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ashish7977780064119
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आशीष

युवा शायर हिंदी कवि

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आशीष

jb se tumne chat pr aana chhod diya

jb se tumne chat pr aana chhod diya #nojotovideo

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आशीष

किसी का दिल ही क्यूँ न टूटे क्या फर्क पड़ता है, 
ये हुस्न का बाजार है हश्र से क्या फर्क पड़ता है, 
मैंने जिसके हिज्र में बिता दी है जवानी अपनी, 
गर वो मिल जाय तो इस सब्र से क्या फर्क पड़ता है. 
अक्सर तन्हाई में मेरे साथ ही रोता है ये आसमां, 
अब कोई इसे बरसात ही समझे तो क्या फर्क पड़ता है.

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आशीष

किसी का दिल ही क्यूँ न टूटे क्या फर्क पड़ता है, 
ये हुस्न का बाजार है हश्र से क्या फर्क पड़ता है, 
मैंने जिसके हिज्र में बिता दी है जवानी अपनी, 
गर वो मिल जाय तो इस सब्र से क्या फर्क पड़ता है. 
अक्सर तन्हाई में मेरे साथ ही रोता है ये बादल, 
अब कोई इसे बरसात ही समझे तो क्या फर्क पड़ता है.

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आशीष

#Pehlealfaaz तुम बिन जीना ऐसे,जैसे हर पल सब कुछ खोना है, 
लुटा के सारी खुशियाँ अपनी अब जैसे बस रोना है, 
ख़्वाब तो मेरे दो ही हैं बस, संग जीना या मरना है, 
जुल्फ घनी घनघोर घटा के छांव में ही अब सोना है. तुम बिन जीना ऐसे,जैसे हर पल सब कुछ खोना है, 
लुटा के सारी खुशियाँ अपनी अब जैसे बस रोना है, 
ख़्वाब तो मेरे दो ही हैं बस, संग जीना या मरना है, 
जुल्फ घनी घनघोर घटा के छांव में ही अब सोना है.

तुम बिन जीना ऐसे,जैसे हर पल सब कुछ खोना है, लुटा के सारी खुशियाँ अपनी अब जैसे बस रोना है, ख़्वाब तो मेरे दो ही हैं बस, संग जीना या मरना है, जुल्फ घनी घनघोर घटा के छांव में ही अब सोना है. #Pehlealfaaz

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आशीष

जिक्र करूँ या रहने दूँ, मैं तो उसे इक राज कहता हूं, 
यूँ तो कभी कहा नहीं मैंने तुमसे मगर आज कहता हूं, 
मुझे उपमा का 'उ' भी नहीं आता है लेकिन, 
  अपनीं  महबूबा  को  मैं  ताज  कहता  हूं, जिक्र करूँ या रहने दूँ, मैं तो उसे इक राज कहता हूं, 
यूँ तो कभी कहा नहीं मैंने तुमसे मगर आज कहता हूं, 
मुझे उपमा का 'उ' भी नहीं आता है लेकिन, 
  अपनीं  महबूबा  को  मैं  ताज  कहता  हूं,

जिक्र करूँ या रहने दूँ, मैं तो उसे इक राज कहता हूं, यूँ तो कभी कहा नहीं मैंने तुमसे मगर आज कहता हूं, मुझे उपमा का 'उ' भी नहीं आता है लेकिन, अपनीं महबूबा को मैं ताज कहता हूं,

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आशीष

किसी की, किसी के बिना जिंदगी अधूरी नहीं होती, 
मोहब्बत मिल जाय फिर भी कहानी पूरी नहीं होती
सुना है शहर-ए-इश्क़ में किसी की तरजीह नहीं होती, 
होता गर ऐसा तो मीरा भी कान्हा की दीवानी नहीं होती, 
मोहब्बत के खातिर दुनियां की बदनामी सहनीं पड़ती है, 
वर्ना यूँ ही कोई नर्तकी बाजीराव की मस्तानी नहीं होती. किसी की, किसी के बिना जिंदगी अधूरी नहीं होती, 
मोहब्बत मिल जाय फिर भी कहानी पूरी नहीं होती
सुना है शहर-ए-इश्क़ में किसी की तरजीह नहीं होती, 
होता गर ऐसा तो मीरा भी कान्हा की दिवानी नहीं होती. 
मोहब्बत के खातिर दुनियां की बदनामी सहनीं पड़ती है, 
वर्ना यूँ ही कोई नर्तकी बाजीराव की मस्तानी नहीं होती.

किसी की, किसी के बिना जिंदगी अधूरी नहीं होती, मोहब्बत मिल जाय फिर भी कहानी पूरी नहीं होती सुना है शहर-ए-इश्क़ में किसी की तरजीह नहीं होती, होता गर ऐसा तो मीरा भी कान्हा की दिवानी नहीं होती. मोहब्बत के खातिर दुनियां की बदनामी सहनीं पड़ती है, वर्ना यूँ ही कोई नर्तकी बाजीराव की मस्तानी नहीं होती.

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आशीष

Trust me ज़ब से तुमने छत पर आना छोड़ दिया, 
कबूतरों ने भी मुस्कुराना छोड़ दिया, 
तुम्हें डर था कि कहीं बिगड़ न जाऊं मैं, 
 देखो मैंने भी मयखाने जाना छोड़ दिया. ज़ब से तुमने छत पर आना छोड़ दिया, 
कबूतरों ने भी मुस्कुराना छोड़ दिया, 
तुम्हें डर था कि कहीं बिगड़ न जाऊं मैं, 
तो देखो मैंने मयखाने जाना छोड़ दिया.

ज़ब से तुमने छत पर आना छोड़ दिया, कबूतरों ने भी मुस्कुराना छोड़ दिया, तुम्हें डर था कि कहीं बिगड़ न जाऊं मैं, तो देखो मैंने मयखाने जाना छोड़ दिया.

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आशीष

आसमां से रूठ कर, वो तारा किधर गया होगा, 
अरे देखो यहीं कहीं पर टूटकर बिखर गया होगा, 
वर्षो पहले उसकी तुलना मैंने चाँद से की थी...
यार अब तो वो और भी ज्यादा निखर गया होगा. आसमां से रूठ कर, वो तारा किधर गया होगा, 
अरे देखो यहीं कहीं पर टूटकर बिखर गया होगा, 
वर्षो पहले उसकी तुलना मैंने चाँद से की थी...
यार अब तो वो और भी ज्यादा निखर गया होगा.

आसमां से रूठ कर, वो तारा किधर गया होगा, अरे देखो यहीं कहीं पर टूटकर बिखर गया होगा, वर्षो पहले उसकी तुलना मैंने चाँद से की थी... यार अब तो वो और भी ज्यादा निखर गया होगा.

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आशीष

नशा शराब में थोड़ी होता है,
हम पी रहे हैं ये ख़याल ही काफी होता है.

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आशीष

कुछ रिश्ते थे,जो छूट गये,कुछ वादे थे जो टूट गये, 
वजह बची ही नहीं कुछ जीने की,जो अपने थे,वो रूठ गये.

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