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riverofthoughts3647
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river_of_thoughts

मुझसे विद्रोह करती हैं मेरी ही परछाइयां... our facebook page https://www.facebook.com/gyaz786/

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#Poetry #Gulzar #Feminism
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river_of_thoughts

वे जब खेतों में 
फ़सलों को रोपती-काटती हुई 
गाती हैं गीत 
भूल जाती हैं ज़िंदगी के दर्द 
ऐसा कहा गया है 
किसने कहे हैं उनके परिचय में 
इतने बड़े-बड़े झूठ? 
किसने? 
निश्चय ही वह हमारी जमात का 
खाया-पीया आदमी होगा... 
सच्चाई को धुँध में लपेटता 
एक निर्लज्ज सौदागर 

ज़रूर वह शब्दों से धोखा करता हुआ 
कोई कवि होगा
मस्तिष्क से अपाहिज!
#आदिवासी_लड़कियां
#निर्मला_पुतुल

©river_of_thoughts
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सच ही, मैं देखता हूं 
तुम्हारे बिना साथ बीते 
लम्हों का हिसाब भी तो
सिमट आता है इन्हीं चंद उंगलियों में
पर उन लम्हों में सिमटा एहसास
मेरे मन के रेतीले मैदान पर
अक्सरहां उठा करता है लहरों की तरह
और
इनके पीछे छूटी निशानों को
समेटने की कवायद में  
हथेलियां मेरी
करती हासिल...

फक़त ....रेत ही रेत!!

                     -  ' मानस प्रत्यय '

©river_of_thoughts
  #mohabbat
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river_of_thoughts

जैसे एक बहुत लम्बी सज़ा काट कर
लौटता है कोई निरपराध क़ैदी
कोई आदमी
अस्पताल में
बहुत लम्बी बेहोशी के बाद
एक बार आँखें खोलकर लौट जाता है
अपने अन्धकार मॆं जिस तरह।

......
मैं लौट जाऊँगा
जैसे समस्त महाकाव्य, समूचा संगीत, सभी भाषाएँ और
सारी कविताएँ लौट जाती हैं एक दिन ब्रह्माण्ड में वापस


उदय प्रकाश

©river_of_thoughts
  #Poetry

Poetry #Shayari

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river_of_thoughts

मैं
प्रतिबन्धों की चौखट पर खड़ी
समय की दहलीज
लांघ कर
परम्परा के किवाड़ों से
निषेध की कीलें
उखाड़ रही थी।

#रमणिका_गुप्ता

©river_of_thoughts
  #कविता
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river_of_thoughts

धरती के इस छोर से उस छोर तक
मुट्ठी -भर सवाल लिये मैं
दौड़ती-हांफती-भागती
तलाश रही हूं सदियों से निरन्तर
अपनी ज़मीन, अपना घर
अपने होने का अर्थ

#निर्मला_पुतुल

©river_of_thoughts
  #Poetry
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