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haseebanwer5796
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Haseeb Anwer

Engineer | Writer | Poet | shayar | Lyricist

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Haseeb Anwer

#inspirational
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Haseeb Anwer

#LOVEGUITAR
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Haseeb Anwer

यू चाँद की तरह तुम्हारी भी दीद हो जाए 
तुम पास आ जाओ तो मेरी भी ईद हो जाए। #eidmubarak
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Haseeb Anwer

चाँद का कसूर उसे थोड़ा नीचे उतरना चाहिए था 
बैठ कर इश्क़ की बातें करना चाहिए था । 
मैं बुलाऊं अगर उसे अपने छत पर 
उसे इस बात पर मुकरना चाहिए था । 
                             ~ Haseeb #chaand
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Haseeb Anwer

रोज़े सारे रखें है तेरे बग़ैर ही हम तो 
हो सके तो तू ईद मनाने के लिए आ ।

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Haseeb Anwer

ईद का मतलब है  रोज़े सारे रखें है तेरे बग़ैर ही हम तो 
हो सके तो तू ईद मनाने के लिए आ । 

                ~Haseeb Anwer #Eid
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Haseeb Anwer

#LOVEGUITAR
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Haseeb Anwer

हा मैं चलने को मजबूर हु 
क्योंकि मैं मजदूर हु ।
घर छोड़ कर गए थे पेट काटने को 
वापस जा रहा हु दुःख दर्द बाटने को 
चलते चलते पैर में छाले भी आ गए 
खाने को कुछ नही लाले भी आ गए 
रात को ही निकला था बोड़ियाँ बिस्तर लेकर 
चलते चलते पैदल उजाले भी आ गए । 
मुझें घर तो पहुचा दो साहब मैं बेकसूर हु 
हा मैं चलने को मज़बूर हु 
क्योंकि मैं मज़दूर हु । 


बिटियाँ को कैसे संभाले वो तो अभी नन्ही है 
उसे दूध कैसे पिलाए वो अभी अभी जन्मी है 
बड़ा बेटा भी भुख से तड़प रहा 
उसे आख़िर क्या हम खिलाए । 
जेब में एक चवन्नी नही है 
उसे हम कुछ कैसे दिलाए । 
आत्मनिर्भर भारत का सपना दिखाते हो साहब 
दूरदर्शन पर आकर सिर्फ़ अपना बताते हो साहब 
चलते चलते अब थक चुका हूं 
हिम्मत नही बची पक चुका हूं 
इतनी बेदर्दी क्यों साहब 
मैं तो बेक़सूर हु 
हा मैं चलने को मज़बूर हु 
क्योंकि मैं मज़दूर हु । 

कौन सुनेगा आख़िर मेरी बातें 
किसे फर्क़ अभी दिन है कि रातें 
बस सड़को को पकड़े हुए है 
परिवार को जकड़े हुए है । 
कुछ भैया आए थे मदद करने 
सेल्फी लिए सामान दिए 
सारा घर वालों के सामने 
एक एक करके अपमान किए । 
बाबू साहब सब गुज़रे थे बड़ी बड़ी गाड़ियों से 
हम पैदल ही चलते रहे वही बगल झाड़ियों से । 
बेटा बैठा कंधे पर , बिटिया को भी लटकाए 
चलते चलते पैर मेरे अब रास्ते मे लड़खड़ाए । 
साहब घर पहुँचा दो हमें हम बेक़सूर है 
हा मैं चलने को मजबूर हु 
क्योंकि मैं मज़दूर हु । 

बड़ी बड़ी बातें सिर्फ हुई , खाने को सब मिलेगा 
ट्रेन ऑनलाइन टिकट काटो जाने को भी मिलेगा 
हम अनपढ़ लोग है साहब ये हमसे कैसे होगा 
हम पटरी पटरी जाते है चाहें हमसे जैसे होगा । 
कोई ट्रेन हमको दूर दूर कही नही खड़ी मिली 
सोचा आराम कर लूं थोड़ा चलते चलते थक गए
धूप से हमारे पाँव जल जल कर पक गए ।  
सुबह उठते ही उसी पर रोटियां बिखड़ी मिली 
शायद रात को कोई आया था हमें लेने 
नींद में ही हमें इस तरह का मौत देने 
हमने तो सिर्फ़ इतना कहा गाड़ी मोटर चलाने को 
उन्हें फिर ये किसने कहा हमारे ऊपर चढ़ाने को 
मेरा क़सूर कुछ नही साहब में तो बेक़सूर हु
हा मैं चलने को मजबूर हु 
क्योंकि मैं मज़दूर हु ।

- हसीब अनवर
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Haseeb Anwer

इतनी सुबह सुबह हिचकियां , तुमने याद किया क्या 
अरे ! कमाल है मुझें याद तुमने , मेरे बाद किया क्या

 आंख खुले ही सुबह की रोशनी पड़ने लगी कमरे में 
तुमने मेरे ख़ातिर शायद ये रात , बर्बाद किया क्या ।
 
-Haseeb Anwer

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Haseeb Anwer

रात भर मैं जगा , एक सुबह की दीदार को 
अपनी नींद बेच दिया इश्क़ के खरीददार को 

आसमां के सारे तारे सारी रात थे मेरे साथ 
सुबह होते ही उसने बिठा गया पहरेदार को । 
-Haseeb Anwer

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