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dhruvigoyal3911
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dhruvi goyal

Manzil v mil jaegi ek din.... filhaal, iss khubsurat Safar Ko jeene ka shuk h....😊

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dhruvi goyal

एक पल में ख्वाबों को पर मिलते हैं, 
तो दूजे पल 'तानों की नोक' से कटने का डर होता है। 
मेरे ज़हन मे यह द्वंद हर रोज़ होता है। 

कहते हैं सुनो तो ख़ामोशी भी चीखती हैं, 
तो उन्ही चीखों से मैंने पूछा है... 
क्या तात्पर्य है इस जीवन का ? 
मेरे मन मे यह प्रश्न हर रोज़ ही उठता है। 

सुना है ख्वाब देखने का अधिकार खुदा देता है, 
तो उसी खुदा से मैंने पूछा है... 
क्या 'ख्वाब हक़ीक़त' बनने की इजाज़त वो देता है? 
मेरा मन उसी खुदा को खुद में हर रोज़ ही खोजता है। 
 
कोई हौसला देता है, तो कोई बिखेरना चाहता है। 
क्यों बिखरे ख्वाबों का ख्याल भी मेरे मन को चुभता है? 
क्यों मेरे ज़हन में यह द्वंद हर रोज़ ही होता है? 

                                       -ध्रुवी -
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dhruvi goyal

दर्द जब अश्क़ बना तो विष हुआ, बह जाने देते 
सुख में सुकून की चाहत, कभी तो थम जाने देते।

कोहिनूर का परिचय नहीं दमक, 
उसे अपना सामर्थ्य तो दिखाने देते।
जिस पत्थर से टूटे लाखों 'शीशा-हीरे', 
कोहिनूर के बल पे चट्टाने बिखरते तो देखते।
 
ज़रूरत नहीं सच को सहारे की, 
तुम झूठ का आशियाना तो ना बनाते। 
आत्मसम्मान तुम्हारा भी था कभी दाँव पर, 
 दुनिया मे आने का कुछ तो हक़ अदा करते। 

नज़र तो सबकी अपनी थी, 
हम नज़ारे किसी को क्या दिखाते। 
वो तो खुद से खुद के ज़हन मे लगी आग थी, 
जिसे तुम खुद ही बढ़ाते।
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dhruvi goyal

क्या मुनासिब नहीं तेरा मुझसे किनारा कर लेना, 
या सही है साथ होकर साथ का ना होना। 

सूने ख्वाब अच्छे नहीं लगते क्या, 
इन 'सजल आँखों' में 
या ज़रूरी है 'मतलबी फरेब' का इनके साथ होना। 

सपने देखे हैं तो इन्हे हांसिल कर लेना 
सही नहीं क्या, 
या ज़रूरी है तैराकों को मल्लाहों का इंतज़ार करते रहना। 

क्या गलत नहीं 
कुछ पलों के सुकून की ख़ातिर, उम्र भर सन्नाटा कर लेना 
हाँ, मुनासिब ही है तेरा मुझसे किनारा कर लेना। Kishan Singh Tomar Kapil Tyagi Sanjay Singh sengar aparna tomar

Kishan Singh Tomar Kapil Tyagi Sanjay Singh sengar aparna tomar

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dhruvi goyal

माँ 
ज़िम्मेदारी नही, रहमत होती है। 
जिस घर मे हो, सदा बरकत होती है। 
अपने ज़हन से उतार भी दे कोई बुज़दिल 
तो क्या, 
उसकी तो फितरत में मोहब्बत होती है। #माँ
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dhruvi goyal

अरमान है, 
ज़िन्दगी अपनी 'कटी-पतंग' कर दूँ। 
मेरे सपनों की उड़ान मैं, 
हद से बेहद कर दूँ। 


                      -ध्रुवी-

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dhruvi goyal

रिश्ते अपनों के बिना व्यर्थ हैं, 
और ज़िन्दगी सपनों के....। 


                           -ध्रुवी-

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dhruvi goyal

दिल उस मिट्टी की गुल्लक तरह है, 
जिसके अपने कुछ उसूल होते हैं।  

दरवाजा सिर्फ दाखिल होने के लिए होता है, 
'अपने हों या सिक्के ' गर बाहर आना है, 
तो इसे टूटना ही पड़ता है। 


                                     - ध्रुवी -

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dhruvi goyal

अल्फ़ाज़ों के तीर मेरे तरकश में भी कम नहीं,
 ये तो मेरे आदाब हैं जो में खामोश हूँ ।

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dhruvi goyal

यूँ बार-बार तुझे खोना मुझे गवारा नहीं,
ऐ ज़िंदगी...
इतनी ही नफरत है तो एक बार मे किनारा कर ले।

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dhruvi goyal

महलों की ख्वाहिश न थी मुझे,
कुछ टूटे पत्थरों से तराशा आशियाना काफी था ।

                            ##D
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