Nojoto: Largest Storytelling Platform
nojotouser2343962381
  • 142Stories
  • 315Followers
  • 1.3KLove
    198Views

राजेश कुशवाहा 'राज'

"इस वक्त को छोड़कर किस वक्त काम आओगे, जब वो वक्त ही तुम्हारा न रहेगा किस वक्त से तुम काम आओगे।"

www.vidhidecoration.com

  • Popular
  • Latest
  • Repost
  • Video
90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

------------------!! मुक्तक !!----------------
हकीकत   को   न  पूछो तुम, कहाँ  बेचैन  बैठी है।
कहाँ  आँसू  बहाती  है, कहाँ  किससे  वो रूठी है।
बड़ी  रफ्तार  से  चलती, यहाँ  है  झूठ की दुनिया-
दिखाकर आँख वो सच को पकड़ के कान ऐंठी है।
-------------------------------------------
~ राजेश कुमार कुशवाहा 'राज' 
    सीधी(मध्यप्रदेश)

©राजेश कुशवाहा 'राज' ------------------!! मुक्तक !!----------------
हकीकत   को   न  पूछो तुम, कहाँ  बेचैन  बैठी है।
कहाँ  आँसू  बहाती  है, कहाँ  किससे  वो रूठी है।
बड़ी  रफ्तार  से  चलती, यहाँ  है  झूठ की दुनिया-
दिखाकर आँख वो सच को पकड़ के कान ऐंठी है।
-------------------------------------------
~ राजेश कुमार कुशवाहा 'राज' 
    सीधी(मध्यप्रदेश) #कुशवाहाजी

------------------!! मुक्तक !!---------------- हकीकत को न पूछो तुम, कहाँ बेचैन बैठी है। कहाँ आँसू बहाती है, कहाँ किससे वो रूठी है। बड़ी रफ्तार से चलती, यहाँ है झूठ की दुनिया- दिखाकर आँख वो सच को पकड़ के कान ऐंठी है। ------------------------------------------- ~ राजेश कुमार कुशवाहा 'राज' सीधी(मध्यप्रदेश) #कुशवाहाजी #dilemma #कविता

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

एक मुक्तक ऐसा भी ---

हृदय  की वेदना को तुम,
हृदय  में 'राज'  रहने दो।

बने  जो  प्रेम  का सागर,
हृदय का 'साज' रहने दो।

मोहब्बत  एक  दरिया है,
जो अविरल यूँ बहेगी ही,

गर नाराज हो दुनिया तो,
उसे  'नाराज'   रहने  दो।

©राजेश कुशवाहा 'राज' एक मुक्तक ऐसा भी ---

हृदय  की वेदना को तुम,
हृदय  में 'राज'  रहने दो।

बने  जो  प्रेम  का सागर,
हृदय का 'साज' रहने दो।

एक मुक्तक ऐसा भी --- हृदय की वेदना को तुम, हृदय में 'राज' रहने दो। बने जो प्रेम का सागर, हृदय का 'साज' रहने दो। #Nofear #शायरी #कुशवाहाजी

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

चमक रहे हैं नयन तुम्हारे, 
जैसे  पूनम  का  चंदा हो।

माथे की बिंदिया भी लागे,
जैसे  पूनम  का  चंदा हो।

कानों के  बाली की छाया,
गालों  पर  यूं  इतराती है।

शांत  सरोवर  में  दिखता,
जैसे  पूनम  का  चंदा हो।

©राजेश कुशवाहा चमक रहे हैं नयन तुम्हारे, 
जैसे  पूनम  का  चंदा हो।

माथे की बिंदिया भी लागे,
जैसे  पूनम  का  चंदा हो।

कानों के  बाली की छाया,
गालों  पर  यूं  इतराती है।

चमक रहे हैं नयन तुम्हारे, जैसे पूनम का चंदा हो। माथे की बिंदिया भी लागे, जैसे पूनम का चंदा हो। कानों के बाली की छाया, गालों पर यूं इतराती है। #ValentinesDay #शायरी #मुक्तक #कुशवाहाजी

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

एक जनम क्या सौ जन्मों तक,
बस तेरा ही साथ रहे।
इस धरती से आकाश तले तक,
बस तेरा ही साथ रहे।
हों  कांटें  या फूल भरी गलियाँ,
बस तेरा ही साथ रहे।
वादा है जीवन भर साथ रहूँगा,
बस तेरा ही साथ रहे।

©राजेश कुशवाहा #promiseday
90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

मीत  मेरे  मनमीत  मेरे, 
कुछ प्यार की बातें कर लो न।
दिल पर मेरा जोर नही,
तुम  ही अधिकार जमा लो न।


