मैं कोई नदी नहीं जो भावनाओं में बह जाऊं,
मैं कोई पहाड़ नहीं जो एक जगह अड़ी रह जाऊं।
मैं कोई फूल नहीं जो नाज़ुक सी बनकर रह जाऊं,
मैं कोई कांटा नहीं जो किसी को भी चुभ जाऊं।
मैं कोई खुशबू नहीं जो किसी भी स्थान में भर जाऊं,
मैं कोई मुश्क नहीं जो किसी की नफरत का कारण बन जाऊं।
मैं कोई धरा नहीं जो हर ग़म बेवजह सहती चली जाऊं,
मैं कोई आकाश नहीं जो खुली हवा सी बहती चली जाऊं।
M. Vats Maratha
कुछ बेफिजूल की बातों का मजाक बनाएगी,
क्या अब दुनिया मुझे मेरा किरदार बताएगी?
जो था ही नहीं उसे बताएगी,
जो सच है उसे छुपाएगी।
आखिर क्या सचमुच
मेरी अंतरात्मा को ठुकराएगी,
क्या सचमुच दुनिया अब मुझे मेरा किरदार बताएगी?
M. Vats Maratha
खुद को खुद से जीतना है,
संघर्ष के पसीने से भीगना है।
दुनिया को हरा कर जिंदगी से जीतना है,
अकेले ही सफर तय करके जीतना है!
दुनिया लाख कोशिश करेगी गिराने की,
लेकिन तुझे अंतर्मन की भावना से जीतना है।
तू जीव है जीवंत है आदि है अनन्त है,
M. Vats Maratha
जिंदगी की जंग जीतने के लिए
खुद से हारना पड़ता है,
हां, खुद जिंदा रहते हुए
खुद को मारना पड़ता है!
चुपचाप हर बात
को सहना पड़ता है,
जो दुनिया को पसंद आए
M. Vats Maratha
मैं अपनी खुशी में खुश रहना चाहती हूं!
दुनिया की भीड़ भाड़ से दूर रहना चाहती हूं।
दुनिया से दूर रहकर अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहती हूं।
लोग जाल में फंसने कि करते हैं कोशिश,
लेकिन मैं खुद को बुरा बताकर मोह माया से दूर जाना चाहती हूं!
मैं अपनी खुशी में खुश रहना चाहती हूं!
ना मुझे जिंदगी में कोई डगर चाहिए,
M. Vats Maratha
मैं शक्ति हूं..!
मैं कर्म हूं, मैं फल हूं,
मैं अग्नि हूं, मैं जल हूं।
मैं आज हूं, मैं कल हूं,
मैं निष्कपट हूं मैं निश्छल हूं!
मैं व्यक्ति हूं, मैं समाज हूं,
मुझ अंतहीन आकाश को भला!
क्या चंद मुठ्ठी भर दुनिया बांध पाएगी?
मैं हूं विस्तृत और रहस्यमयी शक्ति,
जैसे शब्दों ने रची हो भावों की अभिव्यक्ति।
क्या इस सच को दुनिया जान पाएगी?
मुझ अंतहीन आकाश को भला!
क्या चंद मुट्ठी भर दुनिया बांध पाएगी?