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aasiyaparveenpar7700
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Subhani Sarwan

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Subhani Sarwan

baat karni ati nahi hai

baat karni ati nahi hai #Love

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Subhani Sarwan

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Subhani Sarwan

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Subhani Sarwan

रिश्ते में दूरियां कब आती है  इस मतलबी दुनिया में कुछ अपने अनजाने से,
मतलब पूरा होते ही दूर भागते हैं ये निभाने से।

कहीं रिश्तों की डोर टूट गई, कहीं गांठ पड़ गई,
समझौता होता है अगर समझे कोई समझाने से।

यारों ग़म तो इनको दूसरों की ख़ुशी से होता है,
ऐसे रिश्तेदार ही बाज़ नहीं आते अब सताने से।

अपने बलबूते करो जो भी करना है ज़िन्दगी में,
कोई फ़ायदा नहीं अब किसी से आस लगाने से।

अब तो ‘मिहिर’ ख़ुदगर्ज़ी का आलम कुछ ऐसा है,
फ़र्क नहीं पड़ता किसी को किसी के मर जाने से।

© Subhani Sarwan #HumTum
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Subhani Sarwan

तेज़ी से रंग बदलती इस दुनिया मेंतेज़ी से रंग बदलती इस दुनिया में
वो प्यार के रंग सजाना भूल गई,
वो प्रीत निभाना भूल गई
सुबह सवेरे संवर के हाथों में चाय की प्याली थामे आती थी जो,
वो अपनी सांसों से मेरी सुबह महकाना भूल गई
वो चुपके से आकर अपने गीले बालों को मुझ पर झटकाना भूल गई
वो प्रीत निभाना भूल गई
जिस मुख से झड़ते थे कभी कोमल शब्दों के फूल
उस मुख मे खंजर सी जुबा लिए फिरती है अब तो
जिनसे घायल रहता था यह दिल, कटिले नयनों के वो,
तीर चलाना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गई
आधुनिकता की दौड़ में गायब हो गए हैं रीति - रिवाज,
माथे से बिंदिया गायब है, वो मांग में सिंदूर लगाना भूल गई
अब तो वो सोलह श्रृंगार से खुद को सजाना भूल गई
वो मुझे रिझाना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गई
जिन छोटी नौंक - झौंकों से मिलती थी एक खट्टी - मीठी सी खुशी
वो अपने अल्हड़ स्वभाव से अपना प्यार जताना भूल गई
वो मुझे सताना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गईकहीं गुमशुदा हैं वो एकजुट रिश्तों के खूबसूरत बंधन
इन्हें झंझट मान वो पीढ़ियों को बढ़ाना भूल गई
वो रिश्ते बचाना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गई
क्या दिन थे वो, जब हलवे की सौंधी खुशबू से महक उठता था घर आंगन
वो बाहर के पकवानों से मुग्ध होकर
घर की पुरानी खीर बनना भूल गई
वो मुझे लुभाना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गई
होता नहीं अब वो रूसना - रुसाना,
अब तो बस खटकते हैं बर्तन,
तू अपने घर मैं अपने घर की होड़ में वो रूठना - मनाना भूल गई
अपनी हर एक हार में वो मुझे जीत बनाना भूल गई
वो प्रीत निभाना भूल गई
अब तो नींद खुलती है स्वचलित दूरभाष यंत्र की आवाज से
घर के मंदिर की घंटी की वो टनटनाहट नहीं सुनाई पड़ती
घर मंदिर जिससे रोशन हो, ढके सिर से वो शाम की ज्योत जगाना भूल गई
वो प्रीत निभाना भूल गई
कभी दूर होते थे पल भर भी तो वो मचल उठती थी एक झलक को
अब तो कोसों दूर रहकर भी वो याद में लाना भूल गई
वो विरह के नीर बहाना भूल गई, वो प्रीत निभाना भूल गई
सर्दियों की धूप में हाथों में ऊन लिए कुछ गुनगुनाती रहती थी जो
गाजर मूली के आचार बनाती, छत पर पापड़ सुखती थी जो
वो बसंत ऋतु में चरखी को थामे, चूड़ियों की खनक सुनाना भूल गई
वो दिल को छूने वाले मधुर गीत गुनगुनाना भूल गई
वो प्रीत निभाना भूल गई
मर्यादा, मान सम्मान की जीती जागती मूरत जो चौखट के आड़, गहने सी रहती थी
वो लाज शर्म में खुद को लुकाना भूल गई
रंगीन दमकती दुनिया में वो खुद ही मेरी आंखों में चमकना भूल गई
वो प्रीत निभाना भूल गई