मन  में उठती हैं  लहरें,
अब  इनको  तो समझा लो न।
बेशक!मैं प्रीत नही जानू,
तुम  ही  अनुराग  बना  लो न।

माना है कदमों की दूरी,
पर आँख को गोद बना लो न।
प्रेम  का कोई रंग नही,
तुम  ही  हर रंग  सजा  लो न।

तार  तुम्हारे  लिए बजे,
कुछ रागों  को  भी सुन लो न।
बड़ी कठिन सब राहें हैं, 
दिल  के  रास्ते को चुन लो न।

दिल मेरा क्या कहता है,
इसको  तो  अब जान  लो न।
'राज' ये कैसे बयां करें,
तुम  खुद  ही  अब पढ़ लो न।

©राजेश कुशवाहा मीत  मेरे  मनमीत  मेरे, 
कुछ प्यार की बातें कर लो न।
दिल पर मेरा जोर नही,
तुम  ही अधिकार जमा लो न।


मन  में उठती हैं  लहरें,
अब  इनको  तो समझा लो न।

मीत मेरे मनमीत मेरे, कुछ प्यार की बातें कर लो न। दिल पर मेरा जोर नही, तुम ही अधिकार जमा लो न। मन में उठती हैं लहरें, अब इनको तो समझा लो न। #proposeday #लव

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

मैं अब क्या? लिखने बैठूं,
कैसे? कविता के भाव भरूँ।
इन चिर परिचित लोगों में,
कैसे? मैं दामन के दर्द धरूँ।

झूठ पुलिंदा पर्वत जैसा,
कैसे? मैं राई सा सत्य कहूँ।
द्वेष भरा है सागर जैसा,
कैसे? मैं चुल्लू सा प्रेम कहूँ।

बातें होती पूरनमासी की,
कैसे? मैं जुगनू  दिखलाऊँ।
जहाँ असत्य गगन सा है,
कैसे? मैं सत्यदीप जलबाऊँ।

हैं नफरत के धुएँ उड़ रहे,
कैसे? मैं प्रीत की बात कहूँ।
'राज' कहाँ क्या होता अब,
कैसे? मैं दिल के दर्द कहूँ।

©राजेश कुशवाहा मैं अब क्या? लिखने बैठूं,
कैसे? कविता के भाव भरूँ।
इन चिर परिचित लोगों में,
कैसे? मैं दामन के दर्द धरूँ।

झूठ पुलिंदा पर्वत जैसा,
कैसे? मैं राई सा सत्य कहूँ।
द्वेष भरा है सागर जैसा,

मैं अब क्या? लिखने बैठूं, कैसे? कविता के भाव भरूँ। इन चिर परिचित लोगों में, कैसे? मैं दामन के दर्द धरूँ। झूठ पुलिंदा पर्वत जैसा, कैसे? मैं राई सा सत्य कहूँ। द्वेष भरा है सागर जैसा, #BookLife

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

धीरे-धीरे  सासों सा वो मुझको क्यों छोड़ रहें है।
धीरे-धीरे न जाने क्यों प्रीत का धागा तोड़ रहे हैं।।

©राजेश कुशवाहा #apart
90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

देखना नजरों का सबने, छोड़ डाला कैमरे पर।
क्या बुरा क्या खूबसूरत, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

दिन में हैं तारे चमकते, और धूप काली रात को।
चांद के इस चांदनी को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

बंद कमरो की हकीकत, चौराहों के झूठ को।
कोर्ट के हर फैसले को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

 प्राकृतिक सौंदर्य कितना, ये पता है कैमरे को।
फूल भँवरे के मिलन को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

नींद आँखों से छिनी, अब देखते बस चित्र को।
क्या फसाना है हकीकत, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

कुशल प्रहरी बन चुका है, खोजता ये चोर को।
अब राज ने हर राज को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

समाचारों की दुनिया में, दिखा रहा सच झूठ को।
अच्छी खासी राजनीति को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

देखना नजरों का सबने, छोड़ डाला कैमरे पर।
क्या बुरा क्या खूबसूरत, छोड़ डाला कैमरे पर।।

©राजेश कुशवाहा देखना नजरों का सबने, छोड़ डाला कैमरे पर।
क्या बुरा क्या खूबसूरत, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

दिन में हैं तारे चमकते, और धूप काली रात को।
चांद के इस चांदनी को, छोड़ डाला कैमरे पर।।
देखना नजरों का सबने.....।।

देखना नजरों का सबने, छोड़ डाला कैमरे पर। क्या बुरा क्या खूबसूरत, छोड़ डाला कैमरे पर।। देखना नजरों का सबने.....।। दिन में हैं तारे चमकते, और धूप काली रात को। चांद के इस चांदनी को, छोड़ डाला कैमरे पर।। देखना नजरों का सबने.....।। #Photography #कुशवाहाजी

