था मैं चुपचाप उठा और उसकी साइकिल के केरियर में बैठ गया शीतल बोली नवाब बनकर मत बैठो साइकिल चलाओ मैं बैठूँगी पीछे पीछे मैं चुपचाप उठा और साइकिल को लेकर उसे पीछे बिठाया और घर की ओर चल दिया 
                              साइकिल चलाने में मेरा जैसे जैसे पसीना बनकर पानी निकल रहा था वैसे वैसे शीतल का गुस्सा भी पिघल रहा था आधा रास्ता खत्म होने तक तो वह चटर पटर चटर पटर बोलती रही मैं बस उसकी सुनता और मुँह से हाॅ या ना बस इतना ही निकल पाता कि उसकी डाट शुरू हो जाती मेरी तो हालत ऐसी थी कि" मरता क्या न करता "जैसी,पर जब उसका गुस्सा शान्त हुआ तो हमारी फिर से बात होने लगी और हमारी बातें अब स्कूल से बाहर घूमने जाने वाले टूर तक पहुँच चुकी थीं फिर
                                     *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"तेरहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"तेरहवाँ भाग

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग
जैसा कि आप सभी ने देखा पिछले भाग मे मेरी खूब हँसी हुई उससे मुझे बहुत दु:ख पहुँचा पर इससे ज्यादा दु:ख मुझे तब पहुँचा जब शीतल ने मेरी इतनी अच्छी दोस्त होकर भी मुझे इस बात से अंजान रखा मैं फिर से बिल्कुल शान्त और गुमसुम सा रहने लगा और शीतल से कटा कटा सा रहता पर उधर वो शीतल थी यह मैं भी जानता था कि वह हार मानने वालों मे से नहीं थी इधर मैने भी ठान रखा था कि मैं अब बात नहीं करूँगा शीतल से कई दिन बीत गए धीरे-धीरे शीतल ने भी मुझसे बात करना कम कर दिया और ठीक भी था मैं जैसा चाह रहा था वैसा ही हो रहा था
                    धीरे-धीरे मेरा गुस्सा शान्त हो रहा था पर इस बीच शीतल में भी बदलाव आने लगा था वह इतना शान्त कभी नहीं थी जितना कि कुछ दिनों से रहने लगी थी वह उसने मजाक करना लगभग छोड़ दिया था उसके मजाक अब धीरे -धीरे सीमित होते जा रहे थे यूँ समझो वह बहुत कुछ मन के तराजू में तोलने लगी थी और जो किसी को जरा सा भी ठेस पहुँचाए ऐसे मजाक करना तो वह बन्द कर चुकी थी इधर मैं उसे ऐसे उदास कभी नहीं देखता था पर देखना पड़ रहा था
                     एक दिन यूँ ही मन में उसका ख्याल फिर आने लगा मैं उसको यूँ गुमसुम नहीं देख सकता था और गलती मेरी ही थी मैं उसको समझ नहीं सका अब मुझे पछतावा हो रहा था उसका स्वभाव ऐसा कभी नहीं था 
                     अगले दिन जब मैं स्कूल पहुँचा तो मन में ये सोंच कर गया था कि उससे आज बात करूँगा और उस दिन के लिए माफी माँगूगा मैने अपनी साइकिल खडी़ की और क्लास में जाकर बैठ गया और उसके आने का इन्तजार करने लगा
                       उधर शीतल से भी रहा न जा रहा था मेरा उससे बात न करना उसे इग्नोर करना उसका पारा बढा़ रहा था उसने मेरे दोस्तों का सहारा लिया और मेरी साइकिल के टायर में परकार की सहायता से इतने चित्र बनवा डाले कि अब वह न बनवाने लायक थी और न चलाने लायक और यह काण्ड करके वह चुपचाप बैठ गई
                        आज मैने कई बार उससे बात करने की कोशिश की पर उत्तर हाॅ या ना में मिल रहे थे वह मुझे नजरंदाज करने की कोशिश कर रही थी इस तरह से मेरी सारी कोशिशें बेकार गईं शाम को छुट्टी हुई तो मैं अपनी साइकिल के पास गया तो देखा पिछला टायर पंक्चर था मेरे दिमाग में आइडिया आया कि चलकर इसे बाहर पंक्चर की दुकान से बनवा लेता हूँ फिर क्या मैं अपनी साइकिल को घसीटता हुआ बाहर पंक्चर की दुकान पर पहुँचता हूँ वहाँ शीतल अपनी साइकिल लिए मेरा इंतजार कर रही थी फिर
                                 *प्रकाश* "मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"बारहवाँ भाग