© Subhani Sarwan Good morning

#Love

Good morning #Love

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Subhani Sarwan

Kamal Ki Baat hai 

Emotional Log Rishtey Sambhal Te Hai 
Aur Practical Log Rishtey Ka Fayada Uta Te Hai 
Aur professional Log Fayde Dekhar Rishtaa Bana Te Hai

© Subhani Sarwan #NationalSimplicityDay
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Subhani Sarwan

नारी प्रकृति का सशक्त हस्ताक्षर होती है,
वरदान रूप पृथ्वी पर आ जाती हैं
जिस घर मे रहे,सौभाग्य दे जाती हैं
आशीष दे  दूसरे घर भेजी जाती हैं
दोनों घरो में वो पराई मानी जाती हैं
तब नारी कमजोर हो जाती है

मासूम सी कोमल होती हैं
अपनी जगह खुद बनाती है
किसी के बहकावे में नहीं आती हैं
जब अपना कोई डरा देता है
तब नारी कमजोर हो जाती है

अपने घर को स्वर्ग बनाती हैं
सारे जोखिम उठा वो जाती हैं
मुसीबतों से नहीं घबराती हैं
अकेली सब पे भारी पड़ जाती हैं
जब अपने ही समाज की दुहाई देते हैं
तब नारी कमजोर हो जाती है

है ममता की मूरत वो
हॄदय में प्रेम बसाती है
दुख देख दुसरो का
आंखे बरबस भर भर आती हैं
दुनिया इसको ढोंग कहे
तब नारी कमजोर हो जाती है

जब अपने ही समझ न पाते है
उसकी बेबाकता को बेशर्मी बतलाते है
अपनो की ही फिकर करे,
वो ही उसको बदनाम करे,
तब नारी कमजोर हो जाती है।

जब वो धन से तोली जाती हैं
खूबसुरती,लावण्य को ही
उसकी चाहत  बताया जाता हैं
त्याग, समर्पण को नगण्य माना जाता हैं
तब नारी कमजोर हो जाती है

जब मशीन सी जान उसको निचोड़ा जाता है
सन्तान उत्पत्ति मात्र साघन माना जाता हैं
हवस की जब बलि चढ़ाई जाती है
उसकी सुनवाई भी नही हो पाती हैं
तब नारी कमजोर हो जाती है

प्रीत के वृक्ष पर वो श्रद्धा के फुल खिलाती हैं
आँगन की तुलसी पर आत्मा का वैभव लुटाती हैं
अपना सर्वस्व लूटा कर वो खाली हाथ हो जाती हैं
तब भी अपनोको खुश देखकर
खुश वो हो जाती हैं
जब पति या सन्तान उसको नही  समझ पाते हैं
तब नारी कमजोर हो जाती है।

© Subhani Sarwan #NationalSimplicityDay
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Subhani Sarwan

शहर मेरा आज फिर से चल
 पड़ा फिर से चल पड़ा हैबहुत 
दिनों तक ये भूख प्यासे लड़ा है ।।

हारा नहीं मगर टूटा नहीं मगर टूटा नहीं मगर ।
हौसला इसका हर पहाड़ से बड़ा है ।।
शहर मेरा आज फिर से चल पड़ा है ।।

बहुत दिनों तक सिमटा ये चार दिवारी में ।
कितनी रातें काटी बेबसी ओर लाचारी में ।।
फिर आज न ई मुस्कराहट के साथ चल पड़ा है
बहुत दिनों तक ये भूख प्यास से लड़ा है ।।

अब ना इससे कोई नादानी होगी ।
ना लापरवाही ना कोई ना फरमानी होगी ।।
हर जंग जीतेगा ये इस बात पर अड़ा है ।।
शहर मेरा आज फिर से चल पड़ा है

© Subhani Sarwan Sangeeta Yadav 
#Trees  Lucky Dhart Asma khan warsi Farhan Shaikh ✔️ Vandana Mishra  Praveen Jain "पल्लव"

Sangeeta Yadav #Trees Lucky Dhart Asma khan warsi Farhan Shaikh ✔️ Vandana Mishra Praveen Jain "पल्लव"

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