तुम बिन जीना ऐसे,जैसे हर पल सब कुछ खोना है,
लुटा के सारी खुशियाँ अपनी अब जैसे बस रोना है,
ख़्वाब तो मेरे दो ही हैं बस, संग जीना या मरना है,
जुल्फ घनी घनघोर घटा के छांव में ही अब सोना है. #Pehlealfaaz
आशीष
जिक्र करूँ या रहने दूँ, मैं तो उसे इक राज कहता हूं,
यूँ तो कभी कहा नहीं मैंने तुमसे मगर आज कहता हूं,
मुझे उपमा का 'उ' भी नहीं आता है लेकिन,
अपनीं महबूबा को मैं ताज कहता हूं,
आशीष
किसी की, किसी के बिना जिंदगी अधूरी नहीं होती,
मोहब्बत मिल जाय फिर भी कहानी पूरी नहीं होती
सुना है शहर-ए-इश्क़ में किसी की तरजीह नहीं होती,
होता गर ऐसा तो मीरा भी कान्हा की दिवानी नहीं होती.
मोहब्बत के खातिर दुनियां की बदनामी सहनीं पड़ती है,
वर्ना यूँ ही कोई नर्तकी बाजीराव की मस्तानी नहीं होती.
आशीष
ज़ब से तुमने छत पर आना छोड़ दिया,
कबूतरों ने भी मुस्कुराना छोड़ दिया,
तुम्हें डर था कि कहीं बिगड़ न जाऊं मैं,
तो देखो मैंने मयखाने जाना छोड़ दिया.
आशीष
आसमां से रूठ कर, वो तारा किधर गया होगा,
अरे देखो यहीं कहीं पर टूटकर बिखर गया होगा,
वर्षो पहले उसकी तुलना मैंने चाँद से की थी...
यार अब तो वो और भी ज्यादा निखर गया होगा.