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Prakash Shukla

"मैं और मेरी तन्हाई"ग्यारहवाँ भाग
जब चारों सभी की निगाहें मेरे ऊपर टिकीं थी और सब मेरे ऊपर हँस रहे थे तो भय तो थोडा़ कम हो गया पर जब शीतल ने अपने हाथ नीचे किए और वह भी इस घटना पर मुस्कुराने लगी तो मेरे मन के अन्दर ग्लानि का जन्म हुआ मैं मारे शर्म के गडा़ जा रहा था परन्तु मुझे जानना था कि सब मुझ पर हँस क्यों रहे हैं क्यों मुझे टारगेट किया जा रहा है तभी पीछे से एक शिक्षक ने सवाल दागा क्या नाम है बेटा तुम्हारा मेरा उत्तर था "प्रकाश " उधर मैडम बोल पडी़ं शीतल यहाँ आओ और मुझसे पूँछा तुम इसे क्यूँ बचाने की कोशिश कर रहे थे तभी पीछे से एक और शिक्षक की आवाज आई अरे दोस्ती निभा रहे होंगे तो पीछे से तीसरे शिक्षक भी बोल पडे़ नहीं नहीं नासमझी कर गए होंगे बच्चे तभी एक और शिक्षक बीच में बोले अरे मीनाक्षी मैडम की लड़की ऐसा नहीं कर सकती ये सब शरारत किसी और बच्चे की होगी यह सब सुनकर यह तो पता चला कि शीतल मीनाक्षी मैडम की लड़की है पर मीनाक्षी मैडम कौन हैं तभी रश्मि मैम ने हमें माॅफ करवाकर कहा अब शरारत मत करना और जाओ अपनी क्लास में बैठो हम छूट गए थे पर मेरे मन मे बहुत हलचल सी थी कि मीनाक्षी मैडम कौन हैं और शीतल मुझपर क्यों हँस रही थी इन सभी प्रश्नों का जवाब मुझे तुरन्त चाहिए था
              मैने क्लास की ओर जाते हुए मीनाक्षी से सवाल किया कि मीनाक्षी मैम कौन हैं मैं उन्हें नहीं पहचानता तो शीतल ने मुझे बताया जो प्रिन्सिपल मैम हैं उन्हीं का नाम है मीनाक्षी ,मेरे दिमाग के घोडे़ दौड़ने लगे जो कुछ अभी तक धुँधला था वह सब मेरी आँखों के सामने साफ हो गया था शीतल प्रिन्सिपल मैडम की बेटी थी और उसको सजा उसकी माॅ दे रही थी और मैं फालतू में माॅ बेटी के बीच में कूद गया था जिसके कारण मैं पूरे स्टाॅफ रूम के सामने हँसी का पात्र बनकर रह गया था
                 मुझे लगा कि शीतल ने ये बात मुझसे अभी तक छिपाए हुई थी और मैने उससे फिर कोई सवाल नहीं पूँछा और चुपचाप जाकर क्लास में बैठ गया शीतल ने मुझसे कई बार बात करने की कोशिश की पर मेरा जवाब हाॅ या ना में होने लगा मैं उसे नजरंदाज़ करने लगा और वह थी कि बार बार मुझे अपनी सफाई देने में लगी थी फिर "मैं और मेरी तन्हाई"ग्यारहवाँ भाग

"मैं और मेरी तन्हाई"ग्यारहवाँ भाग

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