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

------!! गजल / कोहरा !!-----

धुँधला धुँधला शहर लग रहा, सर्द हवा झकझोर रही है।
उजले उजले से पर्दों पर, श्यामल परछाई पुकार रही है।।

कदम तले है चुपके से आती, नरमी सुर्ख सुर्ख रातो में।
ज्यों आँचल में माँ की ममता, वो हाथों को फेर रही है।।

अब  आवाजें हैं आती जाती, किसी और का पता नही।
पिघली पिघली बर्फें उड़कर, चँहुदिशि रंगत घोर रही है।।

क्या आगे क्या पीछे देखें, है चारों ओर लहरों का साया।
कुछ भागें कुछ पास बुलाएं, कुछ चित्रों को उकेर रही है।।

छूता हूँ नाजुक हाथों से, फिर भी उनको न छू पाता हूँ।
पर ये अंगों को छू करके, मन तृष्णा को बिखेर रही है।।

क्या है राज इन उड़ते मोती का, राज नही पहचान रहा।
जलप्रपात के दुग्धधार से, प्रकृति स्वयं को बुहार रही है।।

©राजेश कुशवाहा ------!! गजल / कोहरा !!-----

धुँधला धुँधला शहर लग रहा, सर्द हवा झकझोर रही है।
उजले उजले से पर्दों पर, श्यामल परछाई पुकार रही है।।

कदम तले है चुपके से आती, नरमी सुर्ख सुर्ख रातो में।
ज्यों आँचल में माँ की ममता, वो हाथों को फेर रही है।।

------!! गजल / कोहरा !!----- धुँधला धुँधला शहर लग रहा, सर्द हवा झकझोर रही है। उजले उजले से पर्दों पर, श्यामल परछाई पुकार रही है।। कदम तले है चुपके से आती, नरमी सुर्ख सुर्ख रातो में। ज्यों आँचल में माँ की ममता, वो हाथों को फेर रही है।। #शायरी #findyourself #कुशवाहाजी

90bcd04a4405f7db73dfa5190cdad391

राजेश कुशवाहा 'राज'

#5LinePoetry भोर  आई  है अब, जग  गया  है जहां,
लोग  चलने  लगे, अब है  जीना  यहाँ।
गाने  पंछी   लगे,  मन  मगन  हो  रहा,
नवीन   कलियों  पे, भँवरा है मडरा रहा।
फूल  टूटेगा  डाली  से,  बलिदान  होगा,
देव,दुल्हन,या शव पर ये,फिर से चढ़ेगा।
शोर  नदियों  में  है,  हैं  लहरे  इतरा रही,
प्यास  तन मन की,सबकी  बुझेगी यही।
पेड़  पौधों  में भी, जान  अब  आ  गयी,
नया भोजन बनेगा, है रोशनी अब नयी।
पूजा  अर्चना  की  बेला, है  आई  अभी,
देव   दर्शन  करो,  पुण्य   पाओ   सभी।
शांत  मन  से  चलो,  कर्म  अपना  करो,
जो  तुम्हारे लिए  हो, प्राप्त उसको करो।
"राज"  की  प्रार्थना,  है  दिवाकर प्रभु से,
भरो  जग  में चेतना, यूँ अपनी किरण से।
✍राजेश कुमार कुशवाहा "राज"

©राजेश कुशवाहा भोर  आई  है अब, जग  गया  है जहां,
लोग  चलने  लगे, अब है  जीना  यहाँ।
गाने  पंछी   लगे,  मन  मगन  हो  रहा,
नवीन   कलियों  पे, भँवरा है मडरा रहा।
फूल  टूटेगा  डाली  से,  बलिदान  होगा,
देव,दुल्हन,या शव पर ये,फिर से चढ़ेगा।
शोर  नदियों  में  है,  हैं  लहरे  इतरा रही,
प्यास  तन मन की,सबकी  बुझेगी यही।

भोर आई है अब, जग गया है जहां, लोग चलने लगे, अब है जीना यहाँ। गाने पंछी लगे, मन मगन हो रहा, नवीन कलियों पे, भँवरा है मडरा रहा। फूल टूटेगा डाली से, बलिदान होगा, देव,दुल्हन,या शव पर ये,फिर से चढ़ेगा। शोर नदियों में है, हैं लहरे इतरा रही, प्यास तन मन की,सबकी बुझेगी यही। #कुशवाहाजी #5LinePoetry

loader
Home
Explore
Events
Notification
Profile