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najuk2612597075822
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Najuk Gadhvi

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Najuk Gadhvi

इश्कमे दर्द की मज़ा पूछिए
गुलाम दिलकी दास्तां पूंछिए 

पूंछिए हमसे की हस क्यू रहे है
इस पागलपन की दवा पूंछिए 

ये शाकी,ये शराब और ये सवाब
हमसे जन्नत की सलाह पूंछिए

पूछिए हमसे जीवनभर की पूंजी
हमसे महोबत की बलाह पूंछीए 

पूंछिए हमसे रातको सोते नहीं
मजबूरी की इल्तज़ा पूंछिए 

भरी अदालत शख्स बदल गया
'अशीर' इस कैद की सजा पूंछिए

©Najuk Gadhvi
  #City
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Najuk Gadhvi

कागज़ के पन्ने भी मुझसे बेवफाई कर रहे थे
 मेरे गमों को समेटे हुऐ बजार में बिक रहे थे
 
एक वक्त था जब हम शरीफ़ हुआ करते थे
एक वक्त है जब हम इल्ज़ामोसे गिरे हुए है

सुबह हुई और आंख खुली तो ख्याल आया
अब बहुत हुआ कल शाम से जो पी रहे है

उसके बगैर चैन नहीं, सांस नहीं ले पा रहे थे
हम अच्छे भले इश्कमे बीमार पड रहे थे

हम अपना खून निकालके गिलासमे पी रहे थे
सारी दुनियाके नशे जब कम पड़ रहे थे

जान नहीं पा रहे है, आसपास जो हो रहा है
तेरे साथ होते हुए भी हम लाचार हो रहे है

'नाजुक' दिन बिक चुके, रातके सौदे चल रहे
मतलब हम महोब्बतमें लिलाम हो रहे है

©Najuk Gadhvi
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Najuk Gadhvi

मुझे पत्थर से प्यार हो गया
में ठोकरों से लाचार हो गया

किया था किसी महबूबका इलाज
वो हकीम मेरा यार हो गया

कभी कभी मायखानेमें जानेका
चस्का, अब लगातार हो गया

महोबत अब गुनाह लगती है
और ये गुनाह बार बार हो गया

मेरे किस्से लिखता रहा रातभर
वो शायर सुबह बीमार हो गया

टूट ही जाता वो खिड़किका सीसा
खेर शाम तक तेरा दीदार हो गया

रोक न सका एक बूंद आंसू
'नाजुक' तू बेकार हो गया

©Najuk Gadhvi #Time
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Najuk Gadhvi

कही सालो से बंद पड़े उस कमरे को मैने आज खोला है।
जिसमे कुछ आखरी मुलाकात की निशानियां है।
बिखरे हुए कुछ किताब के पन्ने,
वो पुरानी पेन, वो कागज़ जिसपे अधूरे शेर ओर अधूरी गज़ले लिखी हुई है।
वो गुलाब का फूल जिसकी सिर्फ डंडी बची हुई है।
उसके पास कुछ पनो पर श्याही बिखरी पड़ी है।
ओर कुछ आखरी मुलाकात की निशानिया पड़ी है।

पास वाली खिड़की जैसे ही मेने खोली, सूरज की कुछ किरणे बिस्तर पर पड़ी।
सफ़ेद कवर उस बिस्तर पर लपेटा  हुआ था मेने उसको हटाया
ओर तकिये के नीचे वो नीले रंग की परफ्यूम की बोतल पड़ी है।
जिसमे एक लंबा सा बाल अटका हुआ है वो कंगी भी पड़ी है।
ओर कुछ आखरी मुलाकात की निशानिया पड़ी है।

टूटी हुई चूड़ियों के कुछ टुकड़े पड़े है, जिसपे धुल की धीमी सी परत जमी हुई है
उस धुलको अगर हटा दिया जाए तो वही कुछ साल बाद वाली ही चमक है उसमें
काँचक के दो ग्लास और आधी भरी वाइन की बोतल सीसे वाली अलमारी में से दिख रहे है
उन तकियोंसे शायद किसी होठो को चूमने की गलती हुई है।
ओर कुछ आखरी मुलाकात की निशानिया पड़ी है।

©Najuk Gadhvi #Love
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Najuk Gadhvi

સજણ, છડે ડિયા હનકે આઉ હનજ ઘડી
પણ હન મદિરા જી આય મહેક તો જેડી

©Najuk Gadhvi #Goodevening
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Najuk Gadhvi

शाम के वक्त बातोंका हिसाब चाहिए
महबूबा नही, उस वक्त दोस्त चाइए

©Najuk Gadhvi #evening
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Najuk Gadhvi

कोई इलाज ही नही है उसकी नाराज़गी का
लगता है उसका रुठ जाना मेरी मौत तक चलेगा

©Najuk Gadhvi #soulmate
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Najuk Gadhvi

बारिसमें भिगनेसे तो रहा, मजा भी नही ले सकता
गले की बीमारी है शराब भी नही पी सकता

©Najuk Gadhvi #lonely
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Najuk Gadhvi

उस गांवकी बस्ती सुखी पड़ गई है
वो नदी समुद्र में जाके मिल गई है

बेपनाह वास्ते थे उसकी निग़ाहों से
उसे मुजे ना देखनेकी लत लग गई है

आज मुजे देख कर काँप रहा है वो
लगता है सर्दमे बारिस गिर गई है

महोबतमें ना मंजूरी मिली है,समजो
वो लड़की मरते-मरते बच गई है

तुम्हे मेरी हर एक चिजसे नफरत थी
फिर कैसे शराबकी आदत बन गई है

'नाजुक' ना पूँछ हाल मयखानों का
अब शाकी मेरे घरमे रहने लग गई है

©Najuk Gadhvi
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Najuk Gadhvi

आशियाना क्या छोड़ा एक इंसान ने
की बे घर हो गया शहर सारा

©Najuk Gadhvi
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